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वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी): भारत के लिए क्रांतिकारी कदम

विशेष लेख

                               *प्रकाश चावला

 

122वां संविधान संशोधन भारत के राजनैतिक-आर्थिक इतिहास में मील का पत्‍थर साबित होगा। क्‍योंकि इस क्रांतिकारी कदम से देश को वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के रूप में अब तक का सर्वाधिक प्रगतिशील कर सुधार प्राप्‍त हो रहा है। इससे एक तरफ कारोबार और उद्योग के लिए आसानी होगी, वहीं दूसरी तरफ सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह होगी कि उपभोक्‍ताओं के लिए वस्‍तुओं और सेवाओं की कीमत में कमी आएगी। इस कदम से केंद्र और राज्‍यों को राजस्‍व में किसी प्रकार का नुकसान भी नहीं होगा। इसके अलावा जीएसटी से ऐसी कर व्‍यवस्‍था वजूद में आएगी जिससे सकल घरेलू उत्‍पाद में एक से डेढ़ प्रतिशत का इजाफा होगा और करों के मकड़जाल से मुक्ति मिलेगी।

उद्योग, व्‍यापार और निवेशकों में इस कदम से बहुत उत्‍साह है। अब भारत का स्‍थान कई बिन्‍दुओं के मद्देनजर देश में व्‍यापार की आसानी के संदर्भ में विश्‍व बैंक की रैंकिंग में ऊंचा हो जाएगा। यह सही है कि जीएसटी विधेयक पिछले एक दशक से लंबित था और राजग सरकार ने विस्‍तृत राजनैतिक सहमति बनाकर इसे पारित करवाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। इस विधेयक के संबंध में बहुत विवाद था जिसे हल करके भारत ने पूरे विश्‍व को यह सकारात्‍मक संदेश दिया है कि देश में एक अरब लोगों की भलाई के लिए आर्थिक सुधारों के प्रति राजनैतिक समर्थन प्राप्‍त किया जा सकता है।

  • जीएसटी क्‍या है?

विभिन्‍न प्रकार के अप्रत्‍यक्ष करों के जरिये राज्‍यों को भारी मात्रा में राजस्‍व प्राप्‍त होता है और उसका लगभग आधा यानी लगभग 16 लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार को प्राप्‍त होते हैं। व्‍यक्तिगत आयकर जैसे प्रत्‍यक्ष कर आबादी के एक छोटे हिस्‍से से ही प्राप्‍त होता है जबकि प्रत्‍यक्ष करों का प्रभाव प्रत्‍येक नागरिक पर पड़ता है। चूंकि अप्रत्‍यक्ष कर खपत के संबंध में होते हैं, इसलिए अमीरों और गरीबों, दोनों को समान रकम चुकानी होती है।

वर्तमान में संविधान, केंद्र और राज्यों को उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, सेवा कर, मूल्‍य संवर्धन कर (वैट), बिक्री कर, मनोरंजन कर, चुंगी, प्रवेश कर, खरीद कर, विलासिता कर जैसे अप्रत्‍यक्ष करों और विभिन्‍न अधिभारों को लागू करने का अधिकार देता है। केन्‍द्र और राज्‍य दोनों के पास इन करों को वसूलने के लिए अपने-अपने आधिकारिक तंत्र हैं, लेकिन केन्‍द्रीय उत्‍पाद शुल्‍क और वैट के लिए अधिकांश करों की गणना एक आधार पर की जाती है, जो कुछ चरण में स्‍वयं कराधान या विनिर्माण मूल्‍य श्रृंखला की अन्‍य चरण की शर्त पर भी की जाती है। इसलिए यह टैक्‍स पर लगने वाला टैक्‍स है, जिससे अंतिम उपभोक्‍ता के लिए सामान और सेवाएं ज्‍यादा महंगी हो जाती हैं और इसके अलावा उद्योग तथा व्‍यापार जीवन में भी कठिनाइयां पैदा होती हैं। इस तंत्र की खामियों का सबसे प्रत्‍यक्ष उदाहरण अंतर्राज्‍यीय सीमाओं पर देखा जा सकता है। जहां विभिन्‍न किस्‍मों के टैक्‍स की जांच और चुंगी तथा प्रवेश कर के भुगतान के लिए ट्रकों की लंबी लाइनें राजमार्गों पर यातायात को कई-कई घंटे जाम कर देती हैं। 1 अप्रैल, 2017 से वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने की उम्‍मीद है। इससे ये सभी टैक्‍स उपभोक्‍ता के लिए एक ही टैक्‍स में शामिल हो जाएंगे। केन्‍द्र, केन्‍द्रीय वस्‍तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी) लागू करेगा और वसूल करेगा, जबकि राज्‍य अपने-अपने राज्‍य के अंदर सभी लेन-देन पर राज्‍य वस्‍तु एवं सेवा कर (एसजीएसटी) लागू करेंगे और वसूल करेंगे। सीजीएसटी का इनपुट टैक्‍स क्रेडिट प्रत्‍येक चरण में उत्‍पादन पर सीजीएसटी देयता की अदायगी पर उपलब्‍ध होगा। इसी प्रकार कच्‍चे माल पर भुगतान किये गये एसजीएसटी का क्रेडिट उत्‍पादन पर एसजीएसटी के भुगतान के लिए लागू किया जाएगा। सेवाएं और वस्‍तुएं प्रत्‍येक चरण में मूल्‍य संवर्धन पर लगने वाले कर के अधीन होंगे। इस प्रकार उपभोक्‍ताओं के लिए करों के समग्र भार को कम किया जा सकेगा।

  • विनिर्माण से गंतव्य तक

वर्तमान प्रणाली में जहां उत्‍पाद एवं केन्‍द्रीय बिक्री कर फैक्‍ट्री के गेट पर विनिर्माण स्‍तर पर ही लागू कर दिए जाते हैं या सामानों की अंतर्राज्‍यीय ढुलाई पर लगा दिए जाते हैं, वहीं जीएसटी में यह कराधान गंतव्‍य स्‍तर पर लागू होता है। इसका अर्थ यह है कि इससे खपत वाले राज्‍य को लाभ और विनिर्माण वाले राज्‍य को हानि हो सकती है।

यही कारण है कि अच्‍छे विनिर्माण आधार वाला राज्‍य जैसे कि तमिलनाडु जीएसटी के खिलाफ था और व्‍यापक उपभोग करने वाले राज्‍य जैसे कि बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा इसके समर्थन में थे। हालांकि, जीएसटी विधेयक में पांच वर्षों तक राज्‍यों को होने वाले नुकसान की शत-प्रतिशत भरपाई करने का प्रावधान किया गया है। नुकसान में रहने वाले राज्‍यों के लिए अतिरिक्‍त एक फीसदी शुल्‍क लगाने के पूर्ववर्ती प्रावधान को हटा दिया गया है।

  • महंगाई पर असर

विश्‍लेषकों का मानना है कि अल्पावधि में सेवाओं की कीमतों पर कुछ असर पड़ सकता है, जिन पर अभी केंद्रीय स्‍तर पर केवल तकरीबन 14 फीसदी का ही सेवा कर औसतन लगता है। हालांकि, निर्मित उत्‍पादों जैसे कि ऑटोमोबाइल के मामले में मानक जीएसटी का असर उत्‍पाद शुल्‍क और राज्‍यों द्वारा वसूले जाने वाले करों के संयुक्‍त वर्तमान असर की तुलना में बहुत कम रह सकता है। वैसे, मध्यम से लेकर दीर्घ अवधि में इसका असर समाप्‍त हो जाना चाहिए। विशुद्ध रूप से अगर देखा जाए तो जीएसटी महंगाई के कहर को कम कर सकता है और इस तरह यह व्‍यापार/उद्योग जगत के साथ-साथ आम जनता के लिए भी अनुकूल साबित हो सकता है। इसके अलावा, यह अर्थव्‍यवस्‍था के असंगठित क्षेत्र के बड़े हिस्‍से को मुख्‍य धारा में लाएगा।

  • जीएसटी दर

इसकी तकरीबन तीन दरें होंगी- ‘x’ के रूप में मानक दर, जिसके दायरे में ज्‍यादातर वस्‍तुएं होंगी, आम उपभोग वाली वस्‍तुओं के लिए ‘x-माइनस’ और विलासिता वाली वस्‍तुओं अथवा तथाकथित ‘नीति विरुद्ध वस्‍तुओं’ के लिए ‘x-प्‍लस’। संविधान संशोधन में जीएसटी दरों का कोई भी उल्‍लेख नहीं किया गया है, जिसके बारे में निर्णय जीएसटी परिषद लेगी जिसमें अध्‍यक्ष के तौर पर केंद्रीय वित्‍त मंत्री और राज्‍यों के वित्‍त मंत्री शामिल होंगे। जीएसटी परिषद में लिए जाने वाले किसी भी निर्णय के लिए परिषद के तीन चौथाई सदस्‍यों की मंजूरी आवश्‍यक होगी। राज्‍यों के पास दो तिहाई मताधिकार और केंद्र के पास एक तिहाई मताधिकार होंगे। कांग्रेस पार्टी ने जीएसटी दर के लिए 18 फीसदी की सीमा तय करने की मांग की है, जबकि सरकार ने राजस्‍व तटस्‍थ दर (आरएनआर) सुनिश्चित करने का आह्वान किया है। आरएनआर में व्‍यापक तब्‍दीली या तो महंगाई अथवा राजकोषीय विवेक के लिहाज से प्रतिकूल साबित हो सकती है। केंद्र एवं राज्‍य दोनों के लिए उचित आरएनआर तय करना एक बड़ी चुनौती साबित होगा।

  • दायरे से बाहर रखना

राज्‍यों की चिंताओं को ध्‍यान में रखते हुए पेट्रोलियम उत्‍पादों और मादक पेय को फिलहाल जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, क्‍योंकि उन्‍हें आशंका है कि राजस्‍व के लिहाज से काफी अहम माने जाने वाले इन उत्‍पादों के लिए सौदेबाजी नहीं की जा सकती है। व्‍यापक राजनीतिक सहमति की जरूरत को ध्‍यान में रखते हुए इन मदों को अब आगामी सुधारों में ही शामिल किया जाएगा।

  • आगे क्‍या?

संसद में पारित हो जाने के बाद जीएसटी विधेयक पर कम से कम आधे राज्‍यों की मंजूरी आवश्‍यक होगी। यह प्रक्रिया जल्‍द ही पूरी होने की संभावना है। इसके बाद संसद को एक बार फिर दो संबंधित विधेयकों को पारित करना होगा, जिनमें से एक विधेयक केंद्रीय जीएसटी और दूसरा विधेयक एकीकृत जीएसटी के लिए होगा। इसके अलावा, राज्‍यों की विधानसभाओं को राज्‍य जीएसटी से जुड़े कानून को पारित करना होगा। इस बीच, अगले वित्‍त वर्ष से जीएसटी को लागू करने के लिए एक गैर लाभकारी संगठन की ओर से केंद्रीय आईटी से जुड़े ढांचे पर कार्य युद्ध स्‍तर पर जारी है।

  • प्रकाश चावला एक वरिष्‍ठ प‍त्रकार और समालोचक हैं, जो अधिकतर राजनीति-आर्थिक और वैश्विक आर्थिक मुद्दों पर लिखते हैं।

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