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हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में सहकारी सभाओं का महत्वपूर्ण योगदान

फ़ीचर

  • सामाजिक-आर्थिक उत्थान में सहकारी सभाओं की महत्वूपर्ण भूमिका
  • देश की पहली सहकारी सभा वर्ष 1892 में प्रदेश के ऊना जिले के गांव पंजावर में गठित
  • समाज के कमजोर वर्गों, महिलाओं एवं युवाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्वरोजगार के अवसर भी किए प्रदान
  • राज्य में कुल 843 सहकारी सभाएं थीं, जिनमें 25000 सदस्य थे और अधिकांश सभाएं निष्क्रिय
  • आज राज्य में 16.37 लाख सदस्यों की 4837 विभिन्न सहकारी सभाएं क्रियाशील
  • सभाओं की अशं पूंजी 291.34 करोड़ रुपये और जमा पूंजी 196.40 करोड़ रुपये
  • सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए कृषि एवं गैर कृषि कार्यों के लिए अल्प अवधि, मध्यम अवधि तथा दीर्घकालीन अवधि के लिए 6713 करोड़ रुपये के ऋण दिए

हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में सहकारी सभाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रदेश को देश में सहकारिता संस्थापक राज्य होने का गौरव प्राप्त है। देश की पहली सहकारी सभा वर्ष 1892 में प्रदेश के ऊना जिले के गांव पंजावर में गठित की गई थी। तब से लेकर आज तक सहकारिता आंदोलन ने केवल समुदायों के सामाजिक-आर्थिक जीवन में बदलाव लाया है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों, महिलाओं एवं युवाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्वरोजगार के अवसर भी प्रदान किए हैं। इन सभाओं के माध्यम से सृजित धनराशि ने राज्य के आर्थिक विकास में सरकार की सहायता भी की है।

राज्य में प्रथम पंचवर्षीय योजना के निर्माण के दौरान समाज के विभिन्न वर्गों को सहकारिता आंदोलन से जोड़ने पर विशेष बल दिया गया था। उस दौरान राज्य में कुल 843 सहकारी सभाएं थीं, जिनमें 25000 सदस्य थे और अधिकांश सभाएं निष्क्रिय थी। आज राज्य में 16.37 लाख सदस्यों की 4837 विभिन्न सहकारी सभाएं क्रियाशील हैं। इन सभाओं की अशं पूंजी 291.34 करोड़ रुपये और जमा पूंजी 196.40 करोड़ रुपये है।

सहकारी सभाओं ने कृषकों, बागवानों तथा अन्य कमजोर वर्गों के लोगों को उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए कृषि एवं गैर कृषि कार्यों के लिए अल्प अवधि, मध्यम अवधि तथा दीर्घकालीन अवधि के लिए 6713 करोड़ रुपये के ऋण दिए हैं। इसके अतिरिक्त, चालू वित्त वर्ष के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत सहकारी समितियों के माध्यम से 893 करोड़ रुपये मूल्य की उपभोक्ता वस्तुएं तथा 151 करोड़ रुपये की रासायनिक खाद, बीज एवं कीटनाशक इत्यादि वितिरत किए गए हैं। सभाओं ने 187 करोड़ रुपये मूल्य की कृषि और बागवानी उत्पादों का विपणन भी किया है, जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।

सहकारी सभाओं को आर्थिक रूप से व्यवहार्य, सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने प्रथम चरण में राज्य के सभी जिलों में राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम के अन्तर्गत समेकित सहकारी विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन पूरा कर लिया है।

राज्य सरकार की संस्तुति पर राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम ने समेकित सहकारी विकास परियोजनाओं का दूसरा चरण तीन वर्षों के लिये 3546.71 लाख रुपये की संघटित लागत के साथ बिलासपुर, हमीरपुर और सिरमौर जिलों में आरम्भ करने की स्वीकृति प्रदान की है। राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम ने राज्य सरकार की संस्तुतियों पर इन परियोजनाओं का दूसरा चरण हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, शिमला तथा कुल्लू तीन और जिलों के लिए अगले तीन वर्षों के लिए स्वीकृत किया है जिसकी संघटित लागत 8170.64 करोड़ रुपये है।

इन स्वीकृत धनराशियों में से 2013.12 लाख रुपये परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों हि.प्र. राज्य सहकारी बैंक शिमला तथा कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक धर्मशाला को जारी कर दिए गए हैं। सभी नई परियोजनाएं क्रियाशील हो चुकी हैं। दूसरे चरण की इन समेकित सहकारी विकास परियोजनाओं के अन्तर्गत अधोसंरचना विकास (गोदामों, विक्रय दुकानों एवं कार्यालय, वर्कशैडों का निर्माण), गोदामों की मुरम्मत, फर्नीचर की खरीद, आवश्यक उपकरणों सहित कंप्यूटरों की खरीद पर बल दिया गया है। इन परियोजनाओं में सहकारी सभाओं के कर्मचारियों, प्रबन्धन समिति सदस्यों तथा पीआईटी कर्मियों के लिए प्रशिक्षण का समुचित प्रावधान किया गया है।

राज्य सरकार के सतत् प्रयासों एवं प्रोत्साहन के परिणामस्वरुप अधिक से अधिक लोग सहकारिता आंदोलन से जुड़ रहे हैं तथा कमजोर वर्गों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान एवं ग्रामीण आर्थिकी में अपना योगदान दे रहे हैं।

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