हाथी पर सवार होकर आ रही हैं मां दुर्गा; जानें नवरात्र कलश स्थापना पूजा विधि व मुहूर्त : आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा

नवरात्र कलश स्थापना पूजा विधि व मुहूर्त : कालयोगी आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा

नवरात्र कलश स्थापना पूजा विधि व मुहूर्त : कालयोगी आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा

वर्ष में दो बार नवरात्रे आते हैं। पहले नवरात्रे चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरु होकर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तक चलते हैं। फिर नवरात्रे  शारदीय नवरात्रे कहलाते हैं। ये नवरात्रे आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरु होकर नवमी तिथि तक रहते हैं। दोनों ही नवरात्रों में देवी का पूजन किया जाता है। देवी का पूजन करने की विधि दोनों ही नवरात्रों में लगभग एक समान रहती है। नवरात्रों में माता के नौ रुपों की पूजा की जाती है।

आचार्य महिन्दर कृष्ण शर्मा के अनुसार इस बार शारदीय नवरात्रि रविवार के दिन शुरू होने के कारण माता का वाहन हाथी होगा। यानि मां दुर्गा अपने भक्तों के घर इस बार हाथी पर सवार होकर आएंगी। जबकि विदाई दशमी तिथि पर 24 अक्टूबर को होगी। दरअसल नवरात्रि के दिनों में जब देवी दुर्गा पृथ्वी पर आती हैं तो अलग-अलग वाहन में सवार होकर आती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि पर देवी के अलग-अलग वाहनों पर आना शुभ-अशुभ दोनों तरह के फल के संकेत होते हैं।

नवरात्रि में जब मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं तो ये बेहद शुभ माना जाता है। हाथी पर सवार होकर मां दुर्गा अपने साथ ढेर सारी खुशियां और सुख-समृद्धि लेकर आती हैं। हाथी को शुभ का प्रतीक माना गया है। ऐसे में आने वाला यह साल बहुत ही शुभ कार्य होगा। लोगों के बिगड़े काम बनेंगे। माता रानी की पूजा अर्चना करने वाले भक्तों पर विशेष कृपा होगी।

आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी कि दिनांक 15 अक्टूबर को सुबह 06:21 मिनट से लेकर सुबह 10:12 मिनट तक कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त है। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना किया जा सकता है। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:44 मिनट से लेकर 12:30 मिनट तक है। इस अवधि में कलश स्थापना कर सकते हैं।

व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है। इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है। इस दिन “दुर्गा सप्तशती” का पाठ किया जाता है। पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए।

नवरात्रि की पहली तिथि में दुर्गा माँ के प्रारूप माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है। इस दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं और सायंकाल में दुर्गा माँ का पाठ और विधिपूर्वक पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं।

पूजन प्रारंभ की प्रक्रिया

 पूजन प्रारंभ की प्रक्रिया

पूजन प्रारंभ की प्रक्रिया

हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है।  कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से  शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।

कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।

नवरातत्रों में मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा

नवरात्र भारतवर्ष में हिंदूओं द्वारा मनाया जाने प्रमुख पर्व है। इस दौरान मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं। बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। चैत्र और आश्विन नवरात्र में आश्विन नवरात्र को महानवरात्र कहा जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि ये नवरात्र दशहरे से ठीक पहले पड़ते हैं दशहरे के दिन ही नवरात्र को खोला जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है।

नवरात्रों के साथ ही हिन्दू नवसंवत्सर शुरू

दसवें दिन कन्या पूजन के पश्चात खोला जाता है उपवास

मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसके बाद लगातार नौ दिनों तक मां की पूजा व उपवास किया जाता है। दसवें दिन कन्या पूजन के पश्चात उपवास खोला जाता है।

आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। हालांकि गुप्त नवरात्र को आमतौर पर नहीं मनाया जाता लेकिन तंत्र साधना करने वालों के लिये गुप्त नवरात्र बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। तांत्रिकों द्वारा इस दौरान देवी मां की साधना की जाती है।

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