पत्थर की खदानों के लिए पंचायतों से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेने की प्रक्रिया समाप्त

  • मुख्यमंत्री के वन विभाग को वन स्वीकृतियों के लिए अग्रसक्रिय भूमिका निभाने के निर्देश

 

शिमला: प्रदेश सरकार ने सड़क एवं बिजली परियोजनाओं के विकास के लिए ग्राम पंचायतों के अधिकार क्षेत्र में शामिल पत्थर की खदानों के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेने की प्रक्रिया को समाप्त करने का फैसला लिया है। इस प्रक्रिया में सरलीकरण के उद्देश्य से यह निर्णय आज यहां प्रदेश में खनन गतिविधियों की समीक्षा बैठक के दौरान लिया गया। बैठक की अध्यक्षता मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने की और उद्योग मंत्री मुकेश अग्निहोत्री भी इसमें मौजूद थे। क्रशरों के आवंटन और विभिन्न औपचारिकताओं जैसे वन स्वीकृतियां, पर्यावरण विभाग, पंचायतों और अन्य संबंधित विभागों से अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त करने में होने वाले अनावश्यक विलम्ब के कारण विकास परियोजनाएं, विशेषकर सड़क निर्माण के कार्य प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए सरकार ने इस प्रक्रिया को सरल बनाते हुए भविष्य में सड़क व बिजली परियोजनाओं के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र की शर्त को हटा दिया है।

यह भी निर्णय लिया गया कि गतिशील (लाइव) रजिस्टरों का रख-रखाव किया जाएगा और क्रशरों की स्थापना के लिए आवेदन करने वाले आवेदकों का ऑनलाइन पंजीकरण किया जाएगा। इसकी मासिक रिपोर्ट मुख्यमंत्री कार्यालय को सौंपी जाएगी। इसके अलावा, सभी एसडीएम को भी निर्देश दिए गए हैं कि स्टोन क्रशरों की स्थापना के सन्दर्भ में समयबद्ध रूप से अपनी रिपोर्ट सौंपें।

मुख्य सचिव वी.सी. फारका ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण राज्य में 6000 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि को सड़क परियोजनाएं कार्यान्वित कर रहा है, इसलिए यह राज्य सरकार का उत्तरदायित्व है कि क्रशरों की स्थापना में प्राधिकरण को अपना पूरा सहयोग दे ताकि इस कार्य में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो सके। उद्योग मंत्री ने भी खदानों को स्थापना के लिए खनन नीति में बदलाव और प्रक्रिया के सरलीकरण का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि राज्य में वर्तमान में 150 कानूनी स्टोन क्रशर संचालित हैं, जबकि पूर्व सरकार के शासन में मात्र 12 से 15 क्रशर थे, जिसके कारण विकास कार्य ठप्प पड़ गए थे।

मुख्यमंत्री ने वन स्वीकृतियों को लेकर एक अन्य बैठक की अध्यक्षता करते हुए वन विभाग को वन स्वीकृतियां दिलाने के लिए अग्र सक्रिय कार्य पद्धति अपनाने तथा संबंधित विभागों को शीघ्र वन स्वीकृतियां दिलाने के लिए मार्गदर्शन के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि वन विभाग की प्रक्रियाओं औपचारिकताओं के कारण अनेक मामले लम्बित हैं। मुख्यमंत्री ने ने कहा कि सभी विभाग स्वीकृतियों के लिए विभाग को पूर्ण रूप से तैयार मामले भेजे तथा अगर किसी विभाग को कठिनाई आती है, तो वन विभाग के नोडल अधिकारी संबंधित विभाग के कर्मचारियों को सहयोग प्रदान करें। उन्हें नियमों के बारे में बताना चाहिए कि वे किस तरह मामले पेश करें। इसके अलावा, संबंधित विभागों के नोडल अधिकारियों के साथ साप्ताहिक बैठकें भी की जानी चाहिए।

वीरभद्र सिंह ने कहा कि एक हेक्टेयर वन क्षेत्र पर 13 प्रकार की विशिष्ट विकासात्मक गतिविधियां आरम्भ की जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि एक हेक्टेयर तक वन भूमि को विकासात्मक परियोजनाओं के लिए परिवर्तित किया जा सकता है और संबंधित वन मण्डलाधिकारी को इसमें सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए ताकि लोगों को लाभान्वित करने के लिए अधिक से अधिक विकासात्मक गतिविधियां चलाई जा सके। मुख्य सचिव ने किन्नौर तथा लाहौल एवं स्पिति जिला की वन स्वीकृतियों का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि अन्य वन मण्डलाधिकारियों को भी इसी तरह वन अधिकार अधिनियम एवं वन संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत शामिल 13 सेवाओं को स्वीकृति प्रदान करनी चाहिए।

बैठक में जानकारी दी गई कि अब तक 34 नए मामलों में वन स्वीकृतियां दी जा चुकी हैं, जिनमें से 10 मामले लाहौल, 10 स्पिति व 14 शिमला जिला से संबंधित हैं।

 

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