नागों से हुई "महासू देवता" की उत्पति

हिमाचल: शक्तिशाली व रहस्यमय देवता ” देव महासू”

हणोग मन्दिर में महासू की अष्टधातु की मूर्ति तिब्बती मूर्तियों जैसी

 हिमाचल में महासू बहुत ही शक्तिशाली ग्राम देवता हैं  जोकि हैं रहस्यमय

शिमला में 90 और सिरमौर में हैं 10 महासू मन्दिर

 हिमाचल में महासू बहुत ही शक्तिशाली ग्राम देवता हैं जोकि हैं रहस्यमय

हिमाचल में महासू बहुत ही शक्तिशाली ग्राम देवता हैं जोकि हैं रहस्यमय

हिमाचल को जहाँ देवी- देवताओं का वास माना जाता है वहीं यहां के लोगों की देवी- देवताओं के प्रति गहरी आस्था है। इतना ही नहीं बाहर से आने वाले लोगों की भी इनके अटूट आस्था देखने को मिलती है। जिसके चलते बाहर से आने वाले लोग इन मन्दिरों में आकर यहां के  देवी- देवताओं का आशीर्वाद लेने जरुर पहुंचते हैं। ऐसे ही  हैं शिमला में 90 और सिरमौर में 10 महासू मन्दिर हैं। महासू देवता के सम्बन्ध में अनेक धारणाएं प्रचलित हैं। पौराणिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करने पर महासू देवता सूर्यवंश के आदि देव भगवान विवस्वान (सूर्य) के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। महासू महाशिव का अपभ्रंश है। लोक विश्वास है कि महाशिव का विकृत रूप महासूदेव है। जौनसार क्षेत्र में लोगों की विभिन्न आस्थाएं और विश्वास हैं, उनका प्रमुख देवता महासु है। हिमाचल में उसे नाग करके भी पूजा जाता है। हणोग मन्दिर में महासू की अष्टधातु की मूर्ति तिब्बती मूर्तियों जैसी है। महासू अमरनाथ का एक वीर है। महासू की उत्पति नागों से हुई है। इस शब्द की व्युत्पति महाशिव से है। हिमाचल में महासू बहुत ही शक्तिशाली ग्राम देवता है जो रहस्यमय है।

महासू के बारे में दो विभिन्न जनश्रुतियां प्रचलित हैं। एक जनश्रुति अनुसार महासु नाग के रूप में प्रकट हुआ। उनकी मूर्ति बनाकर स्थापित किया गया और महासू नाम दिया, भक्तों के लिए कुछ नियम निश्चित किए। वास्तव में लोकगाथा में सब कुछ इतिहास ही नहीं होता। उसमें लोक श्रद्धा, भक्ति और कल्पना का भी सुन्दर समन्वय होता है। हनोल (जौनसार) में महासू का सबसे पुराना और प्रधान मन्दिर माना जाता है।

महासू के सम्बंध में प्रचलित विवरण से बात स्पष्ट हो जाती है कि महासू अब ग्राम देवताओं की तरह साधारण लोक देवता नहीं है और न ही पुराणों में इसका कहीं वर्णन मिलता है। वास्तव में लोकवार्ता सृजन में सत्य और कल्पना के अतिरिक्त जो तत्व सक्रिय रहते हैं उनमें पुराकथा, आद्यबिंब एवं फैंटेसी का प्रमुख स्थान रहता है। पुराकथा या देवकथा पूरी कल्पना पर ही अधारित न होकर लोकानुभूति से संश्लिष्ट ऐसी कथा होती है जो अलौकिकता का भी संदेश देती है। यह तर्काश्रित नहीं होती । ऐसी कथाओं के पीछे कुछ आदिम विश्वास होते हैं, जो अंध विश्वास का रूप धारण कर लेते हैं। इसमें रहस्यात्मकता, विलक्षणता, लाक्षणिकता आ जाती है। महासू भी एक मिथकीय नायक या प्रतीक के रूप में जौनसार और हिमाचल के कुछ जनपदों के लोकजीवन में रच बस गया है। परस्पर विरोधी धारणाएं भी पनपती हैं। जैसे कोटखाई जनपदों के सभी लोकदेवता, चौपाल में शिरगुल, बिजट और महेश्वर के भक्तों को महासू के प्रति आस्था रखने की मनाही है। इन लोक देवताओं की मान्यता पर कश्मीर के तान्त्रिक शैवमत का प्रचुर-प्रभाव विद्यमान है।

शिमला में 90 और सिरमौर में हैं 10 महासू मन्दिर

शिमला में 90 और सिरमौर में हैं 10 महासू मन्दिर

महासू की पूजा एक लोकदेवता की तरह होती है, न कि वीर की तरह। तौंस नदी के किनारे पर हणोल में महासू देवता का प्रमुख धाम है। तमसा नदी यद्यपि सारे भारत में अपवित्र मानी जाती हैं किन्तु महासू भक्तों की दृष्टि में यह पवित्र नदी है।

हिमाचल की लोक संस्कृति में तीन प्रकार के लोकदेवता मान्य हैं- वैदिक, पौराणिक और लौकिक। लोक देवताओं की कोटि में एक और स्थान यहां के आदिम देवताओं का भी है, ये लोकदेवता इस क्षेत्र की आदिम जाति से सम्बंधित हैं जो बाद में सबने अपना लिया। महासू भी एक ऐसे ही देवता हैं जिनकी पूजा विधि आनुष्ठानिक नहीं।

प्राचीन काल से कश्मीर भारत की समन्वय प्रधान संस्कृति का केन्द्र रहा है। वहां अनेक देवी-देवताओं की पूजा की लोक परम्परा विद्यमान रही हैं। नागपूजा प्रमुख रूप से रही है। यहां तांत्रिक शिव मत का प्रभाव स्पष्ट रहा है। वही प्रभाव हिमाचल में स्पष्ट दृष्टिगोचर है।

साभार : हिमाचल प्रदेश का इतिहास

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