हिमाचल प्रदेश ने जीता बेहतर परियोजना निष्पादन पुरस्कार-2015

सांस्कृतिक विरासत के संवर्धन में राज्य सरकार के प्रभावी प्रयास

  • राज्य सरकार प्रदेश की संस्कृति के सरंक्षण को लेकर अति संवेदनशील
  • विभाग के अंतर्गत कला, भाषा एवं संस्कृति अकादमी द्वारा संस्कृति के संरक्षण की दिशा में अनेकों कार्यक्रम एवं योजनाएं की जा रही हैं कार्यान्वित
  • राज्य सरकार राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों को सरंक्षित करने के लिये वचनबद्ध
  • पांडुलिपि रिसोर्स सेंटर द्वारा अब तक एक लाख 26 हजार पांडुलिपियों की जा चुकी है कैटालागिंग

 हिमालय की गोद में बसा हिमाचल प्रदेश अपनी बहुरंगी संस्कृति व सौंदर्य से ओत-प्रोत एक मनमोहक भूभाग है। सदियों से इस प्रदेश का लोक जीवन, रहन-सहन एवं रीति-रिवाजों व अनेक देव परम्पराओं का स्वरूप आज भी अतीत की यादें दोहराता है। कदम-कदम पर बदलती हुई लोक भाषा अनेकों रीति-रिवाजों व भिन्न-भिन्न लोक नृत्यों व देव परम्पराओं से जुड़ा होने के कारण ही यह प्रदेश देव भूमि कहलाता है।

राज्य सरकार प्रदेश की संस्कृति के सरंक्षण को लेकर अति संवेदनशील है। प्रदेश में अलग से कला, भाषा एवं संस्कृति विभाग की स्थापना की गई है। विभाग के अंतर्गत कला, भाषा एवं संस्कृति अकादमी द्वारा संस्कृति के संरक्षण की दिशा में अनेकों कार्यक्रम एवं योजनाएं कार्यन्वित की जा रही हैं। विगत तीन वर्षों के दौरान राज्य सरकार द्वारा प्रदेश की समृद्ध संस्कृति एवं कला के संरक्षण के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं।

प्रदेश सरकार ने अभिलेखागार के महत्व को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश रिकार्ड प्रबंधन समिति का गठन किया है जो राज्य अभिलेखागार के तौर तरीकों पर काम कर रही है। 11 सदसीय समिति ने कांगड़ा तथा सिरमौर जिलों के अलावा रामपुर बुशहर, कुमारसैन तथा सांगरी से पुराने एवं दुर्लभ एतिहासिक एवं प्रशासनिक अभिलेखों को एकत्र करके राज्य अभिलेखागार में स्थानांतरित किया है। इससे राज्य तथा बाहरी प्रदेशों के विद्वानों की अभिलेखागार में अध्ययन एवं शोध की रूचि बढ़ी है। राज्य सरकार राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों को सरंक्षित करने के लिये वचनबद्ध है। इसके लिये प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम बनाया गया है।

प्रदेश की समृद्ध व पुरातन भाषा को संजोए रखने के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन योजना के अंतर्गत अकादमी में स्थापित पांडुलिपि रिसोर्स सेंटर द्वारा अब तक एक लाख 26 हजार पांडुलिपियों की कैटालागिंग की जा चुकी है। विगत वर्ष 13500 पांडुलिपियों का संग्रह किया गया। शिमला में आयोजित किए गए पांडुलिपि जागरूकता शिविर में इनकी उपलब्धता एवं उपयोगिता विषय पर डा. ओम प्रकाश सारस्वत और डा. हरि चैहान ने व्याख्यान प्रस्तुत किए। इस दौरान आयुर्वेद, ज्योतिष, सांचा, कर्मकांड विषय पर 60 से अधिक पांडुलिपियां भी प्रदर्शित की गई।

राज्य सरकार लेखकों एवं साहित्यकारों को उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिये हर वर्ष ‘शिखर सम्मान’ प्रदान कर रही है। राज्य सरकार ने इसकी राशि को 50000 से बढ़ाकर एक लाख रुपये किया है। वर्ष 2015 के दौरान शिमला में आयोजित ‘शिखर सम्मान समारोह’ में मुख्यमंत्री एवं अकादमी के अध्यक्ष ने तीन विभूमियों को शिखर सम्मान प्रदान किए। इनमें हिमाचल प्रदेश के लोक संगीत एवं पहाड़ी संगीत के लिये वरिष्ठ संगीतकार श्री एस. शशि को, भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में वरिष्ठ कवि श्रीनिवास श्रीकांत को तथा पहाड़ी चित्रकला में रचित साहित्य उके लिये साहित्यकार प्रो. बी.एन. गोस्वामी को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों और समग्र योगदान के लिये अकादमी का सर्वोच्च सम्मान ‘शिखर सम्मान’ प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त, अकादमी प्रत्येक वर्ष उत्कृष्ट लेखकों को साहित्य पुरस्कार भी प्रदान कर रही है। गत वर्ष शिमला में आयोजित साहित्य पुरस्कार समारोह में हिंदी काव्य वर्ग में सुदर्शन वशिष्ठ को उनकी पुस्तक ‘जो देख रहा हॅूं’ के लिये, श्री साधु राम दर्शक को उनकी पुस्तक ‘फौजी’ तथा अन्य कहानियां के लिये श्री रूप शर्मा को उनकी पुस्तक ‘हिमाचल प्रदेशः अंधकार से प्रकाश की ओर’, उर्दू में के.के. तूर को उनकी पुस्तक ‘रफ्ता-रमज’ के लिये सम्मानित किया गया।

अकादमी ने गत वर्ष शिमला के गेयटी थिएटर में राज्य स्तरीय लालचंद प्रार्थी जयंती समारोह का आयोजन किया जिसमें लेखक संगोष्ठी तथा बहुभाषी कवि सम्मलेन के कार्यक्रम शामिल थे। लेखक गोष्ठी में प्रार्थी जी की शायरी ‘वजूद-ओ-अदम’ शोध पत्र प्रस्तुत किया गया। दूसरा शोध पत्र हिमाचल प्रदेश के ‘जनजातीय क्षेत्रों में महिला को पैतृक संपति में अधिकार’ विषय पर पावर पवांईट प्रस्तुति दी गई। इन शोध पत्रों पर 10 विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किए। बहुभाषी कवि सम्मेलन में प्रदेश के जाने-माने 25 कवियों ने हिन्दी, पहाड़ी, संस्कृत तथा उर्दू में कविता पाठ किये। मंडी में पुस्तक मेले का आयोजन किया गया जिसमें राष्टरीय स्तर के 30 प्रकाशकों ने भाग लिया।

अकादमी द्वारा कुल्लू में आयोजित दो दिवसीय जनजातीय सेमिनार में पांगी, भरमौर, किन्नौर तथा लाहौल एवं स्पिति के विद्वानों ने प्रदेश की जनजातीय कला, संस्कृति, भाषा एवं साहित्य पर शोध पत्र प्रस्तुत किए और उन पर परिचर्चा भी की।

अकादमी नियमित रूप से राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सहयोग से शिमला के गेयटी थियेटर में पुस्तक मेलों का आयोजन कर रही है। इन मेलों में राष्ट्र स्तर के प्रकाशकों को आमंत्रित किया जाता हैं ताकि अच्छी पुस्तकों को राज्य पुस्तकालयों एवं स्कूलों में उपलब्ध करवाया जा सके। मंदिर हमारी संस्कृति का अभिनव एवं अभिन्न अंग है। इनमें न केवल पूजा-अर्चना के कार्य निष्पादित किए जाते हैं, बल्कि उत्सवों एवं अनुष्ठानों को भी संचालित किया जाता है। मंदिरों का प्रबंध राज्य सरकार ने अपने नियत्रंण में लिया है और सरकार न्यास के माध्यम से इनकी प्रबंध व्यवस्था में सुधार तथा श्रद्धालुओं के लिए अधिक से अधिक सुविधाओं का सृजन सुनिश्चित बनाया जा रहा है।

हि.प्र. हिंदू सार्वजनकि धार्मिक संस्थान एवं पूर्त विन्यास अधिनियम के अंतर्गत जिन मंदिरों का अधिग्रहण किया गया है, उनमें- श्री ज्वालामुखी मंदिर कांगड़ा, श्री रामगोपाल मंदिर डमटाल, श्री बजे्रश्वरी मंदिर, श्री बाबा बालकनाथ मंदिर दियोटसिद्ध, श्री चिन्तपूर्णी मंदिर, श्री नयना देवी मंदिर बिलासपुर, श्री तारा देवी मंदिर शिमला, श्री दुर्गा माता मंदिर हाटकोटी, श्री भीमाकाली मंदिर सराहन, श्री रघुनाथ जी, श्री नार सिंह जी, श्री लोकडा देवता जी, श्री हनुमान मंदिर जाखू, श्री अयोध्यानाथ मंदिर रामपुर, श्री दुर्गा मंदिर रामपुर, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर चम्बा, श्री बद्रविशाल मंदिर, बांई अटारिया तथा परसिंहदेव मंदिर नगरोटा सूरियां, ठाकुरद्वारा देई साहिबा मंदिर पौंटा साहिब, शाहतलाई मंदिर बिलासपुर, मुख्य मंदिर श्री बाबा बालकनाथ जी, बाबा जी का दूसरा मंदिर, वटवृक्ष मंदिर, गरनाझाडी मंदिर शाहतलाई, श्री अष्टभुजा माता मंदिर बोहना देहरागोपीपुर, श्री चामुण्डा नंदिकेशवर मंदिर कांगड़ा, श्री दुर्वेश्वार महादेव मंदिर व भागसूनाथ मंदिर धर्मशाला, श्री महामाया बाला सुंदरी जी त्रिलोकपुर कांगडा, श्री सकंटमोचन मंदिर शिमला, श्री हुनमान मंदिर डियारा, श्री लक्षमी नारायण मंदिर बिलासपुर, श्री देवता बिजट महाराज मंदिर सराहां, श्री शूलीनी माता मंदिर सोलन, श्री शिव मंदिर बैजनाथ, श्री महाकाल मंदिर भरमौर, श्री हणोगी माता मंदिर, श्री मणिमहेश मंदिर भरमौर तथा श्री रघुनाथ मंदिर कुल्लू शामिल हैं।

अकादमी द्वारा हिन्दी की त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘सोमसी’, पहाड़ी भाषा की अर्द्धवार्षिक पत्रिका ‘हिमभारती’ तथा संस्कृत भाषा की अर्द्धवार्षिक पत्रिका ‘श्यामला’ का नियमित रूप से प्रकाशन किया जा रहा है। इन पत्रिकाओं में प्रदेश के लेखकों को जहां मंच प्रदान किया जा रहा है, वहीं पाठकों व शोधार्थियों को उपयोगी सामग्री उपलब्ध हो रही है। इसके अतिरिक्त, हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक शब्दावली, हिंदी-पहाड़ी पर्यायवाची शब्दकोश भी प्रकाशित किये जा रहे हैं। राज्य में लुप्त हो रही प्राचीन लिपियों के प्रशिक्षण के लिये ‘गुरू-शिष्य परंपरा योजना’ के अंतर्गत नाहन में पाबुची लिपि का एक प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया है। इस केंद्र में पांच शिष्यों को पाबुची लिपि का एक वर्षीय प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। राज्य में महिला साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अकादमी हर वर्ष शिमला में राज्य स्तरीय महिला साहित्यकार सम्मेलन का आयोजन करवा रही है।

विभाग कवियों, लेखकों एवं साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के लिये प्रति वर्ष महान विभूतियों जैसे लालचंद प्रार्थी जयंती समारोह, पहाड़ी गांधी बाबा कांशीराम जयंती समारोह, डा. यशवन्त सिंह परमार जयंती समारोह का आयोजन कर इनके माध्यम से राज्य की संस्कृति एवं पहाड़ी बोलियों के सरंक्षण पर बल दिया जा रहा है।

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