प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने किया 15802 मामलों का निपटारा

“दहेज़” लेने या देने के लिए सजा का प्रावधान….

अधिवक्ता - रोहन सिंह चौहान

अधिवक्ता – रोहन सिंह चौहान

पुराने समय में जब किसी बेटी की शादी की जाती थी तो परिवार के लोग बेटी की विदाई पर उसे घर का ज़रूरी सामान देते थे, ताकि बेटी  को विवाह के बाद अपने पति के घर जाकर नया जीवन शुरू करने  व अपना नया परिवार चलाने के लिए ज़रूरत  के सामान के लिए परेशान न होना पड़े। उस वक्त ये रिवाज घर की जरूरी चीजों तक ही सीमित था। जिसमें खाने के बर्तन, बिस्तर, अलमारी और ट्रंक इत्यादि ही शामिल था, लेकिन धीरे-धीरे यह एक रिवाज या  माँ-बाप का बेटी के लिए दूसरे घर जाने की चिंता की वजह से जरूरी सामान देना , कब रस्म  से  दहेज बन गया , इसका जवाब जान पाना  मुश्किल ही है। इस दहेज़ ने जाने कितनी बेटियों को मौत की भेंट चढ़ा दिया। यह दहेज़ बेटियों के लिए मदद की जगह उनके जीवन में अभिशाप  बनकर कब ग्रहण की तरह आ गया, पता ही नहीं चला, बस इस भेंट की आग में न जाने कितनी बेटियां झुलस गयीं, कितनी बेटियों को मजबूर किया गया मरने के लिए कह पाना मुश्किल है। हमारा प्रयास है कि बेटियां दहेज़ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाये अपने अधिकारों को जानें। इसी के चलते इस बार हमें अपने कॉलम  “कानून व्यवस्था” में दहेज़ के क्या कानून  है  के बारे में रोहन सिंह चौहान जानकारी देने जा रहे हैं। 

देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है। वर्ष 2007 से 2011 के बीच इस प्रकार के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से वर्ष 2012 में दहेज हत्या के 8,233 मामले सामने आए। आंकड़ों का औसत बताता है कि प्रत्येक घंटे में एक महिला दहेज की बलि चढ़ रही है।

दहेज़ उस सम्पति या पैसे को कहते हैं जो एक दुल्हन अपनी शादी के समय अपने साथ अपने पति के घर लाती है। ये एक ऐसा रिवाज है जो हमारे समाज के सभी वर्गों में किसी न किसी रूप में प्रचलित है।

दहेज़ निषेध अधिनियम , 1961 में दहेज़ को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है –

दहेज़ का अर्थ है प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर दी गयी कोई भी सम्पति या मूल्यवान सुरक्षा या उसे देने की सहमती निम्नलिखित द्वारा :-

  • विवाह में एक पक्ष के द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को।
  • विवाह के किसी भी पक्ष के अभिभावकों के द्वारा।
  • विवाह के किसी पक्ष के व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को।
  • शादी के वक्त, या उससे पहले या उसके बाद कभी भी जो कि उपरोक्त पक्षों से संबंधित हो जिसमें मेहर की रकम सम्मिलित नहीं की जाती, अगर व्यक्ति पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) लागू होता हो।

दहेज़ लेने या देने के लिए सजा का प्रावधान

दहेज़ निषेध अधिनियम 1961 के प्रारंभ होने के बाद अगर कोई भी व्यक्ति दहेज़ लेता या देता है या इसके लिए उकसाता है तो उसे कम से कम 5 साल का कारावास और 15,000 रूपये तक का जुर्माना या दहेज़ का मूल्य, दोनों में से जो भी अधिक हो, हो सकता है।

भारतीय दंड सहिंता की धारा 498A

  • महिला के साथ यदि उसका पति या पति के रिश्तेदार क्रूरता करें तो इस धारा के तहत मुकदमा चलता है।
  • जो कोई भी, चाहे महिला का पति या पति के रिश्तेदार महिला के साथ क्रूरता करते हैं तो ऐसा करने पर 3 साल तक का कारावास और जुर्माना हो सकता है।

इस खंड के प्रयोजन के लिए क्रूरता का मतलब निम्न प्रकार से है –

  • जान-बूझकर किया गया कोई भी आचरण जो महिला को आत्महत्या करने के लिए या खुद को गंभीर चोट पहुँचाने के लिए या जीवन, अंग अथवा स्वास्थय को खतरा पहुँचाने के लिए प्रेरित करे।
  • महिला को इस तरह से उत्पीड़ित करना जिससे की महिला या महिला से सम्बंधित कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह की गैर कानूनी मांग को पूरा करने के लिए विवश हो या ऐसे गैर कानूनी मांग के पूरा न होने पर महिला का उत्पीड़न किया जा रहा हो।

यह धारा दहेज़ हत्या के खतरे से निपटने के लिए अधिनियमित की गयी है। इसे आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 1983 द्वारा पेश किया गया था। इसी अनुभाग द्वारा धारा 113A को भारतीय साक्ष्य अधिनियम में जोड़ा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य महिला की रक्षा करना है जो अपने पति या पति के रिश्तेदारों के द्वारा उत्पीड़ित की जा रही है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113A

  • जहां सवाल ये है कि क्या व्यक्ति ने महिला की दहेज़ के लिए हत्या की है या नहीं और ये साबित किया जाता है कि महिला की मौत से पहले उसके साथ क्रूरता या उत्पीड़ित किया गया था तो न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दहेज़ हत्या का दोषी मानेगा।
  • पति द्वारा शराब पीना और घर देर से आना तथा पत्नी के साथ मारपीट करना और दहेज़ मांगना इस धारा के भीतर क्रूरता में आता है लेकिन अगर पति आदत के हिसाब से रोज पीता है और घर देर से आता है तो इसे क्रूरता नहीं माना जायेगा।

भारतीय दंड सहिंता की धारा 304 B के अनुसार निम्नलिखित परिस्थितियों में महिला की मृत्यु दहेज़ हत्या मानी जाएगी

  • असाधारण परिस्थितियों में मृत्यु ।
  • जलने से , जिस्मने घाव, गला घोंटने से, ज़हर या फांसी से होने वाली मौत सभी अप्राकृतिक मौत के उदहारण हैं।
  • शादी के सात साल के अंदर मृत्यु।
  • 304 B के अंतर्गत मुकदमा चलने के लिए विवाह को 7 साल की अवधि होना आवश्यक है। अगर महिला की मृत्यु 7 साल के बाद हुई है तो धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) का मुकदमा चलेगा।

महिला पर क्रूरता उसके पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा की गयी हो

क्रूरता का आश्रय निम्न प्रकार से है:

  • जान-बूझकर किया गया कोई भी आचरण जो महिला को आत्महत्या करने के लिए या खुद को गंभीर चोट पहुँचाने के लिए या जीवन, अंग अथवा स्वास्थय को खतरा पहुँचाने के लिए प्रेरित करे।
  • महिला को इस तरह से उत्पीड़ित करना जिससे की महिला या महिला से सम्बंधित कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह की गैर कानूनी मांग को पूरा करने के लिए विवश हो या ऐसे गैर कानूनी मांग के पूरा न होने पर महिला का उत्पीड़न किया जा रहा हो।
  • क्रूरता या उत्पीड़न दहेज़ मांग के सन्दर्भ में होना चाहिए।
  • अगर महिला के साथ हुई क्रूरता या प्रताड़ना दहेज़ के सम्बन्ध में नहीं है तो धारा 304 B के तहत मुकदमा नहीं चलेगा।
  • महिला की मौत से कुछ समय पहले ही उसके साथ क्रूरता या प्रताड़ना घटित होनी चाहिए।

इसका अर्थ यह है कि दोनों घटनाओं यानि हत्या और मृत्यु के बीच अधिक समय का अंतर नहीं होना चाहिए। हालांकि इसके लिए कोई समय सीमा नहीं दी गयी है इसलिए प्रत्येक मामले की परिस्थिति को देखकर ही न्यायालय तय करता है।

दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पांच वर्ष के कारावास

दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पांच वर्ष के कारावास

दहेज़ विरोधी कानून का उपयोग

इस कानून को पारित करने का मुख्य मकसद भारत के अधिकांश भागों में प्रचलित दहेज़ की गैर कानूनी मांग व उत्पीड़न से दुल्हन को बचने के लिए किया गया है।

  • दहेज़ उत्पीड़न की प्रथा भारत में लगातार बढ़ रही है। जब दहेज़ न दिया जाये या दहेज़ की राशि पर्याप्त न मानी जाये तो दुल्हन को अक्सर परेशान किया जाता है, धमकाया जाता है या घर से बाहर निकाल दिया जाता है।
  • इसमें सबसे गंभीर दुल्हन का आग में जलने के कारण हुई मृत्यु होना है। इनमें अधिकांश घटनाएं रसोई घर में आकस्मिक रूप से झुलसने के रूप में रिपोर्ट की जाती हैं या आत्महत्या के रूप में गलत तरह से दिखा दी जाती हैं।
  • दहेज़ उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को देखकर 1961 में महिलाओं की सुरक्षा के लिए दहेज़ प्रतिषेध विधेयक ड्राफ्ट किया गया। इस कानून के माध्यम से उत्पीड़ित महिलाओं को अत्यंत लाभ हुआ है।
  • इसके अतिरिक्त 1983 में भारतीय दंड सहिंता की धारा 498A में क्रूरता नामक संज्ञेय अपराध परिभाषित किया। अगर प्रताड़ित महिला या उसके परिजनों के द्वारा शिकायत दर्ज कराई जाती है तो पुलिस के पास कार्यवाही करने के लावा कोई विकल्प नहीं है।
  • अगर किसी व्यक्ति पर दहेज़ विरोधी कानून के तहत आरोप लगाया जाता है तो उस व्यक्ति के खिलाफ गैर ज़मानती वारंट जारी किया जाएगा और पुलिस उसके खिलाफ आवश्यक कदम उठाने के लिए बाध्य होगी ।

दहेज़ विरोधी कानून का दुरूपयोग

भारतीय दंड सहिंता की धारा 498A की निम्न विशेषताएं हैं :

  • संज्ञेय : आरोपी को बिना वारंट या जांच के गिरफ्तार किया जा सकता है।
  • गैर संयोजनिए : याचिकर्ता अपनी शिकायत को वापिस नहीं ले सकता।
  • गैर ज़मानती-आरोपी को ज़मानत के लिए न्यायालय में पेश होना पड़ेगा।
  • अधिकतर बार यह पाया जाता है कि जो कानून महिला सम्बंधित हिंसा को रोकने के लिए बनाये गए हैं उनका दुरूपयोग किया जा रहा है। इनमें विशेष रूप से भारतीय दंड सहिंता की धारा 498A (पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा महिला से क्रूरता) और 304B (दहेज़ हत्या ) आती हैं।

अगर कोई महिला अपने पति को भारतीय दंड सहिंता की धारा 498A के तहत दोषी बनती है तो ये अपराध संज्ञेय और गैर ज़मानती हो जाता है और अगर पुरुष निर्दोष है तो उसे न्याय पाने का मौका जल्द नहीं मिल पाता। हालांकि भारत में महिलाओं की स्थिति आज भी खराब है लेकिन बहुत बार महिलाएं खुद को समाज की कमज़ोर कड़ी के रूप में दिखलाकर कानून का अनुचित फायदा लेने का प्रयास करती हैं, जोकि सही नहीं है।

दहेज प्रताड़ना के मामलों में पति और उसके परिवार की तुरंत गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2017 फैसला सुनाया। इस क़ानून के तहत महिला की शिक़ायत पर उसके पति और ससुराल वालों की गिरफ़्तारी में ‘परिवार कल्याण समिति’ की कोई भूमिका नहीं होगी।कोर्ट ने पिछले साल ऐसे मामलों के लिए ‘परिवार कल्याण समिति’ बनाने की बात की थी, लेकिन कोर्ट ने अपने ताज़ा फ़ैसले में इस समिति के रोल को ख़ारिज कर दिया है। इसके आलावा सुप्रीम कोर्ट का ये फ़ैसला उनके पिछले साल के दिशा निर्देशों की तरह ही है। कोर्ट ने पहले कहा था कि दहेज के मामलों में महिला के पति और ससुराल वालों की तुरंत गिरफ़्तारी नहीं होगी और उनके पास अग्रिम ज़मानत लेने का विकल्प भी रहेगा।

दहेज के विरुद्ध कानून के अहम बिंदु:

धारा-3

  • दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पांच वर्ष के कारावास साथ में कम से कम पन्द्रह हजार रूपये या उतनी राशि जितनी कीमत उपहार की हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
  • लेकिन शादी के समय वर या वधू को जो उपहार दिया जाएगा और उसे नियमानुसार सूची में अंकित किया जाएगा वह दहेज की परिभाषा से बाहर होगा।

धारा 4

दहेज की मांग के लिए जुर्माना-

  • यदि किसी पक्षकार के माता-पिता, अभिभावक या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें कम से कम छः मास और अधिकतम दो वर्षों के कारावास की सजा और दस हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है ।

धारा 4-ए

  • किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रकाशन या मिडिया के माध्यम से पुत्र-पुत्री के शादी के एवज में व्यवसाय या सम्पत्ति या हिस्से का कोई प्रस्ताव भी दहेज की श्रेणी में आता है और उसे भी कम से कम छह मास और अधिकतम पांच वर्ष के कारावास की सजा तथा प्रन्द्रह हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है ।

धारा 6

  • यदि कोई दहेज विवाहिता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति द्वारा धारण किया जाता है तो दहेज प्राप्त करने के तीन माह के भीतर या औरत के नाबालिग होने की स्थिति में उसके बालिग होने के एक वर्ष के भीतर उसे अंतरित कर देगा। यदि महिला की मृत्यु हो गयी हो और संतान नहीं हो तो अविभावक को दहेज अन्तरण किया जाएगा और यदि संतान है तो संतान को अन्तरण किया जाएगा।

धारा 8-ए

  • यदि घटना से एक वर्ष के अन्दर शिकायत की गयी हो तो न्यायालय पुलिस रिपोर्ट या क्षुब्ध द्वारा शिकायत किये जाने पर अपराध का संज्ञान ले सकेगा ।

धारा 8-बी

  • दहेज निषेध पदाधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाएगी जो बनाये गये नियमों का अनुपालन कराने या दहेज की मांग के लिए उकसाने या लेने से रोकने या अपराधकारित करने से संबंधित साक्ष्य जुटाने का कार्य करेगा।

 

 

 

 

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