धर्मशाला में होगा बॉलीवुड के सितारों व सांसदों के बीच क्रिकेट मैच

धर्म-आस्था व कला का बेजोड़ संगम : कांगड़ा

चाय बागान पालमपुर

चाय बागान पालमपुर

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पालमपुर: पालमपुर कांगड़ा घाटी का एक प्रमुख एवं दूसरा सबसे बड़ा शहर है। समुद्रतल से 1205 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह शहर एक सैरगाह के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है। पालमपुर के नाम की उत्पत्ति स्थानीय बोली के ‘पुलम’ शब्द से हुई थी जिसका अर्थ है पर्याप्त जल। वास्तव में इस क्षेत्र में जल की कोई कमी नहीं। हर ओर जल के सोते, झरने एवं नदियां हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र की हवाएं शीतलता के साथ कुछ नमी भी लिए हैं। हवाओं की यह नमी तथा पहाड़ी ढलानों पर खुलकर पड़ती सूर्य की किरणों के कारण ही यहां की जलवायु चाय की खेती के अनुकूल बन पड़ी। कांगड़ा घाटी के इस क्षेत्र की विशेषता को भांप कर 1849 में डॉ. जेमसन ने यहां पहली बार चाय की खेती की थी। बाद में उन्होंने यहां बड़े चाय बागान स्थापित किए। धीरे-धीरे यह क्षेत्र चाय बागान से घिर गया। यही नहीं 1880 के दशक तक कांगड़ा चाय विश्वप्रसिद्ध हो चुकी थी। एक पठारी भाग पर स्थित पालमपुर इन चाय बागान के मध्य ही बसा है।

चाय बागान की सैर: पालमपुर का सबसे बड़ा पर्यटन आकर्षण यानी चाय बागान अपने आप में एक आकर्षण का केंद्र है। सुभाष चौक से थोड़ा आगे एक मार्ग न्युगल की ओर जाता है। उसी दिशा में मार्ग के दोनों ओर चाय बागान नजर आने लगते हैं। ढाई-तीन फुट ऊंचे, चाय के झाड़ीनुमा पौधों पर हरी पत्तियों के अलावा कुछ नजर नहीं आता। आप चाहें तो पालमपुर में कोआपरेटिव टी फैक्ट्री में चाय की प्रोसेसिंग का कार्य भी देख सकते हैं। आप वहां जाकर जान सकते हैं कि अंग्रेजों ने कांगड़ा चाय की खेती को बड़े ही वैज्ञानिक ढंग से विकसित किया था। तभी आज कांगड़ा वैली टी की उच्च गुणवत्ता विश्व प्रसिद्ध है। यहां से चाय को अनेक देशों को निर्यात किया जाता है।

पैराग्लाइडिंग: कांगड़ा घाटी साहसिक खेलों के लिए एक आदर्श स्थान है। यहां अनेक ऐसे ट्रेकिंग रूट हैं

पैराग्लाइडिंग बिलिंग कांगड़ा

पैराग्लाइडिंग कांगड़ा

जो ट्रेकर्स को निमंत्रण देते हैं। इस रूट के जरिये ट्रेकर्स वारू पास होकर पालमपुर से होली नामक स्थान, इंद्राहार पास से धर्मशाला तक बैजनाथ से थामसर पास होकर मनाली जा सकते हैं। इन मार्गो पर ट्रेकिंग के लिए मई से अक्टूबर तक का समय उपयुक्त होता है। जिस मार्ग पर भी निकल जाएं प्रकृति के मनमोहक नजरें आपका मन मोह लेंगे। कांगड़ा घाटी के बीड़ एवं बिलिंग नामक स्थान पैराग्लाइडिंग के लिए प्रसिद्ध हैं। ये स्थान भी पालमपुर से अधिक दूर नहीं हैं। मई-जून के माह में यहां पैराग्लाइडिंग रैली का आयोजन भी होता है। इनकी गिनती देश के महत्वपूर्ण पैराग्लाइडिंग स्थलों में होती है।

वेशभूषा: ऊंची पहाडिय़ों पर भेड़ चराते हुए गद्दी लोग या फिर काम से आते-जाते हुए रास्ते में पीठ पर किल्टा उठाएं गद्दी हर जगह आपका स्वागत करते नजर आएंगे। ये लोग नीचे पहाड़ी गांवों में रहते हैं तथा खेती करते हैं। किंतु गर्मियों में ये ऊंची पहाडिय़ों पर भेड़ चराने पहुंच जाते हैं। पुरुषों के जाने के बाद खेती का काम स्त्रियां देखती हैं। कुर्ता और तंग पजामी पहने, कमर पर बेल्ट के समान रस्सी लपेटे तथा सर पर टोपी पहने ये लोग अलग ही पहचाने जाते हैं। बंजारा प्रवृत्ति के ये लोग हमेशा पर्यटकों को सहयोग देते हैं। अपनी मस्त जीवनशैली के कारण ये कठिन परिस्थितियों में भी मस्त रहते हैं। घरों के बाहर बैठकर बुजुर्ग अपनी दिनभर की थकान मिटाने के लिए हुक्का पीते हुए भी देखे जा सकते हैं। जो अब बहुत कम देखने में मिलते हैं। घाटी में हम जिस ओर भी जाते स्थानीय वेशभूषा में खुशमिजाज लोग नजर आते। प्राय: पुरुष अच्छी कद-काठी के होते हैं। स्त्रियों के खनकते गहनों से उनका आभूषण प्रेम झलकता था। यहां अधिकतर घर स्लेट पत्थर की छतों के नजर आते हैं। कहीं समृद्ध लोगों के कोठीनुमा घर भी दिखाई देते हैं।

पिकनिक स्पॉट : उसी मार्ग पर चाय बागान की खूबसूरती को आत्मसात करते हुए हम न्युगल खड की ओर बढ़ गए। पठार के छोर पर एक खड़ी चट्टान पर स्थित यह एक पिकनिक स्पॉट है जहां हर ओर प्राकृतिक सुषमा का साम्राज्य है। यहां पर्यटन विभाग का न्युगल कैफे भी है। न्युगल खड करीब एक हजार फुट चौड़ी एक गहरी खंदक के समान है, जिसके मध्य बांदला जलधारा बह रही है। यहां शांत वातावरण और सुकून भरी जलवायु ने अपनी और मुग्ध कर देती है। वहां से नजर आने वाले दृश्य अद्भुत ही नहीं रोमांच भरे हैं। एक ओर चाय बागान की हरीतिमा बिखरी है तो दूसरी ओर धौलाधार पर्वतमाला की। 5000 फुट से भी ऊंची चोटियां अकलंक शुभ्रता का हिम मुकुट पहने खड़ी हैं। यहां पहुंच कर ऐसा महसूस होता है कि कुदरत जब अपनी अंजुरी से सौंदर्य बिखेर रही थी तो शायद यहां उसने पूरी अंजुरी ही उड़ेल दी थी। तभी यहां आने वाले सैलानी स्वयं को किसी सम्मोहन में कैद समझने लगते हैं। इस स्थान के निकट ही पांच शताब्दी पुराना बांदला माता मंदिर तथा विंध्यवासिनी मंदिर भी दर्शनीय है। कांगड़ा घाटी के चाय बागान लगभग दो हजार एकड़ में फैले हैं। इनके अलावा यहां चीड़ एवं देवदार आदि के वृक्षों की भरमार भी है।

पालमपुर बाजार: पालमपुर के बाजार यहां एक ही मुख्य मार्ग में स्थित है जिसके दोनों ओर पूरा बाजार है। बाजार में अच्छी रौनक देखने को मिलती है। यहीं कुछ छोटे रेस्तरां और फास्ट फूड केंद्र भी हैं। आसपास के गांवों के लिए खरीददारी का यह प्रमुख केंद्र है।

कांगड़ा घाटी: कांगड़ा का इतिहास काफी पुराना है। इसका प्राचीन नाम नगरकोट था। महाभारत काल में कौरवों के पक्ष में लडऩे वाले कटोच राजाओं के वंशज यहां राज्य करते थे। बाणगंगा और माझी नदी के संगम के निकट पहाड़ी पर यहां का एक हजार वर्ष पुराना किला आज भी उस दौर का मूक गवाह है। किंतु 1620 में मुगल बादशाह जहांगीर ने यहां कब्जा कर लिया था। 18वीं शताब्दी में राजा संसार चंद द्वितीय ने इसे मुगलों से पुन: प्राप्त कर लिया। 1905 में आए भूकंप से यहां के किले को भारी क्षति पहुंची। जिस किले की हर दीवार कभी गुलेर कांगड़ा शैली के मनमोहक चित्रों से सजी रहती थी, आज वह किला खंडहर में तब्दील हो रहा है। किले के कई प्राचीन चित्र चिम्बा, दिल्ली एवं चंडीगढ़ के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।

बैजनाथ पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण: प्राचीन बैजनाथ मंदिर करीब लगभग 1200 वर्ष पुराना वास्तुशिल्प एवं पुरातत्व की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां शिव को बैद्यनाथ के रूप में पूजा जाता है। बैजनाथ उसी का अपभ्रंश है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। इस तरह यह मंदिर धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस स्थान के संबंध में मान्यता है कि रावण ने इसी स्थान पर अपना शीश दस बार भगवान शिव को समर्पित किया था। विशाल परिसर में स्थित मंदिर के आसपास सुंदर उद्यान है, जहां से धौलाधार के शिखरों की कतार नजर आती है। शिवरात्रि के मौके पर यहां भव्य मेला लगता है। बैजनाथ के बाद तीर्थ स्थान है आंद्रेटा वैसे तो एक छोटा सा कस्बा है, लेकिन कुछ प्रसिद्ध कलाकारों की कर्मभूमि रहने के कारण यह काफी प्रसिद्ध है।

धर्मशाला

र्यटन नगरी कांगड़ा की खूबसूरती की बात हो रही हो अगर उसमें धर्मशाला की बात न हो तो सब बातें अधूरी ही हैं जी हां। धर्मशाला की खूबसूरती का अनोखा प्राकृतिक नजारा देखते ही बनता है। हिमाचल प्रदेश की धौलाधर पहाडिय़ों में बसा धर्मशाला देश-विदेश के सैलानियों का पसंदीदा पर्वतीय स्थल है। वर्ष 1855 में अंग्रेजों ने इस सुन्दर स्थान को बसाया था। दरअसल यह उन 80 रिसॉट्र्स में से था जिन्हें अंग्रेजों ने गर्मी से बचने के लिए तैयार करवाया था। पहाडिय़ों में चीड़ व देवधर के घने जंगलों और बर्फ को करीब से देखने के अनुभव के अलावा छोटे झरने व सुहाने नजारे इस जगह को सभी की पसंद बनाते हैं। हालांकि अब यहां तिब्बत के लोग ज्यादा रहते हैं, लेकिन ब्रिटिश काल का प्रभाव इस छोटे शहर पर आज भी महसूस किया जा सकता है। अब तो दुनिया के सबसे ऊंचे और ख़ूबसूरत क्रिकेट मैदान के लिए सुर्खियों में रहने वाला धर्मशाला, प्राकृतिक सौन्दर्य का अनमोल नमूना है। कांगड़ा घाटी में हिमालय की घौलाधार पहाडिय़ों पर बसे इस बेहद ख़ूबसूरत शहर की तरफ लोग बस खींचे चले आते हैं।

 मैकलॉडगंज

धर्मशाला का मैकलॉडगंज

हिमायल की दिलकश, बर्फ से ढकीं चोटियां, चारों ओर हरे-भरे खेत, हरियाली और कुदरती सुन्दरता, पर्यटकों का मन मोहने के लिए यहां सभी कुछ है। धर्मशाला को तिब्बती धर्म गुरू दलाई लामा का घर भी कहा जाता है। यहां तिब्बती संस्कृति की झलक खूब देखने को मिलती है। इसलिए इसे मिनी ल्हसा भी कहा जाता है। सियासी और धार्मिक एतबार से यहां तिब्बतियों और बौद्धों की संस्कृति है। धर्मशाला की ऊंचाई भी हिमाचल प्रदेश के दूसरे शहरों से ज़्यादा है। प्रकृति की गोद में शांति और सुकून से कुछ दिन बिताने के लिए यह बेहद अच्छी जगह है। शहर बहुत छोटा है इसलिए आप टहलते घूमते इसकी सैर दिन में एक नहीं कई बार भी कर सकते हैं। आध्यात्मिक आबोहवा गड्डी, तिब्बत, ट्रेकर्स, पर्यटक और स्थानीय विक्रेता सब मिलकर निचले धर्मशाला यानी कोतवाली बाजार में एक अलग ही माहौल बनाते हैं। यह जगह समुद्र तल से 125०मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। लोगों की आवाजाही होने की वजह से यहां खासी हलचल रहती है। समुद्र तल से 1768 मीटर की ऊंचाई पर बसे ऊपरी धर्मशाला यानी मैकलॉडगंज में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का निवास है। दोनों जगह की दूरी दस किलोमीटर है। जहां तक घूमने की बात है तो धर्मशाला में आपको एडवेंचर व आध्यात्मिक माहौल दोनों मिलेगा। ठंडी पहाड़ी हवाओं में गूंजती प्रार्थनाओं की आवाजें मन को एक सुकून देती हैं। धर्मशाला जाना दलाई लामा से मुलाकात के बिना अधूरा है। वैसे धर्मशाला की तमाम मोनेस्ट्रीज देखने लायक जरूर हैं और अलग-अलग समाधियों में भगवान बुद्ध की तांबे की प्रतिमाएं भी दर्शनीय हैं। अगर आप ध्यान करते हैं तो यहां के तुशिता मेडिटेशन सेंटर में मोंक्स द्वारा दी जाने वाली क्लासेज ज्वॉइन कर सकते हैं। यहां आपको साफ-सुथरे आवास की सुविधा भी मिलेगी। अगर आप दाल, चावल, रोटी और सैंडविच खाकर बोर हो गए हैं, तो यहां आप बेहतरीन तिब्बती खाने का मजा ले सकते हैं। यहां के कई रेस्तरां में आपको लजीज मोमोज व थुपका खाने को मिलेंगे। खाने का लुत्फ लेने के बाद आप लंबी वॉक, ट्रेकिंग और खूबसूरत नजारों में पिकनिक का मजा ले सकते हैं।

ठहरने की व्यवस्था: हिमाचल प्रदेश टूरिज़्म के होटलों में भी आप ठहर सकते हैं और अगर चाहे तो यहां हर बजट के होटल, गेस्ट हाउस, फारेस्ट हाउस बने हुए हैं

कांगड़ा पहुंचने के लिए: कांगड़ा शहर धर्मशाला से 17 किलोमीटर, शिमला से 220 और चंडीगढ़ से 235 किलोमीटर दूर है। धर्मशाला ही सबसे निकट का हवाई अड्डा है। ट्रेन से पठानकोट आकर कांगड़ा के लिए टैक्सी या बस ली जा सकती है। कांगडा बेहतर सडक़ मार्ग से धर्मशाला से जुड़ा है जो 17 किमी. दूर स्थित है। धर्मशाला हिमाचल और निकटवर्ती शहरों से जुड़ा हुआ है।

घूमने का बेहतर समय : हालांकि हिमाचल आप घूमने कभी भी आ सकते हैं यहां की खूबसूरती 12 महीने बरकरार रहती है लेकिन नए साल यानि मार्च के आस-पास यहां बहुत अच्छी संख्या में पर्यटक आने शुरू हो जाते हैं और मई से अक्तूबर तक पर्यटकों की तादाद बढ़ती रहती है। क्योंकि मई से अक्तूूबर के बीच यहां ट्रेकिंग सीज़न रहता है। इस दौरान काफी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा रहता है तो यदि आप वास्तविक शांति व एडवेंचर के मूड़ में हैं तो कांगड़ा की सैर पर निकल जायें। यहां की सुंदर और दिल को छूती हरी-भरी वादियों में आप जो सुकून महसूस करेंगे उस सुकून को पाने के लिए आप बार-बार हिमाचल आने के लिए जरूर विवश हो जाएंगे। हिमालय के पर्वतीय खूबसूरत और लुभावने नज़ारों का दीदार करने आप एक बार आएं तो बार-बार आने को दिल ललचा सकता है। कांगड़ा घाटी में बहुत सी प्राकृतिक, ऐतिहासिक और आस्थापूर्ण ऐसी स्मृतियां जिन्हें देखने के लिए आपका बार-बार मन होगा।

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