जब शनिदेव बोले लक्ष्मी जी से “कर्म ही प्रधान है और कर्म का फल भोगने के लिए सभी बाध्य”

  • समय अनुसार दंड देने का कार्यभार परमात्मा ने मुझे सौंपा है: शनिदेव

  • जो दूसरों को रुलाते और स्वयं हंसते हैं, उन्हें समय अनुसार दंड देने का कार्यभार परमात्मा ने मुझे सौंपा है : शनिदेव 

 

शनिदेव

शनिदेव

लक्ष्मी जी

लक्ष्मी जी

 एक बार लक्ष्मीजी ने शनिदेव से प्रश्न किया कि हे शनिदेव, मैं अपने प्रभाव से लोगों को धनवान बनाती हूं और आप हैं कि उनका धन छीन भिखारी बना देते हैं। आखिर आप ऐसा क्यों करते हैं? लक्ष्मीजी का यह प्रश्न सुन शनिदेव ने उत्तर दिया- ‘हे मातेश्वरी! इसमें मेरा कोई दोष नहीं। जो जीव स्वयं जानबूझकर अत्याचार व भ्रष्टाचार को आश्रय देते हैं और क्रूर व बुरे कर्म कर दूसरों को रुलाते तथा स्वयं हंसते हैं, उन्हें समय अनुसार दंड देने का कार्यभार परमात्मा ने मुझे सौंपा है। इसलिए मैं लोगों को उनके कर्मों के अनुसार दंड अवश्य देता हूं। मैं उनसे भीख मंगवाता हूं, उन्हें भयंकर रोगों से ग्रसित बनाकर खाट पर पड़े रहने को मजबूर कर देता हूं।’

इस पर लक्ष्मीजी बोलीं- ‘मैं आपकी बातों पर विश्वास नहीं करती। देखिए, मैं अभी एक निर्धन व्यक्ति को अपने प्रताप से धनवान व पुत्रवान बना देती हूं।’ लक्ष्मीजी ने ज्यों ही ऐसा कहा, वह निर्धन व्यक्ति धनवान एवं पुत्रवान हो गया। तत्पश्चात लक्ष्मीजी बोलीं- अब आप अपना कार्य करें।’ तब शनिदेव ने उस पर अपनी दृष्टि डाली। तत्काल उस धनवान का गौरव व धन सब नष्ट हो गया। उसकी ऐसी दशा बन गई कि वह पहले वाली जगह पर आकर पुनः भीख मांगने लगा। यह देख लक्ष्मीजी चकित रह गईं। वे शनिदेव से बोलीं कि इसका कारण मुझे विस्तार से बताएं।

  • पापी जीव के भाग्य में सुख-संपत्ति का उपभोग कहां

तब शनिदेवजी ने बताया- ‘हे मातेश्वरी, यह वह इंसान है जिसने पहले गांव के गांव उजाड़ डाले थे, जगह-जगह आग लगाई थी। यह महान अत्याचारी, पापी व निर्लज्ज जीव है। इसके जैसे पापी जीव के भाग्य में सुख-संपत्ति का उपभोग कहां है। इसे तो अपने कुकर्मों के भोग के लिए कई जन्मों तक भुखमरी व मुसीबतों का सामना करना है। आपकी दयादृष्टि से वह धनवान-पुत्रवान तो बन गया परंतु उसके पूर्वकृत कर्म इतने भयंकर थे जिसकी बदौलत उसका सारा वैभव देखते ही देखते समाप्त हो गया। क्योंकि कर्म ही प्रधान है और कर्म का फल भोगने के लिए सभी बाध्य हैं। लेकिन मैंने इसे इसके दुष्कर्मों का फल देने के लिए फिर से भिखारी बना दिया। इसमें मेरा कोई दोष नहीं, दोष उसके कर्मों का है। शनिदेवजी पुनः बोले- हे मातेश्वरी, ऐश्वर्य शुभकर्मी जीवों को प्राप्त होता है। जो लोग महान सदाचारी, तपस्वी, परोपकारी, दान देने वाले होते हैं, जो सदा दूसरों की भलाई करते हैं और भगवान के भक्त होते हैं, वे ही अगले जन्म में ऐश्वर्यवान होते हैं। मैं उनके शुभ कर्मों के अनुसार ही उनके धन-धान्य में वृद्धि करता हूं। वे शुभकर्मी पुनः उस कमाए धन का दान करते हैं, मंदिर व धर्मशाला आदि बनवाकर अपने पुण्य में वृद्धि करते हैं। इस प्रकार वे कई जन्मों तक ऐश्वर्य भोगते हैं।

  • बुरे कर्म करने से पहले हर मनुष्य को यह सोच लेना चाहिए इसका परिणाम भी उसे खुद ही भोगना पड़ेगा

हे मातेश्वरी! अनेक मनुष्य धन के लोभ में पड़कर ऐश्वर्य का जीवन जीने के लिए तरह-तरह के गलत कर्म कर बैठते हैं, जिसका नतीजा यह निकलता है कि वे स्वयं अपने कई जन्म बिगाड़ लेते हैं। भले ही मनुष्य को अपना कम खाकर भी अपना जीवन यापन कर लेना चाहिए लेकिन बुरे कर्म करने से पहले हर मनुष्य को यह सोच लेना चाहिए इसका परिणाम भी उसे खुद ही भोगना पड़ेगा।’ इस प्रकार शनिदेव के वचन सुनकर लक्ष्मीजी बहुत प्रसन्न हुईं और बोलीं- हे शनिदेव! आप धन्य हैं। प्रभु ने आप पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। आपके इस स्पष्टीकरण से मुझे कर्म-विज्ञान की अनेक गूढ़ बातें समझ में आ गईं। ऐसा कहते हुए लक्ष्मीजी अंतर्ध्यान हो गईं।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *