प्रदेश में वन क्षेत्र को 30 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य

हरित आवरण वृद्धि के लिये हिमाचल में एक करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य

फीचर

  • प्रदेश भर में किया जा रहा औषधीय एवं चैड़ी पत्तियों के पौधों का रोपण
  • हिमाचल प्रदेश कार्बन क्रेडिट प्राप्त करने वाला एशिया का पहला राज्य
  • प्रदेश सरकार का इस वर्ष 150 करोड़ रुपये व्यय कर 15,000 हैक्टेयर वन भूमि पर एक करोड़ पौधे रोपने का लक्ष्य
  • इस वर्ष 35 लाख औषधीय पौधे लगाए जाने की भी योजना
  • वर्ष 2015-16 में 43 लाख औषधीय पौधे लगाए गए
  • पौधरोपण कार्यक्रम में चैड़ी पत्ती, जंगली फलदार व औषधीय प्रजातियों पर विशेष बल
  • मनरेगा कामगारों के माध्यम से विभिन्न प्रजातियों जैसे शहतूत, जामुन, सरू, शीशम, सफेदा, पीपल, देवदार, नीम इत्यादि के एक लाख पौधे रोपे

शिमला : सरकार प्रदेश के हरित आवरण में वृद्धि के निरंतर प्रयास कर रही है, ताकि पारिस्थितिकीय संतुलन और पर्यावरण संरक्षण को बनाए रखा जा सके। इसे मूर्त रूप देने के लिए प्रदेश में व्यापक पौधरोपण अभियान चलाए जा रहे हैं। इन अभियानों के तहत प्रदेश भर में औषधीय एवं चैड़ी पत्तियों के पौधों का रोपण किया जा रहा है ताकि क्षेत्रवासियों को भोजन, चारा एवं ईंधन प्राप्त हो तथा मानव एवं प्रकृति के मध्य बेहतर संतुलन सुनिश्चित किया जा सके।

सरकार के इन्हीं प्रयासों के चलते भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान, देहरादून द्वारा जारी वर्ष 2015 की इंडिया स्टेट ऑफ़ फोरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में वनों के कुशल संरक्षण एवं प्रबन्धन के परिणाम-स्वरूप प्रदेश में 13 वर्ग कि.मी. वन क्षेत्र की वृद्धि हुई है जोकि एक अति सराहनीय प्रायास है। सरकार के प्रयासों व जन सहभागिता से यह उपलब्धि हासिल हो सकी है। पौध-रोपण कार्यों के चलते हिमाचल की जनता को सीधे तौर पर लाभ मिलना आरम्भ हो गया है। हिमाचल प्रदेश कार्बन क्रेडिट प्राप्त करने वाला एशिया का पहला राज्य बन गया है। इसके चलते प्रदेश को कार्बन क्रेडिट बतौर 1.93 करोड़ रुपये की प्रथम किश्त प्राप्त हुई है, जिसे इस कार्य से जुड़े उपभोक्ता समूहों व पंचायतों में वितरित किया गया है।

सरकार प्रदेश के हरित आवरण को बढ़ाने के लिए सदैव संजीदा रही है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने 67वें राज्य स्तरीय वन महोत्सव के अवसर पर जिला बिलासपुर के नेरस में स्वयं पौधा रोपित कर प्रदेश में पौध-रोपण अभियान की शुरूआत की। इस अवसर पर नेरस के जंगलों में अर्जुन, हरड़, बहेड़ा और आंवला के पौधे रोपे गए। सरकार का वन महोत्सव मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोग न केवल सामुहिक रूप से वनों के प्रति जागरूक हों, बल्कि पौधरोपण कार्यक्रमों में भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें। प्रदेश सरकार द्वारा इस वर्ष 150 करोड़ रुपये व्यय कर 15,000 हैक्टेयर वन भूमि पर एक करोड़ पौधे रोपने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अतिरिक्त, इस वर्ष 35 लाख औषधीय पौधे लगाए जाने की भी योजना है।

प्रदेश में हरित आवरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयासों के चलते प्रदेश के सभी स्कूलों व उनके द्वारा गठित 3000 युवा क्लबों द्वारा 12 अगस्त, 2016 को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर प्रदेश भर में पौधरोपण किया जा रहा है। इसी प्रकार से प्रदेश के सभी सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाओं तथा आमजन को वर्षा ऋतु में ऐसे पौधरोपण अभियानों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने की अपील की गई है, ताकि प्रदेश के हरित आवरण में वृद्धि की परिकल्पना को साकार किया जा सके।

सरकार के हरित आवरण बढ़ाने के प्रयासों के अंतर्गत प्रदेश में विभिन्न योजनाओं के तहत वर्ष 2013-14 में 1.66 करोड़ पौधे रोपित कर 17429 हैक्टेयर, वर्ष 2014-15 में 1.35 करोड़ पौधे रोपित कर 12730 हैक्टेयर तथा वर्ष 2015-16 में 1.22 करोड़ पौधे रोपित कर 11449 हैक्टेयर क्षेत्र को वनों के अधीन लाया गया। इसके अतिरिक्त वर्ष 2013-14 में 45.30 लाख, वर्ष 2014-15 में 46.70 लाख तथा वर्ष 2015-16 में 43 लाख औषधीय पौधे लगाए गए। पौधरोपण कार्यक्रम में चैड़ी पत्ती, जंगली फलदार व औषधीय प्रजातियों पर बल दिया जा रहा है ताकि ग्रामीणों को पशुचारे के साथ-साथ जंगली फल व औषधी जैसी वन सम्पदा से सम्बन्धित स्वरोज़गार भी प्राप्त हो सकें। इसके साथ ही गत वर्ष प्रदेश में प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत निर्मित सड़कों के किनारों पर मनरेगा कामगारों के माध्यम से विभिन्न प्रजातियों जैसे शहतूत, जामुन, सरू, शीशम, सफेदा, पीपल, देवदार, नीम इत्यादि के एक लाख पौधे रोपे गए हैं।

पौधों की जीवित प्रतिशतता बढ़ाने के लिए पौधरोपण के रख-रखाव की अवधि तीन वर्ष से बढ़ाकर पांच वर्ष तथा कैम्पा के तहत पांच वर्ष से सात वर्ष की गई है, साथ ही आर.सी.सी. फैंसिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि इस प्रयोजन हेतु वनों का कटान न हो। प्रदेश को लैंटाना जैसे खतरनाक खरपतवार से निजात दिलाने के लिए वर्ष 2013-14 में 5 करोड़ रुपये व्यय कर 5000 हैक्टेयर वन भूमि, वर्ष 2014-15 में 16.48 करोड़ रुपये व्यय कर 10,000 हैक्टेयर क्षेत्र तथा वर्ष 2015-16 में 19.29 करोड़ रुपये व्यय कर 13,060 हैक्टेयर क्षेत्र को लैंटाना मुक्त कर ईंधन, चारा प्रजातियों तथा जल संरक्षण जैसे कार्य कर स्थानीय लोगों व घुमंतु चरवाहों को राहत पहुंचाई गई। इस वर्ष 16.07 करोड़ रुपये व्यय कर 13000 हैक्टेयर क्षेत्र को लैंटाना मुक्त कर पुनःस्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है।

प्रदेश में विकासात्मक कार्यों को गति प्रदान करने के लिए वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत विभिन्न विकास योजनाओं की स्वीकृति प्रक्रिया सरल की गई है, जिसके अंतर्गत एक हैक्टेयर तक वन भूमि स्थानान्तरण के मामले निपटाने के लिए राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है। इससे विभिन्न परियोजनाओं की स्वीकृति प्रक्रिया सरल हुई है। इसी के परिणामस्वरूप गत साढ़े तीन वर्षों के दौरान 202 विभिन्न विकासात्मक मामलों में 543.96 हैक्टेयर वन भूमि का हस्तांतरण किया गया, जिससे प्रदेश में विकासात्मक कार्यों को एक नई दिशा मिली है।

ग्रीन इंडिया मिशन योजना के तहत मण्डी, बिलासपुर, हमीरपुर तथा कांगड़ा जिलों में व्यापक वानिकी कार्य आरम्भ किए गए हैं। राष्ट्रीय बाँस मिशन के तहत नाहन, बिलासपुर, मण्डी, हमीरपुर तथा कांगड़ा जिलों में बाँस प्रजाति के विकास के लिए वर्ष 2014-15 में 1.49 करोड़ तथा वर्ष 2015-16 में 1.29 करोड़ रुपये व्यय किए गए। मिशन के तहत इस वर्ष 3.24 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं। राष्ट्रीय मैडिसिनल प्लांट बोर्ड के सहयोग से कांगड़ा, ऊना चम्बा कुल्लू सिरमौर, लाहौल-स्पिती व किन्नौर जिलों में वन औषधि सम्पदा के विकास के लिए 24 करोड़ की लागत से पांच परियोजनाएं सफलतापूर्वक कार्यान्वित की जा रही हैं। जर्मन सरकार तथा जर्मन विकास बैंक (के.एफ.डब्ल्यू) के सहयोग से जिला कांगड़ा व चम्बा में 310 करोड़ रुपये की हिमाचल प्रदेश फोरेस्ट इकोसिस्टम क्लाईमेट प्रूफिंग परियोजना स्वीकृत हुई है, जिसे अप्रैल, 2015 से आरम्भ किया गया। परियोजना के तहत मिलने वाली दो मिलीयन यूरो की ग्रांट के अनुबन्ध पर हस्ताक्षर हो गए हैं जिसे वन कर्मचारियों तथा स्थानीय समुदायों के क्षमता विकास पर खर्च किया जाएगा। परियोजना के तहत गत वर्ष 2.40 करोड़ रुपये व्यय किए गए जबकि इस वर्ष विभिन्न गतिविधियों पर 40 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं।

वानिकी एवं पर्यवरण संरक्षण सरकार के उचित मार्गदर्शन व जन-सहभागिता से ही सफल हो सकते हैं। इसलिए हम सब को यह प्रण लेना चाहिए कि वनों की बहुमूल्य धरोहर को न केवल मौजूदा पीढ़ी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी संजोए रखेंगे और इसका अवैध दोहन किसी भी व्यक्ति को नहीं करने देंगे। इस प्रयास से हम जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्परिणामों को कम करने में भी सहयोगी बनेंगे, जो वैश्विक स्तर पर एक गम्भीर समस्या का रूप धारण कर रही है।

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