- सूखा प्रभावित 10 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह की बैठक और उसमें लिए गये फैसले
नई दिल्ली: केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने सूखा प्रभावित राज्यों से अपील की है कि वे सूखा से लड़ने के लिए तुरंत कदम उठाएं और उसकी प्रत्येक सप्ताह समीक्षा करें। उन्होंन ये बात आज संवाददाता सम्मेलन में कही।
कृषि मंत्री ने कहा कि देश में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने राज्यों के साथ दो – दो घंटे बैठक कर इतनी गंभीरता दिखाई है और सूखे से जूझ रहे लोगों को तत्काल राहत देने के साथ – साथ अकाल, पानी एवं कृषि पर विस्तार पूर्वक चर्चा की। कृषि मंत्री ने कहा कि पिछले कई दिनों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सूखा प्रभावित राज्यों के मुख्य मंत्रियों के साथ अलग – अलग बैठक कर रहे थे । प्रधानमंत्री की आखिरी बैठक 17 मई को आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई। इसके पहले प्रधानमंत्री तेलंगाना, झारखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक के मुख्य मंत्रियों के साथ बैठक कर चुके हैं।
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि सूखा प्रभावित दस राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की बैठक के बाद विचार के विषय निम्नाकिंत हैं:
- प्रधानमंत्री ने सूखा झेल रहे राज्यों से आग्रह किया कि वे उन समस्याओं पर तुरंत काम करें जिन पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है। राज्यों से कहा गया कि वे सूखे की मौजूदा समस्या, सूखे को लेकर की गयी अब तक कार्रवाई और सूखे का सामना करने के लिए साप्ताहिक आधार पर तैयार प्रस्तावित उपायों सहित सूखे से बचने के दीर्घकालिक योजना बनाएं। बार – बार सूखा झेलने वाले राज्यों को अलग से इस पर काम करना चाहिए।
- प्रत्येक राज्य से अनुरोध किया गया कि वे पेयजल की कमी और अभाव, संरक्षण प्रयासों तथा विद्यमान जल संसाधनों का इष्टतम और सावधानीपूर्वक उपयोग जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए साप्ताहिक आधार पर कार्य योजना तैयार करें। इसकी तैयारी और कार्यान्वयन करने के लिए राज्यों से जल संरक्षण और जल सुरक्षा की चुनौतियों का समाधान करने के लिए नवाचार/प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने का अनुराध किया गया। राज्यों से अनुरोध किया कि वे फार्म तालाबों का निर्माण करने, सूक्ष्म सिंचाई अपनाने ओर कम पानी की आवश्यकता वाली फसलों की ओर अग्रसर होने के लिए एक बड़ा अभियान चलाएं। राज्य जल भंडारण और जल संरक्षण पद्धतियों को बढ़ावा देंगे और जल निकायों का कायाकल्पन करेंगे। खोदे जाने वाले कुंओं तथा फार्म तालाबों का संवर्धन किए जाते समय राज्य सिंचाई के लिए सोलर पंपों को प्रोत्साहित करेंगे।
- जल संरक्षण, सिंचाई तालाबों की गाद निकाले जाने, वर्षा जल संचयन, भूमिगत जल रिचार्ज, पनधारा विकास इत्यादि के लिए एकीकृत कार्य योजना विकसित की जानी है। रोक बांधों, रिसन तालाबों का रख रखाव, नहरों की लाईनिंग, वितरण नेटवर्क में जल रिसाव तथा चोरी को रोकने को प्राथमिकता दी जाएगी।
- जल उपयोग को प्राथमिकता; व्यर्थ जल के पुन: चक्रण तथा इसका उपयोग अर्ध शहरी क्षेत्रों में कृषि के प्रयोजन के लिए इसके उपयोग को बढ़ावा देना।
- गन्ने को चरणबद्ध तरीके से सूक्ष्म सिंचाई के तहत कवर करना। किसानों को इसके स्थान पर दूसरी फसलें बोने के लिए प्रोत्साहित किया जाना है।
- देश के विभिन्न भागों में निष्क्रिय परंपरागत/ऐतिहासिक स्टेप वैल्स की बहाली पर विशेष जोर।
- सभी जल निकायों को एक विशेष पहचान देकर उन पर संख्या डाला जाना।
- भूमिगत पाइप लाइनों का निर्माण करके कमान क्षेत्र में बीच बीच में टूटी हुई नहरों को जोड़ना। इससे भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता को पूरा करने के अलावा वाष्पीकरण से होने वाली हानियों में कमी आएगी।
- जल की कमी से निपटने के लिए स्थानीय प्रशासनिक निकायों को शामिल करके केंद्र और राज्य दोनों मिलकर अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय शुरू करेंगे। यह निर्णय लिया गया कि मानसून के आने से पहले जल संरक्षण के लिए तैयारी से संबंधित कदम उठाए जाएंगे।
- किसानों को ‘मोबाइल ऐप’ पर उनकी भाषा में जिला-वार आकस्मिकता योजनाएं, मौसम से संबंधित सूचना, फसल संबंधी परामर्श उपलब्ध कराए जाएंगे।
- भूमिगत जल संसाधन का पता लगाने के लिए विकेंद्रीकृत कंटूर एंड रिज मैपिंग के लिए व्यापक रूप से रिमोट सेंसिंग, सैटलाइट प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाएगा।
- क्षेत्रों के मानचित्रण के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड का विश्लेषण और उपयोग तथा फसलों के लिए वैज्ञानिक सलाह जो ऐसे क्षेत्रों के लिए सर्वाधिक अनुकूल हो।
- तटीय क्षेत्रों में समुद्री शैवाल पालन, मोती और झींगापालन को प्रोत्साहित करना।
- मिल्क रूट के साथ साथ मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया जाना।
- शहरी क्षेत्रों में बिल्डिंग के ऊपर वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाया जाना।
- फसल विविवधिकरण के अलावा राज्य मूल्यवर्धन तथा वैकल्पिक आजीविका-डेयरी, कुक्कुट पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, पुष्प कृषि, इमारती लकड़ी के वृक्ष उगाना आदि को बढ़ावा देने पर विचार करेंगे।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के मुद्दें पर राज्यों को अधिक जोखिम और कम जोखिम वाले जिलों के समूह बनाने की सलाह दी गई थी। पीएमएफबीवाई का कार्यान्वयन किए जाते समय इस बात पर भी जोर दिया गया कि राज्य सरकारें फसल कटाई प्रयोग को वैध करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करें और विभिन्न फसलों के तहत बोय गए क्षेत्र तथा बीमित क्षेत्र के बीच होने वाली त्रुटि को समाप्त करें।