बिना बजट की घोषणाएं, प्रदेश की जनता की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास : प्रो. धूमल

शिमला: पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि समयपूर्व चुनावों के उनके आंकलन पर मुख्यमंत्री का यह कहना कि वे (धूमल) कोई ज्योतिषी नहीं है सत्य है। वे केवल भाजपा के एक साधारण कार्यकर्ता हैं परन्तु मुख्यमंत्री यह भूल रहे है कि उनके नेतृत्व की पूर्व कांग्रेस सरकारों का इतिहास, वर्तमान सरकार के कार्यकाल के घटनाक्रम और मुख्यमत्री द्वारा बिना बजट की अन्धाधुंध घोषणाओं से वो तो क्या राजनीतिक समझ रखने वाला कोई भी कार्यकर्ता इस बात का आसानी से पूर्वानुमान लगा सकता है कि मुख्यमंत्री प्रदेश में समय से पूर्व चुनाव करवाना चाहते है यह अलग बात है कि पूर्व में भी उनके नेतृत्व में कांग्रेस सरकार अभी तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई हैं और न ही वीरभद्र सिंह कभी अपना शासनकाल दोहरा पाये है।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि एक तरफ तो कांग्रेस विकास के दावे करती है दूसरी तरफ धरातलीय स्थिति यह है कि चुनावी वायदे के अनुसार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता नहीं मिला है। विद्यार्थी अपनी वर्दी के लिए तरस रहे हैं और कर्मचारी 4-9-14 के वितीय लाभों को वायदे के अनुसार वर्ष 2006 से पाने की प्रतीक्षा में है। पैन्शनरों और कर्मचारियों को डी.ए. की किस्त 11-11 महीनों से नहीं मिल रही है। किसान और बागवान अपनी योजनाओं से लाभ पाने से वंचित हैं । सड़कों की मुरम्मत के लिए पैसा नहीं है और आम आदमी को सस्ते राशन के लिए डिपूओं का चक्कर एक बार नहीं महीने में कई बार लगाना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ बिना बजट की घोषणाएं करके प्रदेश की जनता की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास किया जा रहा है, परन्तु मुख्यमंत्री भूल रहे हैं कि काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ती है।

प्रो. धूमल ने कहा मात्र वोटों के खारित प्रदेश के शैक्षणिक स्तर को गिराया जा रहा है। नए शिक्षण संस्थान अगर जरूरी हैं तो निश्चित रूप से खुलने चाहिए, परन्तु आवश्यक था कि इन घोषणाओं से पूर्व वुनियादी ढॉंचे के विकास के लिए प्रर्याप्त प्रबन्ध व धन उपलब्ध करवाया जाता । मात्र साढ़े तीन वर्षों में प्रदेश में शिक्षा के स्तर में किस कदर गिरवाट आई है कि 350 से ज्यादा स्कूलों का परिणाम 20 प्रतिशत से नीचे है। सोचे समझे बिना रूसा को लागू करने का परिणाम यह निकला है कि प्रदेश के युवा की ग्रेजुऐट डिग्री को पोस्ट ग्रेजुऐट में दाखिला लेने के लिए पंजाब और दिल्ली में मान्यता नहीं मिल रही है। मीडिया में प्रकाशित रिपोर्टों के प्रदेश न्यायिक प्ररीक्षा में कोई भी हिमाचली उतीर्ण नहीं हो पाया है और यही हालत प्रदेश उच्च न्यायालय में हुई लिपिकीय प्ररीक्षा का भी है। शिक्षा मंत्री होने के नाते मुख्यमंत्री का दायित्व था कि वह प्रदेश में गुणात्मक शिक्षा पर जोर देते परन्तु इस पर ध्यान न देने की वजह से हिमाचल शिक्षा के क्षेत्र में लगातार पिछड़ रहा है।

मुख्यमंत्री द्वारा भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों पर टिप्पणी करने पर नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि यह गर्व की बात है कि भाजपा एक लोकतांन्त्रिक और जीवंत पार्टी है जिसमें सभी को अपनी योग्यतानुसार किसी भी पद पर दावा करने का अधिकारी है परन्तु दूसरे दल पर टिप्पणी करने से पूर्व उन्हें अपनी पार्टी के भीतर भी झांककर देखना चाहिए कि वहां पर उनकी कुर्सी पर आंख गडाए कितने लोग बैठे हैं। मंत्रियों की अनुपस्थिति पर शिला पटिका से नाम हटाए जाने पर मुख्यमंत्री के ब्यान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी ने सिद्धान्त दिया है वह उन पर स्वयं भी लागू होना चाहिए। केन्द्रीय मंत्री नितिन गड़करी के हिमाचल दौरे के दौरान मुख्यमंत्री केवल सोलन में उपस्थित थे जब कि अन्य स्थानों पर उनकी अनुपस्थिति के बावजूद शिला पटिकाओं में उनका नाम था तो क्या मुख्यमंत्री स्वयं शिला पटिकाओं से अपना नाम हटाने की पहल करेंगे?

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *