मुख्यमंत्री का संस्कृत के विकास के लिए संस्कृत विद्वानों से आग्रह

  • संस्कृत का अध्यापन आकर्षक तथा अनुसंधान और व्यावहारिक होना चाहिए
  • मुख्यमंत्री ने पदमश्री रमाकांत शुक्ल, प्रो. प्रियव्रत शर्मा, प्रो. केशव शर्मा व प्रो. रिहास बिहारी द्विवेदी को किया सम्मानित

शिमला: मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि सभी भाषाओं की उत्पति संस्कृत से हुई है और सभी ग्रंथ, वेद, पुराण तथा महाकाव्य संस्कृत में लिखे गए हैं, और भारतीय होने के नाते हमें इस पर गर्व होना चाहिए। मुख्यमंत्री आज राजकीय संस्कृत महाविद्यालय सोलन में ‘संस्कृत का राष्ट्र व समाज के विकास में योगदान’ विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत कार्यशाला के अवसर पर बोल रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि देववाणी अथवा देवताओं की भाषा मानी जाने वाली संस्कृत हमें प्राचीन भारतीय सभ्यताओं के उद्भव एवं विकास को समझने में मदद करती है, जिसकी भारत को ‘विश्व गुरू’ बनाने में अह्म भूमिका है। उन्होंने कहा कि संस्कृति एवं संस्कृत भाषा एक दूसरे के पर्याय हैं तथा इनका संरक्षण एवं प्रोत्साहन करना अत्यावश्यक है। उन्होंने कहा कि संस्कृत हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। देश की सभी भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य विविधताओं का द्योतक हैं और हमारी प्राचीन परम्पराओं व संस्कृति के साथ-साथ इसका संरक्षण भी समय की आवश्यकता है।

वीरभद्र सिंह ने कहा कि यहां तक कि विदेशी भी संस्कृत भाषा व इसके इतिहास को अच्छी तरह समझने के लिए भाषा में गहरी रूचि दर्शाते हैं तथा मूल संस्कृत ग्रंथों का अनुसंधान करते हैं, क्योंकि इनमें प्राचीन समय के विचार एवं रहस्य छिपे हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत का अध्ययन आज पश्चिमी दुनिया में विदेशी भाषा के तौर पर किया जाता है। उन्होंने कहा कि भारत के महान ग्रंथों एवं महाकाव्यों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है, लेकिन इसके मूल स्वरूप का अपना ही महत्व है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रत्येक भारतीय को संस्कृत भाषा के मूल तत्वों का अध्ययन करना चाहिए, बेशक वह इसमें विद्वता हासिल न कर सके, लेकिन उन्हें इस भाषा का अध्ययन बोलने तथा समझने के लिए अवश्य करना चाहिए। वीरभद्र सिंह ने कहा कि समकालीन समस्यों का समाधान खोजने में संस्कृत का ज्ञान सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि इस कार्य के निष्पादन में संस्कृत में अनुसंधान के क्षेत्र में नई दिशा एवं दूरदर्शिता की आवश्यकता है।

मुख्यमंत्री ने युवाओं की भाषा में घटती रूचि पर चिंता जाहिर की तथा पारम्परिक भारतीय भाषाओं में और अधिक अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए उनका आह्वान किया। उन्होंने कहा कि सभी संस्कृत ज्ञाताओं को इस पर चिंतन व विवेचन करना चाहिए कि भाषा के विकास के लिए क्या किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संस्कृत का अध्यापन आकर्षक होना चाहिए, इसकी गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए तथा संस्कृत में अनुसंधान और अधिक व्यावहारिक व क्रियाशील होना चाहिए। वीरभद्र सिंह ने कहा कि राज्य सरकार संस्कृत भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिवद्ध है, और स्कूलों में संस्कृत को छठी से आठवीं कक्षा तक अनिवार्य बनाया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने हाल ही में तुंगेश संस्कृत कालेज का अधिग्रहण किया है। उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा है कि राज्य के प्रत्येक जिले में संस्कृत महाविद्यालय अथवा संस्थान होने चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार संस्कृत में उच्च शिक्षा के इच्छुक किसी भी विद्यार्थी को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। उन्होंने राज्य में संस्कृत भाषा को प्रोत्साहित करने वाले विद्वानों के प्रयासों की सराहना की।

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर पदमश्री रमाकान्त शुक्ल, प्रो. प्रियव्रत शर्मा, प्रो. केशव शर्मा व प्रो. रिहास बिहारी द्विवेदी को सम्मानित किया तथा उनका राज्य में स्वागत किया।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डा. (कर्नल) धनी राम शांडिल ने इस अवसर पर कहा कि संस्कृत एक मुख्य भाषा है और इसे व्यापक रूप से प्रोत्साहित करने तथा आगे ले जाने की आवश्यकता है। उन्होंने दसवीं कक्षा तक संस्कृत को अनिवार्य बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हमें संस्कृत भाषा को युवा पीढ़ी में लोकप्रिय बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्या पीठ नई दिल्ली के कुलपति प्रो. रमेश कुमार पांडे, सर्म्पूणानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र, डा. वाई.एस. परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. हरिचन्द शर्मा ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *