कुल्लू में “जगत उत्त्पत्ति” संबंधी लोक-धारणा

“कुल्लू” में “जगत उत्पति”…..

 भगवान ने वाराह रूप धारण कर ब्यूनी के झटके से पृथ्वी को जल से उबारा

भगवान ने वराह रूप धारण कर ब्यूनी के झटके से पृथ्वी को जल से उबारा

कुल्लू में “जगत उत्पति” संबंधी लोक-धारणा

भारत के इतिहास का प्रारंभ उस समय से है जिसे आधुनिक भूविज्ञानवेत्ता महाहिम युग का समाप्ति काल मानते हैं। हिम पिघलने से पृथ्वी का विस्तृत भाग जलमगन हो गया। हिंदु काल गणना अनुसार वह ब्रह्मा के द्वितीय पराद्र्ध से आरंभ के श्री श्वेतवाराहकल्प का प्रथम चरण था। प्रलय काल बीतने पर ब्रह्मा ने नई मानव सृष्टि की रचना के लिए अपने शरीर से आदि मनुस्वायम्भुव और उसकी पत्नी शतरूपा को पैदा किया। ब्रह्मा ने मनु को नवीन सृष्टि के निर्माण की आज्ञा दी। मनु ने इसके लिए धरती की याचना की, पृथ्वी तो प्रलय में जलमग्न थी। भगवान ने वाराह रूप धारण कर ब्यूनी के झटके से पृथ्वी को जल से उबारा। बाहर आती पृथ्वी को दैत्य हिरण्याक्ष ने रोका। दोनों का युद्ध हुआ। हिरण्याक्ष परास्त हुआ। वाराह पृथ्वी को जल तल पर लाया। पृथ्वी का जो भाग सर्वप्रथम बाहर आया वह कुल्लू, लाहौल, स्पित्ति, के सीमावर्ती पर्वत इन्द्रकील शिखर था। देवगण, मनु और शतरूपा इस शिखर पर उतरे। वाराह को मिलाकर ये आदिदेव संख्या में अठारह थे। इसलिए अत्यंत प्राचीन से इनको कुल्लू में ठाराकरड़ू के नामा से जाना जाता है। आजकल यह शब्द कुल्लू जनपद के सभी देवी देवताओं के समूह के लिए प्रयुक्त होता है। जल उतरने पर कुल्लू और स्पित्ति का सीमावर्ती पठार उभर आया जो छ: कि.मी. लंबा और इतना ही चौड़ा था इन्द्रकील पवर्त शिखर से उतर कर ये देवगण पठार की उत्तरी सीमा के बायें कोण में हामटा (हेमकुट)  के स्थान पर आ रूके। यहां वाराह ने अपना रूप त्याग कर देवरूप धारण किया। ब्रह्मा ने उन्हें देवराज इन्द्र के पद पर अभिषिक्त किया। ये अठारह देवता-इन्द्र, वरूण, सोम, सूर्य आदि वैदिक देव, गौतम ऋषि, अन्य देवता और आदिमनु हैं।

मनु और शतरूपा से नवीन सृष्टि मानव का आरंभ

मनु और शतरूपा से नवीन सृष्टि (मानव) का आरंभ हुआ। कालान्तर में इस सृष्टि का विस्तार हुआ। पठार पर अनेक बस्तियां बस गईं। इन में भृतुतंग देऊटिब्बा, गिरवा कोठी, रूमटु ओर नालग मुख्य थी। महत्वपूर्ण गांव देऊटिब्बा था। यहां अठारह करड़ू और मानव लंबे समय तक रहे। यहां एक शिला पर्वत ये काटकर देऊटिब्बा पर इन्द्र सिंहासन बनाया गया। यहीं सर्वप्रथम जौ की खेती की गई और सोम का आविष्कार हुआ। वन्य गौ को पालतु बनाया गया। आग पैदा की। मानव सभ्यता का सूत्रपात यहां से हुआ।

कुल्लू में “जगत उत्त्पत्ति” संबंधी लोक-धारणा

कुल्लू में “जगत उत्त्पत्ति” संबंधी लोक-धारणा

मानव समूहों को साथ ले कर सतुलज से रावी के मध्य 18 गांव बसाए

रूमटु में सर्वप्रथम नरमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया। इसे कुल्लू बोली में “काहिका” कहते हैं। आज भी यह अनुष्ठान प्राचीन रीति अनुसार किया जाता है। उस प्रथम यज्ञ के अवसर पर घोर देवासुन संग्राम हुआ। उस समय पठार के दोनों ओर कुल्लू और स्पिति के सरोवरों का जल बह निकला था। दोनों ओर घटियां बन गईं। दरारें पड़ गई। वहां नाले बन गए। घाटी के बीच में होती हुई नदी बह निकली, जो विपाशा कहलाई। दूसरी ओर स्पित्ति घाटी में सरस्वती नाम की नदी बह निकली। ठारह करड़ुओं ने इस उथल-पुथल से अपनी परिस्थिति में देऊटिब्बा छोड़ दिया और मानव समूहों को साथ ले कर सतुलज से रावी के मध्य 18 गांव बसाए। इन्द्र के सिंहासन को नग्गर के स्थान पर लाया गया। सिंहासन प्रतिष्ठित कर उसका नाम जगतपिट्ट रखा। यहीं मनु को सार्वभौम सम्राट घोषित कर बहिष्मती जो आज की मनाली है मनु की राजधानी बना दिया। 18 गांव बसने के बाद जब मानव सृष्टि का और अधिक विस्तार हुआ तो मनु की यह संताने सब दिशाओं में फैल गई। यहीं वे आर्य कुल थे जो अपनी मूल देवभाषा  को साथ ले अन्य देशों में आ बसे और वहां नवीन मानव सभ्यता, धर्म और संस्कृति का विस्तार किया।

आदिकाल से लेकर आज तक के सामाजिक विकास और ह्रास का अक्षुण्ण इतिहास कुल्लू जनपद में विद्यमान

कुल्लू में “जगत उत्त्पत्ति” संबंधी लोक-धारणा

कुल्लू में “जगत उत्त्पत्ति” संबंधी लोक-धारणा

मनाली में मनु ने मानव धर्म संहिता की रचना की जो मनुस्मृति कहलाई। यहीं इन ठारा करड़ुओं ने जन विकास के लिए सत् और ऋतु पर आधारित एक धर्म की नींव रखी जिसका चरम लक्ष्य “अमरता की प्राप्ति” है। उपाय था यज्ञ और मार्ग था योग। मानव जीवन का आदर्श संसार से भागना नहीं संसार में रहते हुए सब प्रकार की पूर्णता प्राप्त करना था। देवता इस आदर्श की प्राप्ति के लिए सहायक हैं। असुखें हैं जो इस मार्ग का विरोध करते हैं। जो मानव देवों के मार्ग पर चलने वाले हैं वे ही आर्य ओर जो इनका विरोध करने वाले हैं, वहीं अनार्य हैं। आदिकाल से लेकर आज तक के सामाजिक विकास और ह्रास का अक्षुण्ण इतिहास कुल्लू जनपद में विद्यमान है। ऐसा कहा जा सकता है कि भारत के इतिहास का आरंभ ठारा करूड़ुओं के इतिहास से आरभं होता है।

हिमालय की तराई में समुद्र सूख कर पृथ्वी प्रकट हुई और मनु हुए प्रथम देवपुरूष

वास्तव में ठारा करूड़ुओं का ऊपर वर्णित इतिहास,  इसी पुस्तक के चंबा जिला इतिहास में वर्णित जालान्धर राक्षस और त्रिर्गत देश कि उत्पत्ति, अन्यत्र प्रारंभ में मनु का मत्सय अवतार द्वारा  हिमालय  की शिखर स्थल पर अवतरण एक ही तथ्य को भिन्न-भिन्न रूपकों के माध्यम से प्रकटीकरण करना है कि प्रलय में पृथ्वी जलमग्न थी, उत्तरी भारत के त्रिर्गत क्षेत्र में हिमालय की तराई में समुद्र सूख कर पृथ्वी प्रकट हुई और मनु प्रथम देवपुरूष हुए जिन्होंने मानवता का, मानव सभ्यता और ज्ञान का विस्तार किया। यहीं से मानव अन्यत्र, सर्वत्र फैला, मानव सभ्यता-संस्कृति का विकास हुआ।

  • साभार : हिमाचल प्रदेश का इतिहास, मंगत राम वर्मा

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