शिमला: राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि जल, जमीन और हवा के प्रदूषण से बचने के लिए हमें शून्य लागत प्राकृतिक कृषि को अपनाना होगा। यह न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से जरूरी है बल्कि भावी पीढ़ी की सुरक्षा के लिए भी महत्वूपर्ण है। प्राकृतिक कृषि किसानों की आर्थिकी को बढ़ाने में भी सहायक होगी। राज्यपाल आज मंडी जिले के अन्तर्गत सुन्दरनगर के भंगरोटू में यूथ फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट, शिमला तथा चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के कृषि विज्ञान केंद्र, मण्डी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित जैविक व परम्परागत कृषि फसल संगोष्ठी में किसानों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में कृषि क्षेत्र में तेजी से हो रहे अनुसंधान के प्रति किसान समुदाय गंभीर है। किसानों की चिंता बड़ी है, क्योंकि मेहनत के बावजूद उन्हें उनकी उपज का उचित लाभ नहीं मिल रहा है। किसानों की आय को दोगुना करने तथा इसके समाधान के प्रति के प्रति भारत सरकार गंभीर है। उन्होंने कहा कि लगभग 30 वर्ष पूर्व देश में आई हरित क्रांति से उत्पादन तो बढ़ा लेकिन हमने कुछ गलतियां भी की। आज डीएपी, यूरिया, कीटनाशकों का जमकर उपयोग हो रहा है, बावजूद इसके उत्पादन नहीं हो रहा है।
जमीन की उर्वरा शक्ति क्षीण हो गई है और जमीन बंजर हो रही है। उन्होंने चिंता जताई कि यदि यही प्रक्रिया चलती रही तो भावी पीढ़ी को केवल बंजर भूमि उपलब्ध होगी। कृषि बढ़ने और उत्पादन कम होने से किसान कर्ज में डूब रहा है। राज्यपाल ने कहा कि कृषि क्षेत्र में गौ पालन, गौमूत्र और गोबर का उपयोग ही किसानों की आर्थिक दशा में परिवर्तन ला सकता है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि प्रदेश के दोनों विश्वविद्यालयों, कृषि और बागवानी में शून्य लागत प्राकृतिक कृषि के मॉडल आरम्भ हो गए हैं। एक देसी गाय से लगभग 30 एकड़ भूमि पर कृषि की जा सकती है। इसका गोबर कृषि के लिए हर प्रकार से उत्तम है। एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ जीवाणु पाये जाते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। इसी प्रकार, गाय के गौमूत्र का छिड़काव लाभदायक है। उन्होंने किसानां को जीवामृत बनाने की विधि का भी उल्लेख किया। उन्होंने किसानों से शून्य लागत प्राकृतिक कृषि को अपनाने का आग्रह किया जिससे पानी की कम खपत होगी और कृषि लागत भी नहीं आएगी। उत्पाद का मूल्य अधिक मिलेगा और लोगों का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा।