विभागाध्यक्ष डॉ. विनय शंकर

हर मौसम में त्वचा की सही देखभाल जरूरी : डॉ. विनय

त्वचा रोगों के हो सकते हैं कई कारण

 इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज आईजीएमसी के चर्म रोग विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. विनय शंकर

इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज आईजीएमसी के चर्म रोग विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. विनय शंकर

अपनी त्वचा की देख-रेख के लिए हम क्या-क्या उपाय नहीं करते। अपनी मर्जी से चेहरे व त्वचा की सुंदरता को बरकरार रखने के लिए महंगी से महंगी क्रीम, लोशन आदि का उपयोग करते हैं। लेकिन क्या आपने जानते हैं कि ऐसी चीजों का इस्तेमाल करने से त्वचा को भारी नुकसान भी पहुंच सकता है। बेशक थोड़े समय के लिए त्वचा पर निखार आ भी जाए लेकिन उसके बाद त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है। त्वचा शरीर का सबसे बड़ा तंत्र है। त्वचा पर कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं यह सीधे बाहरी वातावरण के सम्पर्क सें होता है। इसके अतिरिक्त बहुत से अन्य तन्त्रों या अंगों के रोग भी त्वचा के माध्यम से ही अभिव्यक्त होते हैं। त्वचा के किसी भाग के असामान्य अवस्था को चर्मरोग कहते हैं। हालांकि त्वचा रोगों के कई कारण हो सकते हैं जैसे जन्मजात कारण, भौतिक कारण, रसायनों का प्रभाव, अस्वच्छता एवं संसर्गजनित रोग, त्वचा पर रहने वाले जीवाणु (बैक्टिरिया) इत्यादि कई कारण त्वचा रोग से संबंधित हैं। त्वचा की सही देखभाल के लिए जरूरी है बहुत सी बातों से आपका अवगत होना। इसीलिए इस बार हम आपको त्वचा से संबंधित समस्याओं को लेकर जानकारी देने जा रहे हैं। इस विषय को लेकर प्रस्तुत हैं  प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज आईजीएमसी के चर्म रोग विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. विनय शंकर से मीना कौंडल की बातचीत के मुख्य अंश:

प्रश्न : गर्मियों के दिनों में त्वचा का ख्याल किस प्रकार से रखना चाहिए? सन बर्न से त्वचा पर कितना खतरा बना रहता है?
उत्तर:  प्रत्येक मनुष्य की त्वचा एक जैसी नहीं होती और न ही इस पर समान कारणों का एक जैसा प्रभाव ही पड़ता है। इसलिए खासकर गर्मियों के मौसम में त्वचा का ख्याल रखना अधिक जरूरी है। सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों के प्रति एक्सपोजर से त्वचा का डैमेज होना ही सनबर्न कहलाता है। इसमें त्वचा लाल रंग की हो जाती है और हल्का दर्द महसूस होने के साथ यह छूने पर गर्म मालूम होती है। गोरी-त्वचा या हल्के रंग वाले लोग मैलेनिन की कमी के कारण सन बर्न का शिकार आसानी से बनते हैं। ऊंची जगहों पर रहने वाले लोग जहां सूरज की किरणें अधिक कठोर होती हैं उनके लिये मैदानों में रहने वाले लोगों की अपेक्षा सन बर्न के खतरे अधिक होते हैं। इसका उपचार है कि आप सन बर्न का उपचार केवल दर्द, सूजन और परेशानी घटाने में फायदेमंद हो सकता है और सन बर्न रहित हिस्से पर ठंडी चीज रखकर दबायें। ठंडे शॉवर्स भी मददगार होते हैं। जहां तक हो सके सन एक्सपोजर से बचें, सुबह 10 बजे से लेकर शाम के 4 बजे तक सूरज की किरणें काफी तेज व कठोर होती हैं। कम देर के लिये धूप में बाहर रहे और सुरक्षित समय में बाहर निकलना ज़्यादा बेहतर है। ऐसे कपड़े पहनें जिससे बॉडी ज़्यादातर ढंकी हुई हों और चौड़ी किनारी वाला हैट तथा यूवी किरणों को रोकने वाला सनग्लॉस इस्तेमाल करें।

प्रश्न : बाज़ारों में कई तरह की सनस्क्रीन उपलब्ध हैं। सनबर्न से बचने के लिए तरह-तरह के महंगे व सस्ते प्रोडक्ट  इस्तेमाल करते हैं। इससे त्वचा पर किस प्रकार की हानि व खतरा हो सकता है?
उतर: सनबर्न से बचने के लिए लोग कई बार महंगे तो कई बार सस्ते व घटिया प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं जिनका प्रभाव बेशक थोड़े समय के लिए नज़र भी आता है लेकिन बाद में इनके त्वचा पर घातक परिणाम सामने आ सकते हैं। त्वचा को लेकर आवश्यक है कि आप किसी भी तरह के प्रोडक्ट व सनस्क्रीन लोशन बिना डॉक्टर की सलाह के न इस्तेमाल करें। अपनी मर्जी से त्वचा के लिए इस्तेमाल किए गए प्रोडक्ट से जहां त्वचा पतली हो जाती है वहीं बेजान भी हो जाती है। जिससे त्वचा की चमक खत्म हो जाती है और त्वचा रूखी हो जाती है। यहां तक त्वचा पर इसके कई तरह के घातक परिणाम सामने आ सकते हैं।

प्रश्र: त्वचा के लिए साबुन का इस्तेमाल कितना सही है? हर मौसम में साबुन का इस्तेमाल त्वचा के लिए क्या मायने रखता है?
उत्तर:  कोशिश तो यही रहनी चाहिए कि त्वचा के लिए साबुन का इस्तेमाल कम से कम किया जाए। चाहे मौसम गर्मी का हो या फिर सर्दी का। अधिक भीगने पर त्वचा सिकुड़ सी जाती है। इस तरह की त्वचा पर साबुन का बुरा प्रभाव पड़ता है। अधिकतर लोग मुंह को साफ करने के लिए साबुन का इस्तेमाल ही करते हैं। साबुन का मुंह में अधिक इस्तेमाल करने से जहां कई बार खारिश हो जाती है वहीं त्वचा की नमी यानी ऑयल की कमी भी हो जाती है और त्वचा रूखी हो जाती है। इसलिए जहां तक हो सके साबुन का कम से कम इस्तेमाल किया जाना चाहिए। बहुत ज्यादा अधिक गर्म पानी से त्वचा को हानि पहुंचती है। नहाने के लिए अधिक गर्म पानी कभी इस्तेमाल न करें।
प्रश्र: त्वचा के जन्मजात कारण क्या हैं?
उत्तर:  त्वचा संबंधी कुछ रोग जन्म से होते हैं, जिनका कारण त्वचा का कुविकास है। इस प्रकार के रोग जन्म के कुछ दिन पश्चात् ही माता एवं अन्य लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। उदाहरणार्थ लाल उठे हुए धब्बे जिनमें रक्त झलकता है। ये शरीर के किसी अंग पर निकल सकते हैं तथा यह चिह्न तीन चार वर्ष की आयु में अपने आप मिट जाते हैं। इनकी किसी विशेष चिकित्सक से जांच करानी चाहिए। जिससे कोई खराब उभरा हुआ निशान न रह जाए।

प्रश्र: ठंड का त्वचा पर कितना प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:  ठंड का त्वचा पर बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है, विशेषकर यदि तापमान शून्य से नीचे हो। अधिक शीत से त्वचा की कोमल छोटी-छोटी महीन रक्तवाहिनी शिराएं सिकुडऩे लगती हैं तथा त्वचा नीली पड़ जाती है। इन शिराओं में रक्त जम जाता है तथा अंग गल जाता है। इसका प्रभाव कान, नाक और हाथ पैर की उंगलियों पर पड़ता है।
अधिक शीत के कारण कुछ लोगों के हाथ-पैर की उंगलियां सूज जाती हैं, लाल पड़ जाती हैं और उनमें घाव भी हो जाते हैं।  इस दौरान अपने आप से किसी भी प्रकार का इलाज नहीं करना चाहिए। बल्कि सीधे डॉक्टर से संपर्क करके इलाज करवाना चाहिए।

प्रश्र: अक्सर त्वचा पर छोटे-छोटे काले तिल हो जाते हैं जो देखने में बूरे लगते हैं इसके बचाव और उपाय क्या हैं?
उत्तर: सूर्य की तेज रोशनी में त्वचा पर छोटे-छोटे काले तिल हो जाते हैं। इसके लिए सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना बेहद आवश्यक है। तीन-चार घंटे के अंतराल में सनस्क्रीन का प्रयोग करते रहना चाहिए। त्वचा चाहे जैसी भी हो सनस्क्रीन का इस्तेमाल बेहद जरूरी है। बर्फ की रिफलेक्शन से बचने के लिए गॉगल्स और चौड़ी हैट्स पहन सकते हैं। इसके अतिरिक्त अपनी त्वचा की नियमित सफाई करें तथा साफ पानी से त्वचा को धोएं।
तेज धूप में जाते वक्त छाता इस्तेमाल करें। काले तिल के होने पर डॉक्टर से संपर्क करें। स्वयं किसी अन्य दवा का उपयोग नहीं करना चाहिए। गोरी त्वचा वाले लोगों को आसानी से फ्रेकल्स भी हो जाते हैं और सूरज की धूप से त्वचा निरंतर क्षतिग्रस्त होती रहती है। फ्रेकल्स ऐसी त्वचा का लक्षण है जो आसानी से सनबर्न का शिकार हो सकती है।

प्रश्र: त्वचा पर दाद, खाज और खुजली जैसी समस्या होना आम है इनके लिए क्या उपाय करने चाहिए?
उत्तर: दाद पर बिना डॉक्टर के परामर्श से किसी भी प्रकार की दवा इस्तेमाल न करें जिससे त्वचा को हानि पहुुंचे। यह रोग पसीना आने वाले स्थानों पर अधिक होता है। इस कारण ऐसे स्थानों को पॉउडर द्वारा सूखा रखना चाहिए। साथ ही मरहम और पाउडर का प्रयोग दाद के ठीक होने के पश्चात् भी कुछ समय तक निरंतर करते रहना चाहिए। खुजली एक फंगल इंफेक्शन से भी हो सकती है। इसके अलावा कई बार यह भी देखा गया है कि खान-पान में विटामिन की कमी से भी त्वचा में संक्रमण हो जाता है जो कि एलर्जी का रूप ले लेता है। ऐसी परिस्थिति में डॉक्टर से सीधे संपर्क करने के बाद ही दवा का इस्तेमाल करें।

प्रश्र: त्वचा पर किसी जीवाणु (बैक्टिरिया) का किस तरह का प्रभाव हो सकता है?
उत्तर: त्वचा पर रहने वाले जीवाणु अधिकतर अपने आप ही त्वचा के रोग का कारण हो जाते हैं जो फोड़े, फुंसियों के रूप में चेहरे पर निकल आते हैं  । इन सब में जीवाणु किसी छुपने वाले स्थानों में छिपे रहते हैं  जिस जगह की त्वचा पर ये रोग प्रकट हों उसकी सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्र: बालों का गिरना, सफेद होना या गंजेपन की समस्या अधिक बनी रहती है जिसके लिए लोग कई प्रकार के प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं क्या इनसे कोई हानि हो सकती है?
उत्तर: गंजेपन के कई कारण हो सकते हैं। गंजेपन को दूर करने के लिए लोग कई प्रकार के उत्पाद या दवाईयों का सेवन करते हैं। परन्तु ऐसा नहीं है कि इससे बालों की समस्या शीघ्रता से दूर हो जाए। कुछेक ऐसी दवाईयां होती हैं जिनका सेवन नियमित रूप से तमाम उम्र भर करना पड़ता है। बढ़ती उम्र में भी बुढ़े न लगे, इसके लिए बालों को हेयर डाई से काला करते हैं। कई तरह की हेयर डाई से भी सिर की त्वचा पर इंफेक्शन हो जाते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि पूरी जांच के बाद ही इलाज करवाएं।

प्रश्र: मुलायम चमकदार व हेल्दी त्वचा के लिए कितनी जरूरी है सावधानी?
उत्तर: मुलायम और हेल्दी त्वचा किसे पसंद नहीं लेकिन बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो कितनी ही कोशिश कर लें लेकिन उनकी त्वचा कोमल और मुलायम नहीं होती शुष्क ही रहती है। इसके लिए वे बार-बार मॉश्चराइजर क्रीम, लोशन और ना जाने क्या-क्या लगाते हैं लेकिन फिर भी अपनी त्वचा में चिकनाहट नहीं ला पाते।

प्रश्र: उम्र बढऩे के साथ-साथ झुर्रियों की समस्याओं के क्या मुख्य कारण हो सकते हैं?
उत्तर: एक उम्र के बाद चेहरे पर झुर्रियां पडऩा आम बात है। लेकिन समय से पहले झुर्रियां पडऩे का अर्थ है, आपकी त्वचा को सही पोषण नहीं मिल रहा। आमतौर पर समय से पहले झुर्रियों के पडऩे के दो ही कारण होते हैं। त्वचा की सही देखभाल न होना और दूसरा रूखी व सामान्य त्वचा होना। रूखी त्वचा पर ही झुर्रियां सबसे अधिक पड़ती हैं क्योंकि त्वचा पर झुर्रियां पडऩे का असली कारण त्वचा का नमी खो देना है।  जब भी त्वचा अपनी नमी खोती है यानी त्वचा शुष्क होती है तो उस हिस्से में झुर्रियां पडऩी शुरू हो जाती है। दूसरी तरह से देखा जाए तो चेहरे पर झुर्रियों के पडऩे का कारण शारीरिक कमजोरी और उम्र का बढऩा माना जाता है। झुर्रियों की शुरूआत में चेहरे की ऊपरी परत पर लकीरें पडऩे लगती है। धीरे-धीरे यही स्थायी होकर झुर्रियां बन जाती है। बढ़ती उम्र के साथ त्वचा अपना लचीलापन खोने लगती है क्योंकि कोलेजेन और इलास्टिन का बनना कम हो जाता है। जिससे त्वचा अधिक पतली, सूखी होने लगती है और ढीली हो जाती है, यही से शुरू हो जाती हैं गहरी झुर्रियां पडऩे की समस्या। जो लोग बहुत अधिक समय तक धूप में रहते हैं उनकी त्वचा भी जल्दी ही नमी खोने लगती है और जल्दी ही उनकी त्वचा डैमेज हो जाने से झुर्रियों की चपेट में आ जाती है।

प्रश्र :  रूखी त्वचा पर झुर्रियों से बचाव के क्या उपाय हैं?
उत्तर : जो  लोग धूप में बहुत देर तक रहते हैं या कड़ी धूप में जिनकी त्वचा बाहर रहती है उनकी त्वचा भी रुखी पडऩे लगती है एवं उम्र के पहले हीं झुर्रियां पडऩे लगती हंै। झुरियों से निजात पाने के लिए अच्छा होगा कि दिन के वक्त जब भी घर से बाहर निकलना हो तो चेहरे के साथ ही साथ गर्दन पर भी सनस्क्रीन जरूर लगाएं। अगर आप चेहरे की त्वचा की अच्छी तरह से देखभाल करेंगे, खान-पान के प्रति सजगता बरतेंगे, अधिक मसालेदार और मीठी चीजों से बचेंगे तो आपको झुर्रियों की शिकायत लंबे समय तक नहीं होगी। आपको भी झुर्रियों से निजात पाने के लिए अपने खान-पान में संतुलन लाना होगा और पौष्टिक भोजन को प्राथमिकता देनी होगी। पेट साफ रखने और कब्ज जैसी समस्याओं को दूर कर आप बुढ़ापे तक चेहरे पर झुर्रियां पडऩे से रोक सकते हैं। त्वचा में नमी को बरकरार रखने के लिए 3-4 लीटर पानी पीना जरूरी है। चेहरे पर नियमित रूप से मॉश्चराइजिंग क्रीम से मसाज करनी चाहिए, इससे त्वचा में नमी बनी रहेगी।

प्रश्र: मुहांसों की समस्या और समाधान क्या है?
उत्तर: मुहांसे हार्माेनस संबंधी समस्या है। हार्मोनस बदलाव की वजह से भी मुहांसे हो जाते हैं। युवा पीढ़ी के लिये मुंहासों की समस्या एक आम समस्या का रूप धारण कर चुकी है। मुहांसे होने पर अपने आप कोई भी उपाय न करें। हमारी त्वचा के प्रत्येक रोमकूप के साथ एक तेल ग्रंथि रहती है जो एक तेल स्राव करती है जो कि वास्तविकता में एक प्राकृतिक फैट होता है और यही फैट कीटाणुओं के विकास में सक्रिय भूमिका निभाता है।
त्वचा का मैल पसीना और तेल बाहर नहीं निकलता और यही रोमकूप के नीचे एकत्र होकर मुंहासों के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इतना ही नहीं ये सब मुहांसों के साथ-साथ ब्लैक हैड्स, फुंसियों की समस्या को भी उत्पन्न करते हैं। चेहरे की सुंदरता को जहां नष्ट करते हैं वहीं ये विस्तृत दाग का रूप धारण कर लेते हैं।
मुहांसों की समस्या को उत्पन्न करने में जहां हारमोन की अहम भूमिका है। मुहांसों की समस्या उत्पन्न न हो इसके लिये त्वचा की नियमित सफाई उपयोगी रहती है।
इसके लिए जरूरी कुछ सावधानियां को बरता जाए जैसे संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन करें। दिन में कम से कम 10 से 15 गिलास पानी पियें। पेट में कब्ज न रहने दें। अधिक तैलीय पदार्थों का सेवन न करें। मिठाई, चाकलेट एरेटेड पेय व मसालेदार भोजन का सेवन नहीं करें। मासिक धर्म की गड़बड़ी हो तो डाक्टर से परामर्श करें और उसका उपचार कराएं। मुहांसों या दानों को कभी नोचें नहीं। मुहांसों को नोचने या बार-बार उनमें हाथ लगाने से, मुहांसों की समस्या और विकृत रूप धारण कर लेगी। मुहांसों पर सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग कदापि न करें। किसी भी प्रकार की अधिक समस्या हो तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं।

प्रश्र: बच्चों को भी कई बार त्वचा की समस्याओं से गुजरना पड़ता है इसके कारण, लक्षण व उपाय बताएं?
उत्तर: बच्चों की त्वचा बहुत कोमल होती है। इसलिए हमारे आसपास के वातावरण में मौजूद धूल कणों, वायरस और बैक्टीरिया की वजह से उनकी त्वचा में एलर्जी की समस्या हो जाती है। वैसे तो बच्चों को कई तरह की स्किन एलर्जी होती है जिसमें से चिकेन पॉक्स ज्यादा देखने को मिलती है। चिकेल पॉक्स एक वायरस बीमारी है जो एक बार ही होता है। अगर इसका एक भी वायरस रह जाए तो वह ब्रह्मसूत्री बन जाती है जो कि हानिकारक हो सकता है। इसका ईलाज संभव है और जल्दी ही इलाज करा लेना चाहिए।
चिकेन पॉक्स के लक्षण : शरीर में दर्द, बुखार, गले में खराश लाल रंग के दाने निकलना, जिनकी शुरुआत आमतौर पर चेहरे से होती है और फिर ये दाने पूरे शरीर में फैल जाते हैं। त्वचा में खुजली और जलन महसूस होना, पांच दिनों के बाद दाने सूखने लगते हैं और पंद्रह दिनों के बाद ये दाने सूखकर झडऩे लगते हैं।
उपचार एवं बचाव के लिए सबसे पहले जरूरी है कि इस एलर्जी का बचाव सिर्फ पहले से टीके लगवा कर ही किया जा सकता है। दो वर्ष की उम्र के पहले बच्चे को इससे संबंधित टीके जरूर लगवा लेने चाहिएं। अगर एक बार बच्चे में इस एलर्जी की शुरुआत हो जाए तो इसे बीच में रोकने के लिए कोई दवा नहीं होती। इस दौरान केवल विशेष देखभाल और बच्चे को तकलीफ में राहत पहुंचाने वाली दवाएं ही दी जा सकती हैं। अगर बच्चे को यह समस्या हो जाए तो डाक्टर को दिखाने के साथ ही इन बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए यह एलर्जी संक्रामक होती है। जब तक पूरी तरह ठीक न हो जाए, तब तक बच्चे को स्कूल न भेजें। घर में अगर एक बच्चे को यह समस्या हो तो दूसरे को उससे दूर रखें। इस दौरान बुखार रोकने के लिए बच्चे को अपने मन से दवा न दें।

प्रश्र: त्वचा कैंसर के कारण क्या हैं?
उत्तर: त्वचा कैंसर के लक्षण बहुत देर में नजर आते हैं। अगर शुरुआत

स्किन केयर

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में इसका पता चल जाए तो इसके इलाज में आसानी हो सकती है। धूप की अल्ट्रावायलेट किरणें ही त्वचा कैंसर का प्रमुख कारण हैं। लेकिन त्वचा का संक्रमण, किसी चोट का दाग, शरीर पर मस्से भी इसके प्रमुख कारण हो सकते हैं। खान-पान और जंकफूड भी त्वचा कैंसर का कारण बन सकते है। ज्यादा देर तक धूप सेंकना भी त्वचा के लिए जोखिम कारक हो सकता है।  त्वचा कैंसर का पता अगर देर से चले तो यह जानलेवा साबित हो सकती है। इसलिए अगर आपको त्वचा से संबंधित कोई संदेह हो तो चिकित्सक से अवश्य संपर्क अवश्य करें।

प्रश्र: एक्ने क्या है? इसका इलाज किस तरह संभव है?
उत्तर: एक्ने सौंदर्य पर दाग यदि चेहरे पर मुंहासों जैसे ढेर सारे दाने पास-पास और गुच्छे की शक्ल में हों और बहुत दिनों तक बने रहें तो सावधान हो जाइए। यह एक्ने हो सकता है। अगर आपके परिवार में एक्ने की हिस्ट्री रही है यानी आपके मां या पिता को भी यह समस्या रही है तो भी आपको इससे बचाव की कोशिशें शुरू कर देनी चाहिए। एक्ने तीन तरह के होते हैं। पहले प्रकार के एक्ने में ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स आते हैं। इसके उपचार के लिए रेशियोनिक एसिड क्रीम लगाने की सलाह दी जाती है छह से आठ हफ्ते में इस तरह का एक्ने ठीक हो जाता है। दूसरी तरह के एक्ने में कीलों के साथ लाल दाने हो जाते हैं। इसके लिए एंटीबायटिक दवाएं दी जाती हैं। तीसरी तरह के एक्ने में त्वचा पर सिस्ट हो जाते हैं। इसके  लिए आईसोट्रीट्वाइन नामक कैप्सूल दिए जाते हैं। इस तरह के एक्ने का इलाज लगभग 8 महीने चलता है और एक महीना पूरा होने पर लगभग दस प्रतिशत अंतर नजर आने लगता है। अंतिम प्रकार के एक्ने के ठीक हो जाने के बाद चेहरे पर गड्ढेनुमा दाग पड़ जाते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि आप त्वचा विशेषज्ञ से ही अपना इलाज करवाएं। एक्ने त्वचा का एक डिसऑर्डर है। यह मुंहासों का ही बिगड़ा हुआ रूप है। फर्क यह है कि आमतौर पर मुंहासे जहां बिना किसी विशेष उपचार के किशोरावस्था के बाद स्वयं ही ठीक हो जाते हैं, वहां एक्ने के साथ ऐसा नहीं होता और जब तक इसका सही ढंग से इलाज न हो, यह ठीक नहीं होता।

प्रश्र: ब्लैक हैड्स क्या है?
उत्तर: कई लड़कियों को पीरियड्स से पहले हर बार मुंहासे निकल आते हैं जो बिगडक़र एक्ने का रूप ले सकते हैं। ऐसा ओव्यूलेशन के बाद प्रोजेस्टरॉन हार्मोन के ज्यादा सिक्रीशन की वजह से होता है। इससे त्वचा पर छोटे-छोटे दानों के गुच्छे से बन जाते हैं। इसी तरह सिबेशस ग्रंथियों से उत्पन्न सीबम त्वचा के पिगमेंट (रंग निर्धारक तत्व) से मिलकर रोमछिद्रों को ब्लॉक कर देता है तो ब्लैक हैड्स बनते हैं। अगर त्वचा की अंदरूनी परत में सीबम जमा हो जाता है तो व्हाइट हैड्स बनते हैं। कई बार ब्लैक हैड्स और व्हाइट हैड्स त्वचा के भीतर फैलने के बाद फूट जाते हैं, जिससे बाहरी त्वचा पर एक्ने और फैल सकता है।

प्रश्र: प्रेग्नेंसी के दौरान किस प्रकार त्वचा का ख्याल रखा जा सकता है?
उत्तर: गर्भावस्था में शारीरिक बदलावों का महिला की त्वचा पर भी काफी असर पड़ता है। इन दिनों कई महिलाओं के चेहरे और शरीर की त्वचा बदरंग और धब्बेदार हो जाती है, तो कई महिलाओं की त्वचा में इस दौरान एक खास तरह की चमक आ जाती है। गर्भावस्था में त्वचा के रंग में बदलाव के आने की मूल वजह शरीर में रक्त संचार का घटना, बढऩा, गर्भावस्था में शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा में असंतुलन होना होता है, जिसकी वजह से कई महिलाओं के चेहरे पर दाने, मुंहासे या अन्य और कई तरह की समस्याएं हो जाती हैं। इसके जरूरी है कि गर्भावस्था के दौरान सनस्क्रीन लोशन का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए, क्योंकि इन दिनों त्वचा बेहद संवेदनशील हो जाती है, जिसे सूर्य की घातक अल्ट्रावायलेट किरणें रूखा और बेजान बना देती हैं, जिसके कारण त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। अल्ट्रावायलेट किरणें हमारी त्वचा के कोमल तंतुओं को नष्ट कर देती हैं और जिससे त्वचा कैंसर होने का भी खतरा रहता है। गर्भावस्था के दौरान त्वचा काफी तैलीय हो जाती है। इसलिए इन दिनों त्वचा की साफ. सफाई पर विशेष ध्यान दें। यदि त्वचा की साफ-सफाई ढंग से न की गई तो रोम छिद्रों में मैल फंसने से त्वचा मैली दिखती है। साथ ही इससे संक्रमण होने का खतरा बना रहता है।

प्रश्र: पुरूषों को त्वचा की देखभाल के लिए कोई खास सुझाव?
उत्तर : पुरूषों की त्वचा महिलाओं की त्वचा से बहुत अलग होती है, क्योंकि यह मोटी होती है और इसमें कनेक्टिव टिश्यूज (कोलेजेन और इलास्टिन) की ज़्यादा तादाद इसे अधिक मज़बूत और लोचदार बनाती है।  वैसे भी गर्मी का असर हर किसी पर पड़ता ही है, भले ही वह पुरुष हो, बच्चा हो या फिर कोई महिला। हर किसी की त्वचा अलग तरह की होती है इसलिये उसके लिये भी अलग-अलग तरह की देखभाल की जरुरत होती है। सूरज से निकलती हुई यूवी रेज आपकी स्कीन की नमी को छीन कर आपको बूढ़ा बना सकती है। आप अपनी त्वचा साफ रखें। हर रोज नहाइये और अपने चेहरे को साफ रखें। गंदगी और तेल चेहरे के पोर्स को ब्लॉक कर देते हैं। सनस्क्रीन का रोज इस्तेेमाल जरूर करें। इस मौसम में पानी की कमी की वजह से डीहाइड्रेशन हो जाता है इसलिये रोज सुबह उठते ही पानी पीजिये। पानी पीने से शरीर की सारी गंदगी बाहर निकलती है। दिन में 7-8 गिलास पानी पीजिये। शेविंग के बाद हमेशा क्रीम लगानी चाहिये जिससे त्वचा में नमी बनी रहेगी।

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