"चेरवाल" भादो माह में मनाया जाता है चेरवाल का त्यौहार

भादो माह में मनाया जाता है हिमाचल का “चेरवाल”, शाम को “चिड़े” की पूजा करते हैं परिवार के लोग

भादों की संक्राति से आरंभ होकर सारा महीना मनाया जाता है चेरवाल

कुछ स्थानों पर लोग शिवजी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर, संध्या के समय उसके आगे तेल का दीपक जलाकर पूरे महीने पूजा-पाठ करते हैं

कुछ स्थानों पर लोग शिवजी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर, संध्या के समय उसके आगे तेल का दीपक जलाकर पूरे महीने पूजा-पाठ करते हैं

प्रदेश में हर त्यौहार का अपना विशेष महत्व है। चाहे वो कोई भी त्यौहार हो। ऐसा ही एक त्यौहार है चेरवाल का त्यौहार। आग का त्यौहार चेरवाल भादों मास की पहली तारीख को मनाया जाता है। यह मध्य-अगस्त (15-16 अगस्त) में पड़ता है। यह पूरा मास चलता है। यह मध्य व ऊपरी भाग के क्षेत्रों का त्यौहार है जो भादों की संक्राति से आरंभ होकर सारा महीना मनाया जाता है। पहली भादों को लोग अपने खेत से मिट्टी का एक गोलाकार टुकड़ा उखाड़ते हैं और उसे लकड़ी के तख्ते पर या पक्की जगह रख देते हैं। इस गोलाकार मिट्टी के टुकड़े पर एक और ऐसा ही गोला रखा जाता है जिसके चारों ओर घास की चिगलियां और फूल बांधे जाते हैं।

शाम के समय चिड़े की पूजा करते हैं परिवार के लोग

शाम के समय परिवार के लोग चिड़े की पूजा करते हैं, उसमें सुगन्ध और पुष्प डालते हैं। इस दिन विशेष पकवान तैयार किए जाते हैं। इसके पश्चात् कुछ जलती हुई खपचियां चिड़े में डाल दी जाती हैं।

इसे पृतवीपूजा या पृथ्वीपूजा भी कहते हैं, बच्चे गाते हैं चिड़े का गीत

परिवार के बच्चे चिड़े का गीत गाते हैं। मास के अन्तिम दिन परिवार के बुजुर्ग फिर चिड़े की पूजा करते हैं और उसे भेंट चढ़ाते हैं। दूसरे दिन प्रथम असुज को चिड़े को उतारकर गोबर के ढेर पर फेंक दिया जाता है जहां से उसे खेतों में लाया जाता है। कुछ लोग इसे पृतवीपूजा या पृथ्वीपूजा भी कहते हैं।

कुल्लू में भदरांजो के नाम से विख्यात, जो कि पशु पूजा के रूप में मनाया जाता है

कुल्लू में इस त्यौहार को भदरांजो कहा जाता है जिसका अर्थ है भादों में मनाया जाने वाला त्यौहार। यह पशु पूजा के रूप में मनाया जाता है और पशुओं को फूलों से सजाया जाता है तथा उन्हें हल में नहीं जोता जाता।

चम्बा व मण्डी में यह त्यौहार पतरोरू संक्राति से प्रसिद्ध, इस उत्सव में बनाए जाते हैं पतरोड़ू नामक विशेष पकवान

चम्बा व मण्डी में इस त्यौहार को पतरोरू कहा जाता है। यह वास्तव में फूलों का त्यौहार है। इस दिन लोग आनन्दपूर्वक खाते-पीते हैं परन्तु केवल लड़कियां ही इस दिन नृत्य करती हैं। इस उत्सव के उपलक्ष में पतरोड़ू नामक विशेष पकवान तैयार किया जाता है।

ग्रामीण ग्राम देवता के आगे पूरे महीने जलाते हैं तेल का दीपक, इस महीने हल नहीं चलाते किसान

कुछ स्थानों पर लोग शिवजी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर, संध्या के समय उसके आगे तेल का दीपक जलाकर पूरे महीने पूजा-पाठ करते हैं। कुछ अन्य स्थानों पर ग्रामीण ग्राम देवता के आगे पूरे महीने तेल का दीपक जलाते हैं। उनका मानना है कि देवता इस महीने में विश्राम करते हैं और सोते हैं। किसान इस महीने हल नहीं चलाते। वे अपने पशु, भेड़ें और खच्चर ऊंचे स्थानों पर स्थित चरागाहों में ले जाते हैं।

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