वृद्धजनों के सपने होंगे ‘देव भूमि दर्शन’ योजना से साकार

हिमाचल के मन्दिरों की प्राचीन शैली आज भी जीवित

  • चौथी शैली के मंदिर बंद छतों और पैगोड़ा शैली की छतों का मिश्रण

चौथी शैली के मंदिर बंद छतों और पैगोड़ा शैली की छतों का मिश्रण हैं। इस मिश्रित शैली के उदाहरणों में बाहरी सिराज के नीरथ नामक स्थान पर निर्मित वाहन महादेव और धनेश्वरी देवी के मंदिर हैं। इनके अतिरिक्त पहाड़ी वास्तुशैली के मुख्य

नागर-शैली में निर्मित इस मंदिर में वर्गाकार गर्भगृह, अंतराल, मंडप एवं मुखमंडप

मसरूर मंदिर

मंदिर हैं भीमाकाली मंदिर (सराहन, शिमला), बिजट देवता मंदिर (सराहां, चौपाल), शिरगुल देवता मंदिर, (जोडऩा, चौपाल), डोम देवता मंदिर, (गुठाण, ठियोग), मगलेश्वर मंदिर (बलग, ठियोग), कामरू मंदिर (सांगला, किन्नौर), रूद्रदेवता मंदिर (देवठी-मझगांव, सिरमौर), बौइन्द्रा देवता (अढाल, रोहडू), शिरगुल देवता मंदिर (शामा, सिरमौर), मगरू महादेव मंदिर (छतरी, मण्डी), माहूनाग मंदिर (करसोग, मण्डी), गुड़ारू देवता मंदिर (गवास, रोहडू), महासू देवता मंदिर (बालीकोटी, शिलाई), नाग देवता मंदिर (जायली, चौपाल), दुर्गामाता मंदिर (शड़ी, ठियोग) तथा चेवली मंदिर शिमला (बलसन, ठियोग)।

  • हिमाचल में बौद्ध-वास्तुकला के मुख्य गोम्पा (मंदिर) अपनी बने हैं विशिष्ट शैली में

हिमाचल में बौद्ध-वास्तुकला के मुख्य गोम्पा (मंदिर) अपनी विशिष्ट शैली में बने हैं। इनमें प्रमुख गोम्पा की-कीह स्पीति (982-1०54 ई.), ढंक्खर गोम्पा, स्पीति (958-1०55 ई.) बौद्ध गोम्पा, रिब्बा (958-1०55 ई.) बौद्धमठ, नामगया, किन्नौर, पूह गोम्पा, किन्नौर तथा शाहसुर गोम्पा, लाहौल जैसे अनेक गोम्पा बौद्ध वास्तुशैली में बने हैं।

मुगल मिश्रित वास्तुशैली के मुख्य मंदिरों में ज्वालामुखी मंदिर (कांगड़ा), ब्रजेश्वरी मंदिर (कांगड़ा), श्यामाकाली मंदिर (मण्डी), भुवनेश्वरी मंदिर (मण्डी), बाला सुन्दरी मंदिर, त्रिलोकपुर (सिरमौर) तथा शिव मंदिर, (रानीताल, सिरमौर)।

  • काष्ठ-कला

  • मंदिरों की खिड़कियों और दरवाजों पर भी पशु-पक्षियों के चित्र अंकित

मध्ययुग में काष्ठ-कला अपनी चरमसीमा पर पहुंची जबकि अनेक मंदिरों का निर्माण किया गया। इन मंदिरों में धार्मिक क्रिया-कलापों को करते हुए पहने जाने वाले लकड़ी के मुखौटों पर नक्काशी की जाती थी। इन मंदिरों की खिड़कियों और दरवाजों पर भी पशु-पक्षियों के चित्र अंकित हैं। काष्ठ-कला के सर्वाधिक महत्वपूर्ण उदाहरण हैं चम्बा के लक्षणा देवी और शक्ति देवी के मंदिर, लाहौल में मृकुल देवी का मंदिर, निरमंड कुल्लू में दखणी देवी का मंदिर, मण्डी में मगरू महादेव तथा शिमला के पहाड़ों में मणाण देवी का मंदिर। दीवारों, छतों और दरवाजों की चौखटों पर की गई नक्काशी में रामायण, महाभारत और पुराणों से दृश्य अंकित किए गए हैं। लकड़ी की कलात्मक मूर्तियां बहुत कम हैं परन्तु इसके कुछ उदाहरण जुब्बल और कुल्लू घाटी में पाए जाते हैं।

  • कांगड़ा में मसरूर में एक ही चट्टान को काटकर बने मंदिरों में देखा जा सकता है

पूरे हिमालय क्षेत्र में नागर शैली के प्राचीनतम उदाहरण कांगड़ा में मसरूर में एक ही चट्टान को काटकर बने मंदिरों में देखा जा सकता है। ये मंदिर एक ही चट्टान को काटकर बनाए गए हैं और प्राचीनतम नागर शैली के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ये आठवीं शताब्दी के हैं। मसरूर के चट्टानों से बने मंदिर, चट्टानों को काटकर बनाए मंदिरों के लिए अद्वितीय हैं क्योंकि इस प्रकार के मंदिर पश्चिमी और दक्षिणी भारत में तो बहुत मिलते हैं परन्तु हिमालय क्षेत्र में नहीं मिलते।

भरमौर का मणिमहेश मंदिर (700 ई.), चम्बा में स्थित तीन विष्णु और तीन शिव-मंदिर (10 वीं शताब्दी), लाहौल का त्रिलोकीनाथ मंदिर, बजौरा का विश्वेश्वर महादेव मंदिर, कुल्लू के नगर और दशाल में स्थित गौरीशंकर का मंदिर, रामपुर बुशैहर के निकट नीरथ में स्थित सूर्य मंदिर और जुब्बल की पुरानी राजधानी हाटकोटी के अनेक मंदिर इसी प्रकार के हैं।

  • मंडप शैली के मंदिरों में कांगड़ा के बैजनाथ का वैद्यनाथ मंदिर

मंडप शैली के मंदिरों में कांगड़ा के बैजनाथ का वैद्यनाथ मंदिर तथा मण्डी शहर में बने त्रिलोकीनाथ, पंचावतार और अद्र्ध-नारीश्वर के मंदिर आते हैं।

पाश्चात्य विद्वान हर्मन गोटज ने अपनी पुस्तक चम्बा के आरंभिक मंदिर (1955) में इस प्रदेश के मंदिरों में उपलब्ध काष्ठ-कला को, अद्वितीय कलाकृतियां कहा है। जिला शिमला में नीरथ में बने सूर्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर खुदे नंदी बैल की सवारी करते शिव की गोदी में पार्वती तथा शिवजी की जटाओं से बहती गंगा का चित्र मोहक है। चौपाल में बिजट देवता के मंदिर के विशाल प्रवेश द्वार पर बंदूक चलाते सिपाही, कुश्ती लड़ते पहलवान, खड्ग-नृत्य आदि के दृश्य बड़े सजीव तथा विचित्र लगते हैं।

  • लोक काष्ठकला: काष्ठकला के नमूने हिमाचल के घरों में भी

सतलुज के किनारे बसे सुंदर गांव निरथ में बहुत से प्राचीन मंदिर में से एक "सूर्य मंदिर"

सतलुज के किनारे बसे सुंदर गांव निरथ में बहुत से प्राचीन मंदिर में से एक “सूर्य मंदिर”

काष्ठकला के नमूने हिमाचल के घरों में भी मिल जाते हैं। घरों के मुख्य द्वारों, स्तम्भ या शहतीरों पर, छतों, बरामदों के अगले भागों में काठ की कलाकृतियों के नमूने देखे जा सकते हैं। कांगड़ा, गरली-परागपुर, कुल्लू, शिमला, चम्बा, भरमौर में रईसों के मकानों में भी ऐसे कार्य दिखाई देते हैं। प्राय: प्रत्येक घर में प्रवेश द्वार पर गणेश की मूर्ति उत्कीर्ण रहती है। दाएं-बाएं तोता, मोर आदि पक्षियों के चित्र रहते हैं। स्तंभों पर फुलकारी अंकन के साथ-साथ अभियान पर जाते राजा, कुश्तियां लड़ते पहलवान, नाग देवता अथवा कुल देवता आदि के चित्र अंकित हुए हैं।

काष्ठकला के अन्य नमूनों में चौकियां, छडिय़ां, फूलदान, फोटो-फ्रेम, अलमारियां, खेल-खिलौने, हार-श्रृंगार संबंधी सामग्री तथा आभूषण रखने के लिए बनी डिबियां तथा रामायण-महाभारत जैसे बड़े ग्रंथ रखने के लिए लकड़ी के तखते से बने दरगैलें (रैक्स) लोक-काष्ठकला के अच्छे नमूने हैं।

  • मूर्ति कला: हिमाचल में पत्थर और धातुओं की उत्कृष्ठ मूर्तियां बनाई गई

भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में गुप्त वंश के पश्चात का युग जिसे राजपूत काल भी कहते हैं हिमाचल के कलात्मक इतिहास में उत्कर्ष काल का सूचक है और इस काल में हिमाचल में पत्थर और धातुओं की उत्कृष्ठ मूर्तियां बनाई गई। इस कला के पत्थर में अद्वितीय नमूने हाटकोट, नीरथ, निरमण्ड, ममेल, मसरूर और अन्य कई स्थानों पर देखे जा सकते हैं।

जुब्बल के हाटकोटी में महिषासुरमर्दिनी, चम्बा में लक्षणा देवी, शक्ति देवी, नरसिम्हा, गणेश, नन्दी और चतुमूर्तियां, लाहौल में मृकुल देवी, कुल्लू में त्रिपुरा सुन्दरी और बुशैहर के राजा की कुलदेवी भीमा काली की सराहन स्थित मूर्तियां इस युग की उपज हैं।

  • हिमाचल अपनी कुछ श्रेष्ठतम धातु मूर्तियों पर कर सकता है गर्व

  • हिमाचल में कांस्य मूर्तिकला का विकास प्राचीन काल से ही होने लगा था

हिमाचल प्रदेश अपनी कुछ श्रेष्ठतम धातु मूर्तियों पर गर्व कर सकता है। इस दृष्टि से 7वीं शताब्दी में निर्मित हाटकोटी की महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति तथा चम्बा में हरिहर के मंदिर में बैकुंठ विष्णु की मूर्तियां अद्वितीय हैं।

हिमाचल में कांस्य मूर्तिकला का विकास प्राचीन काल से ही होने लगा था। कला समीक्षक बी.एन. शर्मा के अनुसार छतराहड़ी, भरमौर, बजौरा एवं कलापूर्ण मूर्तियां दिखाई पड़ती हैं। इनमें से कुछ हिमाचल के मंदिरों से लाई गई हैं और अत्यंत जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। चम्बा क्षेत्रीय कांस्य मूर्तियों पर शिल्पकार गुगा का नाम अंकित मिलता है। गुगा, चंबा के राजा मेरूवर्मन के समय, आठवीं शताब्दी में था। मेरूवर्मन की आज्ञा से उसने अनेक मूर्तियां बनाई। स्कंद-कार्तिकेय की मूर्ति छठी शताब्दी की है। कांस्य मूर्तियों में सदाशिव पत्नी, गणेश, विष्णु, उमा-महेश्वर, महिषासुर-मर्दनी, कार्तिकेय, दुर्गा शक्ति आदि की मूर्तियां श्रेष्ठ हैं। इनका आकार-प्रकार पौराणिक कथाओं के आधार पर निर्मित है। जिला शिमला तथा निरमंड में भी अनेक मूर्तिकार थे। 750 के पश्चात प्रतिहारों का लम्बा राज्यकाल मूर्तिकला के विकास का काल था।

  • मूर्तियों के अतिरिक्त कांस्य तथा पीतल के बर्तनों पर चित्रलेखन भी महत्वपूर्ण है

मूर्तियों के अतिरिक्त कांस्य तथा पीतल के बर्तनों पर चित्रलेखन भी महत्वपूर्ण है। कांगड़ा के गंगथ उपनगर में पीतल के बर्तनों का काम लोकप्रिय रहा। पीतल  के बने जलपात्र (मुसरब्बों), गिलासों, गड़बडिय़ों, थालियों, चरोटियों (पीतल के बड़े भांडे-बर्तन), संदूकचियों, डिब्बियों, पूजा-पात्रों, घंटियों तथा चौकियों आदि में भी कांस्य-पीतल कला दिखाई पड़ती है। चम्बा, कुल्लू, किन्नौर जनजातीय क्षेत्रों में भी बड़े घरानों में ऐसे कलात्मक बर्तन देखे जा सकते हैं।

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