गले, नाक व कान में होने वाली बीमारियों की समस्या को हल्के न लें : डा. रविंद्र मिन्हास

गले, नाक व कान में होने वाली बीमारियों को हल्के में न लें : डॉ. रविंद्र मिन्हास

प्रश्न : मरीज को साइनस की समस्या है इसका पता कैसे चलता है?

साइनस से ग्रसित व्यक्तियों को धुंए और धूल से बचना चाहिए

साइनस से ग्रसित व्यक्तियों को धुंए और धूल से बचना चाहिए

उत्तर : मरीज को यह बीमारी है या नहीं, इसके लिए सीटी स्कैन या एमआरआई के अलावा साइनस के अन्य कारणों को लेकर खून की जांच भी की जाती है। जिससे हमें बीमारी होने का ठोस कारण पता चल सके। ऐसे में सिटी स्कैन व एलर्जी टेस्ट आदि करवाकर यदि नाक की हड्डी एवं साइनस की बीमारी सामने आती है तो उस मरीज को घबराने की जरूरत नहीं है। आजकल इसका ऑपरेशन दूरबीन विधि से या फिर नाक की इंडोस्कोपिक साइनस सर्जरी करा सकते हैं।

प्रश्न : साइनस से ग्रसित लोगों को किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है?

उत्तर : साइनस से ग्रसित व्यक्तियों को धुंए और धूल से बचना चाहिए। साथ ही साथ आप उबलते हुए पानी की भाप या सिकाई भी कर सकते हैं। इस दौरान पंखा और कूलर भी बंद कर लें। अगर समय रहते इसका इलाज नहीं कराया गया तो बाद में अस्थमा और दमा जैसे कई गंभीर रोग भी हो सकते हैं। एलर्जी से बचने के लिए ओवर स्टफ्ड फर्नीचर से परहेज करें। अपने तकियों और बिस्तरों की नियमित सफाई करें। गलीचों और पायदानों की सफाई का भी ध्यान रखें। इत्र आदि की गंध से दूर रहें। वायु प्रदूषण से बचें। अपने घर के वेंटीलेशन सिस्टम को सुधारें। जहां तक हो सके, घर की खिड़कियां खोलकर वेंटिलेशन करें। जिन लोगों को जुकाम या कोई अन्य वायरल इंफेक्शन हो, उनके संपर्क में जाने से बचें। अधिक उच्च और निम्न तापमान में न रहें। तापमान में अचानक आने वाले बदलाव से बचें। तनाव से दूर रहें। तनाव के कारण सफेद कोशिकाएं जो शरीर की रक्षा करती हैं, कमजोर पड़ जाती हैं। हाइजिन का खास ख्याल रखें। बैक्टीरियल और वायरल इंफेक्शन से बचें। अपने हाथों को हमेशा साबुन से साफ करें। रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पिएं। सुबह उठते ही चाय या गर्म पानी पिएं। गर्म तरल पदार्थ बलगम के प्रवाह में मदद करते हैं और नाक या गले में बलगम आदि इकट्ठा नहीं होने देते।

प्रश्न : बरसात के मौसम में गले की समस्या काफी बढ़ जाती है? इसका कैसे ख्याल रखना चहिये?

उत्तर : बरसात के दिनों में अक्सर गला सूखने लगता है। इसके कारण गले में खिचखिच होने लगती है, लेकिन कई बार यह बैक्टीरिया और वायरस की देन भी होती है। ऐसे में सही समय पर ध्यान न दिया जाए तो काफी परेशानी हो जाती है। इसलिए आप अपने गले की खिचखिच और खराश को हल्के में न लें। गले का सूखना, एक प्रकार की हेल्थ प्रॉब्लम है, जिसमें खराश, खिचखिच होती है और मन करता है कि अंदर खुजली कर ली जाए। गले में दर्द, गले का सूखना, बार-बार छींकना, खांसी, सांस लेने में परेशानी होना, निगलने में परेशानी भी इसके लक्षण हो सकते हैं। टॉन्सिल का बढ़ना, आवाज का कर्कश होना, शरीर दर्द, बिना दर्द के साथ मुंह से खून आना आदि भी गंभीर बीमारी का सूचक हो सकता है। अचानक जीभ और गले में सूजन आ जाए या तेज बुखार हो जाए तो भी लापरवाही बिल्कुल न बरतें।

प्रश्न : किन-किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है?

उत्तर : आसपास का माहौल साफ-सुथरा रखें और खाना खाने से पहले साबुन से हाथ साफ करें। किसी का जूठा न खाएं। एक ही बर्तन जैसे चम्मच व ग्लास का उपयोग बिना धोए न करें। पौष्टिक आहार लें, जंक फूड से परहेज करें। मुंह की सफाई का भी पूरा खयाल रखें। जीभ को साफ करते समय ज्यादा न रगड़ें। जीभ के छिल जाने से गले में कष्ट हो सकता है। बाहर के खाने से परहेज करें। नमक के पानी से गरारे करें। बिना चीनी की काली चाय पीने से भी राहत मिलती है। बगैर डॉक्टरी परामर्श के किसी एंटीबायोटिक का प्रयोग न करें। ऐसा करने पर कुछ देर के लिए तो राहत मिल सकती है, लेकिन कीटाणु थोड़े समय बाद फिर सक्रिय हो जाते हैं और फिर वही एंटीबायोटिक उन पर बेअसर साबित होते हैं। बच्चों को भी अपनी मर्जी से दवा न खिलाएं, वरना उन्हें ब्रेन व लीवर से संबंधित बीमारी होने का खतरा रहता है। चिल्लाने से बचें अन्यथा गले में सूजन की समस्या पैदा हो सकती है।

प्रश्न : गले के संक्रमण के लक्षण क्या हैं और इसका क्या इलाज है? विस्तार से बताएं?

उत्तर : गले के संक्रमण का पहला चिन्ह होता है। अगर आपको मध्यम प्रकार का गले का दर्द हो तो भी आपको गले का संक्रमण हो सकता है, लेकिन गले का हल्का दर्द जो आसानी से ठीक हो जाये, संभवतः संक्रमण के कारण नहीं होता। गले की पीड़ा किसी भी चीज़ जैसे बोलने या निगलने पर निर्भर नहीं होगी। अगर आपके गले में केवल मध्यम प्रकार का दर्द है लेकिन कुछ निगलने पर वो बहुत पीड़ादायक बन जाये तो आपको गले का संक्रमण हो सकता है। विशेषरूप से गले के संक्रमण वाले लोगों में निगलते समय दर्द होने से निगलना ओर कठिन बन जाता है।

हालांकि आपको हर बार गले की पीड़ा होने पर डॉक्टर को दिखाने की ज़रूरत नहीं होती लेकिन गले के संक्रमण के कारण कुछ प्रबल लक्षणों के होने पर आपको तुरंत डॉक्टर को दिखाने जाना चाहिए। अगर आपके गले में 48 घंटों से अधिक समय तक पीड़ा बनी रहे तो भी आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए। अगर आपको तरल पदार्थ निगलने में परेशानी हो, डिहाइड्रेशन के चिन्ह दिखाई दें। अपनी लार भी न निगल पायें या गर्दन में तीव्र दर्द हो या गर्दन में जकड़न हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

प्रश्न : मौसम बदलते ही गले में खराश होना आम बात है लेकिन कई बार इसमें गले में कांटे जैसी चुभन, खिचखिच और बोलने में तकलीफ जैसी समस्याएं आती हैं। इसकी वजह क्या है?

उत्तर : ऐसा बैक्टीरिया और वायरस के कारण होता है। कई बार गले में खराश की समस्या एलर्जी और धूम्रपान के कारण भी होती है। गले के कुछ संक्रमण तो खुद-ब-खुद ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इलाज की ही जरूरत पड़ती है। आमतौर पर लोग गले की खराश को आम बात समझ कर इस समस्या को अनदेखा कर देते हैं। लेकिन गले की किसी भी परेशानी को यूं ही नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ये गंभीर बीमारी का रूप ले सकती है।

टॉन्सिल्स: गले में खराश गले का इंफेक्शन है, जिसमें गले से कर्कश आवाज, हल्की खांसी, बुखार, सिरदर्द, थकान और गले में दर्द खासकर निगलने में परेशानी होती है। हमारे गले में दोनों तरफ टॉन्सिल्स होते हैं, जो कीटाणुओं, बैक्टीरिया और वायरस को हमारे गले में जाने से रोकते हैं, लेकिन कई बार जब ये टॉन्सिल्स खुद ही संक्रमित हो जाते हैं, तो इन्हें टॉन्सिलाइटिस कहते हैं। इसमें गले के अंदर के दोनों तरफ के टॉन्सिल्स गुलाबी व लाल रंग के दिखाई पड़ते हैं। ये थोड़े बड़े और ज्यादा लाल होते हैं। कई बार इन पर सफेद चकत्ते या पस भी दिखाई देता है। वैसे तो टॉन्सिलाइटिस का संक्रमण उचित देखभाल और एंटीबायोटिक से ठीक हो जाता है, लेकिन इसका खतरा तब अधिक बढ़ जाता है, जब यह संक्रमण स्ट्रेप्टोकॉक्कस हिमोलिटीकस नामक बैक्टीरिया से होता है। तब यह संक्रमण हृदय एवं गुर्दे में फैलकर खतरनाक बीमारी को जन्म दे सकता है।

वहीं एडीनॉयड अर्थात् नाक के पीछे होने वाले टॉन्सिल्स। एंडीनॉयड में संक्रमण होने पर बुखार, सर्दी, नाक एवं गले से कफ आना या खांसी हो सकती है। ऐसे में रात में सांस लेने में तकलीफ होती है। इसमें मुंह खुला रहता है और कई बार खर्राटे भी आने लगते हैं। एडीनॉयड संक्रमण होने पर कान की बीमारियां हो जाती हैं क्योंकि नाक और कान को जोड़ने वाली नली बंद हो जाती है और कान के परदे के पीछे पानी इकट्ठा होने लगता है। कभी-कभी परदे में छेद होकर मवाद बाहर बहने लगती है। इससे सुनने की क्षमता कम हो जाती है।

  • प्रश्न : इसके लक्षण क्या हैं?

उत्तर : गले में दर्द रहना और सूजन आना, बुखार। बोलने में परेशानी होना। टॉन्सिल्स पर पीले या सफेद दाग होना। खांसी और सांस में बदबू।

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