पश्चिम हिमालय के राणा-राजा

हिमाचल इतिहास : राणा और ठाकुर अभी तक पुरानी उपाधि धारण किए

जाति विशेष का सूचक राणा और ठाकुर

जाति विशेष का सूचक राणा और ठाकुर

गणतन्त्र, जनपद राज्य प्रणाली में समय के साथ ह्रास हो गया। उनके प्रधान अथवा अन्य प्रमुख व्यक्ति शक्तिशाली बन गए। यही प्रधान, प्रमुख ठाकुर, राणा कहलाने लगे और छोटे इलाकों पर काब्ज होने लगे। इनकी अपनी-अपनी ठकुराई या राणा की रणूंह होती थी जिन पर इनका शासन चलता था। ये ठकुराई अथवा रणूंह बहुत छोटी-छोटी होती थीं। इनकी सीमाएं बदलती रहती थीं। यह कब अस्तित्व में आईं, कहना कठिन है। शायद पहाड़ों में इस प्रकार की सामन्तशाही प्रचलित रही हों। मुस्लिम इतिहासकार फरिश्ता लिखता है कि पहली शताब्दी के प्रारम्भिक काल में कन्नौज के राजा रामदेव ने कुमाऊं पर आक्रमण किया, उसे विजय किया और शिवालिक पहाडिय़ों की रियासतों को जम्मू किला तक, 500 छोटी-छोटी ठकुराई, रणूंह को जीतकर अपने मातहत कर लिया, इनमें बड़े राज्य नगरकोट-कांगड़ा और जम्मू के राजा भी शामिल थे।

  • जाति विशेष का सूचक राणा और ठाकुर

चम्बा रियासत जिसका क्षेत्रफल 3216 वर्ग मील था, में ही 100 से अधिक ठकुराई या रणूंह थे। राणा और ठाकुर जाति विशेष का भी सूचक है। खास वर्ग के प्रभावी लोग ठाकुर बने। राणा राजंक के लिए भी प्रयुक्त हुआ है। बैजनाथ में जो प्रशस्ति पत्र मिले थे वे भी इसकी पुष्टि करते हैं। गूं, अप्पर रावी घाटी में एक बहुत प्राचीन अभिलेख मिला है जिस पर अंकित है कि अशध राणा ने जो अपने को राजा मेरू वर्मन (7वीं शताब्दी) का सामन्त बतलाता है, मन्दिर का निर्माण किया। राजंक का सबसे प्राचीन वर्णन चम्बा के हिमगिरि परगना में मिलता है। इसमें वर्णन है कि यह मूर्ति सोमत के पुत्र भोगत ने स्थापित की और नवीं या दसवीं शताब्दी की है। साहो के पास सराहन (चम्बा) में भी उत्कीरित शिला मिली है जो दशवीं शताब्दी की है। बैरा परगना में राणा नागपाल ने देवी कोठी में बारहवीं शताब्दी में अपनी पत्नी की याद में शिला पर अभिलेख अंकित किया। पन्निहारों या नौनौं में इस प्रकार के शिलालेख राणाओं द्वारा स्थापित रावी और चन्द्रभागा घाटी में आम हैं।

Pages: 1 2

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *