नई दिल्ली: शिपिंग मंत्रालय ने अपनी जहाज निर्माण वित्तीय सहायता नीति पर अमल के लिए दिशा-निर्देशों को मंजूरी दी है। इस नीति से संबंधित किसी भी तरह की शिकायत के निवारण के लिए शिपिंग मंत्रालय में एक संस्थागत व्यवस्था भी की गई है।
जहाज निर्माण वित्तीय सहायता नीति को कैबिनेट ने पिछले साल दिसम्बर में मंजूरी दी थी। इस नीति का उद्देश्य 1 अप्रैल, 2016 से लेकर 31 मार्च, 2026 तक हस्ताक्षरित होने वाले जहाज निर्माण अनुबंधों के लिए भारतीय शिपयार्डों को वित्तीय सहायता देना है। इस नीति के तहत दी जाने वाली वित्तीय सहायता डिलीवरी के बाद भारत में किसी भी निर्मित जहाज के लिए अंतरराष्ट्रीय मूल्य निर्धारकों द्वारा निर्धारित अनुबंध मूल्य अथवा उचित मूल्य, इनमें से जो भी कम हो, का 20 फीसदी होगी। इस नीति के हर तीन साल बाद वित्तीय सहायता राशि में 3 फीसदी की कमी कर दी जायेगी। यह नीति इस प्रयोजन के लिए सरकार द्वारा तैयार दिशा-निर्देशों में उल्लिखित तिथि से लेकर अगले दस वर्षों तक अमल में रहेगी।
इस नीति के तहत केवल वही जहाज वित्तीय सहायता के योग्य माने जायेंगे, जिनका निर्माण एवं वितरण अनुबंध की तिथि से लेकर तीन वर्षों के भीतर हो जायेगा। उधर, विशेष जहाजों के मामले में सक्षम प्राधिकारी इन तीन वर्षों के बाद भी तय की जाने वाली अवधि के भीतर इन जहाजों का निर्माण एवं डिलीवरी करने की सैद्धांतिक मंजूरी दे सकता है। हालांकि, यह अवधि 6 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
स्वीकृत दिशा-निर्देशों को शिपिंग मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है, जिसके लिए इस लिंक http://shipping.nic.in/showfile.php?lid=2307 को क्लिक करें।