कुलदीप पठानिया ने ली जनसंपर्क अभियान की फीडबैक

जैव चिकित्सा कचरा के निदान के लिए विनियमन का कड़ाई से क्रियान्वयनः पठानिया

  • प्रदूषण वर्तमान परिवेश में एक अत्यन्त संवेदनशील मुद्दा : कुलदीप सिंह पठानिया
  •  राज्य में जैव चिकित्सा कचरा नियम, 2016 का कार्यान्वयन
  • जैव चिकित्सा कचरा प्रबन्धन पर जागरूकता कार्यशाला आयोजित

 शिमला: हि.प्र. राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा कि राज्य सरकार ने इस वर्ष मार्च से नए जैव चिकित्सा कचरा निदान नियम, 2016 को प्रख्यापित एवं क्रियान्वित किया है, जिनमें जैव कचरा के निदान की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। उन्होंने जैव चिकित्सा कचरा प्रबन्धन पर नए नियमों का कड़ाई से क्रियान्वयन करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि ये नियम काफी व्यापक हैं और स्वास्थ्य चिकित्सा संस्थानों, अपशिष्ट उपचार प्रदाता संचालकों, स्थानीय अधिकारियों, राज्य सरकार तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका को स्पष्ट तौर पर रेखांकित किया गया है। उन्होंने कहा कि विनियमन के नए स्वरूप, विशेषकर जैव चिकित्सा कचरा के थैलों एवं डिब्बों के लिए बार-कोड-प्रणाली से हेरा-फेरी की संभावना समाप्त होगी और साथ ही अवैध पुनर्चक्रण मण्डी में कचरे का प्रवेश बंद होगा तथा जैव चिकित्सा कचरा के समग्र प्रबन्धन में सुधार आएगा।

पठानिया आज यहां हि.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जैव चिकित्सा कचरा प्रबन्धन के बारे में हितधारकों को जागरूक करने के लिए आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर सम्बोधित कर रहे थे। कार्यशाला में स्वास्थ्य विभाग, चिकित्सा शिक्षा, आयुर्वेद, पशुपालन, भारतीय चिकित्सा संघ के सदस्य तथा आम जैव चिकित्सा कचरा निदान सुविधा प्रदात्ताओं सहित राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। पठानिया ने कहा कि प्रदूषण वर्तमान परिवेश में एक अत्यन्त संवेदनशील मुद्दा है और प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के प्रदूषण को लेकर चिंतित है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार प्रदूषण से जुड़े विभिन्न मुद्दों से निपटने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में राज्य के 764 अस्पतालों को जैव चिकित्सा कचरा प्रबन्धन नियम, 1998 के दायरे में शामिल किया गया है और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कुल्लू तथा सोलन में दो जैव चिकित्सा कचरा निदान सुविधा केन्द्र स्थापित करने के साथ-साथ राज्य के विभिन्न भागों में तीन कूड़ा-कचरा भस्म सयंत्र  सुविधा प्रदान की है। उन्होंने कहा कि गत तीन वर्षों के दौरान जैव चिकित्सा कचरा प्रबन्धन नियमों के अन्तर्गत शामिल किए गए संस्थानों की संख्या में 46 की वृद्धि हुई है, जबकि प्रतिदिन कचरा 1.47 टन से 2.05 टन तक पहुंचा है।

उन्होंने कहा कि भारत कचरा विशेषकर जैव चिकित्सा कचरा के निदान सम्बन्धी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि ई-कचरा एक नई चुनौती उभर कर सामने आई है, जो पर्यावरण स्वास्थ्य को खतरा बन रहा है। उन्होंने कहा कि कचरे के निदान में अपनाए जा रहे विनियमन, कानून एवं तौर-तरीकों से तब तक संतोषजनक परिणाम सामने नहीं आ सकते, जब तक सभी एकजुट प्रयास न करें। उन्होंने कहा कि इसके साथ-साथ कड़े नियमों एवं इनके प्रभावी क्रियान्वयन की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि केवल औद्योगिक क्षेत्र को ही प्रदूषण के लिए जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि इस क्षेत्र का प्रदूषण में केवल 25 प्रतिशत योगदान है। पठानिया ने कहा कि भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं मौसम परिवर्तन मंत्रालय ने कचरा नियमों के समूचे परिदृश्य पर विस्तारपूर्वक चर्चा के उपरांत म्यूनिसिपल कचरा, प्लास्टिक कचरा, ई-कचरा, जोखिमयुक्त कचरा तथा निर्माण एवं तोड़-फोड़ कचरा जैसे अन्य श्रेणियों के कचरे प्रबन्धन के लिए नियमों में संशोधन किया है।

उन्होंने कहा कि इस नए विनियमन ढांचे से न केवल जैव चिकित्सा कचरा के प्रबन्धन दृष्टिकोण में बदलाव आएगा, बल्कि अन्य श्रेणियों के कचरे का निदान भी सुगम होगा तथा विनियमन दिशा-निर्देशों की भी बेहतर ढंग से अनुपालना होगी।

हि.प्र. पर्यावरण, विज्ञान एवं तकनीकी की प्रधान सचिव तरूण कपूर ने कार्यशाला के समापन अवसर पर जैव चिकित्सा कचरा के समुचित प्रबन्धन के लिए स्वास्थ्य विभाग को पर्याप्त धनराशि के आवंटन तथा हिमाचल प्रदेश में इन नियमों के कार्यान्वयन के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एक निर्धारित प्राधिकरण के तौर पर सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया।

राज्य प्रदूषण बोर्ड के सदस्य सचिव डॉ. संजय सूद ने हिमाचल प्रदेश में जैव चिकित्सा कचरा प्रबन्धन की स्थिति पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी तथा 2016 के विनियमन के मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बल दिया कि स्वास्थ्य संस्थानों को अब विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तरल कचरा के लिए स्थल पर ही पूर्व उपचार सुविधा के लिए निर्धारित तौर-तरीकों को अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा अगले दो वर्षों में प्लास्टिक के थैलों, दस्तानों, रक्त थैलियों का इस्तेमाल समाप्त करना होगा।

उन्होंने कहा कि चिकित्सा गतिविधियों से पैदा होने वाला कचरा खतरनाक, जहरीला और यहां तक जानलेवा होता है। उन्होंने कहा कि रक्त बैंक भी अब नए नियमों के दायरे में आ गए हैं और इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कचरे को दबाने की अनुमति केवल दूरवर्ती एवं लोगों की पहुंच से बाहर के क्षेत्रों में ही होगी।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नई दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने जैव चिकित्सा कचरा प्रबन्धन नियम 2016 पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में औसतन कम कचरा पैदा होता है। इससे पूर्व, हि.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रधान वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. मनोज चौहान ने स्वागत किया, जबकि वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी हितेन्द्र शर्मा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।

 

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