राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण को किया जाएगा सुदृढ़ : मुख्यमंत्री

  • रासायनिक आपदा प्रबन्धन पर सम्मेलन
  • आपदा प्रबन्धन व बचाव, राहत एवं तैयारियों पर ध्यान के साथ-साथ रासायनिक आपदाओं के प्रबन्धन पर नये सिरे से उपाय खोजने पर सरकार का ज़ोर : मुख्यमंत्री
  • रासायनिक आपदा प्रबन्धन पर सम्मेलन
  • उपायुक्तों को तैयार करनी चाहिए आपातकालीन आपदा प्रबन्धन योजना
  • सुरक्षित इंजीनियरिंग को अपनाने पर बल

शिमला : मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि सरकार का ज़ोर आपदा प्रबन्धन तथा बचाव, राहत एवं तैयारियों पर ध्यान के साथ-साथ रासायनिक आपदाओं के प्रबन्धन पर नये सिरे से उपाय खोजने पर है ताकि इस तरह की आपदाओं को रोका जा सके और यदि आपदा घटित होती है, तो उस स्थिति में नुकसान को न्यूनतम करने का प्रभावी प्रबन्धन किया जा सके।

मुख्यमंत्री आज यहां फेडरेशन ऑफ़ इण्डियन चैम्बर ऑफ़ कामर्स एण्ड इण्डस्ट्री (फिक्की), राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एनडीएमए) नई दिल्ली तथा हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एसडीएमए) के संयुक्त तत्वावधान में रासायन, पैट्रोलियम तथा गैस उद्योगों में आपदा जोखिमों को कम करने के उपायों को लेकर रासायनिक (औद्योगिक) आपदा प्रबन्धन पर आयोजित सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे। वीरभद्र सिंह ने कहा कि हालांकि रासायनिक (औद्योगिक) आपदाएं कम घटित होती हैं, लेकिन इनमें जान व माल की क्षति, आकस्मिक अभिघात, पर्यावरण प्रभाव तथा सम्पति के नुकसान के मामले बहुत संवेदनशील हैं। वर्ष 1984 में भोपाल गैस हादसे का उदाहरण देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक बड़ी रासायनिक दुर्घटना थी जिसमें बहुत सी जानें गई थीं। उन्होंने कहा कि हजारों जानें जाने के बाद भी इस त्रासदी के दुष्परिणाम वर्षों तक रहे।

मुख्यमंत्री ने रासायनिक दुर्घटनाओं से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के प्रति समुदायों को सचेत करते हुए कहा कि हमें रासायनिक इकाईयों के संभावित नुकसान का विश्लेषण करके पहले से ही स्थिति का जायजा लेना चाहिए तथा आवश्यक एहतियात कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा कि सुरक्षित इंजीनियरिंग, सुरक्षा उपकरणों के बेहतर प्रदर्शन तथा नियमित जांच से मानवीय त्रुटियों को दूर करने जैसे निवारक उपाय करने भी अनिवार्य हैं। वीरभद्र सिंह ने कहा कि हालांकि हिमाचल प्रदेश भूकम्प, भू-स्खलन, आकस्मिक बाढ़, बर्फीले तूफान तथा ग्लेशियर जैसी अनेकों प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के लिये संवेदनशील है, परन्तु फिर भी यहां भूकम्प का खतरा अधिक है क्योंकि हिमाचल सिसमिक जोन चार तथा पांच के अन्तर्गत आता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में रासायनिक आपदाओं का खतरा कुछ कम है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल में कारखाना अधिनियम, 1948 की प्रथम अनुसूचि के अनुसार चिन्हित किए गए जोखिमपूर्ण उद्योगों में 362 उद्योग शामिल हैं। इनमें से सोलन, सिरमौर, कुल्लू तथा ऊना जिलों में स्थित आठ उद्योग विशेष तौर पर दुर्घटना की दृष्टि से दुर्घटना संभावी चिन्हित किये गए हैं। उन्होंने कहा कि इन औद्योगिक इकाईयों की आपात योजना तैयार करना सम्बन्धित उपायुक्तों की जिम्मेवारी है। वीरभद्र सिंह ने कहा कि आपदाओं के नुकसान को कम करने के लिये समय-समय पर प्रभावी आपदा प्रबन्धन नीति तैयार करने की नितान्त आवश्यकता है। आपातकाल से निपटने के कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य तैयारियों का संतोषजनक स्तर, कार्यक्रम के माध्यम से सरकार, संगठनों तथा समुदायों की तकनीकी एवं प्रबन्धन क्षमता को सुदृढ़ करके किसी भी आपात स्थिति का सामना करना है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सम्मलेन निश्चित रूप पर हिमाचल प्रदेश में उद्योगों को आपात स्थिति से बचने एवं निपटने की बेहतर तैयारियों तथा औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य प्रबन्धन को लेकर वैश्विक स्तर पर आधुनिक प्रगति को जानने में मददगार सिद्ध होगा।

वीरभद्र सिंह ने भारतीय पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष आलोप के. मित्तल तथा एल. मानसिंह को आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में दिये गए योगदान के लिये ‘लाईफ टाईम एचीवमेन्ट पुरस्कार’ से सम्मानित किया। अतिरिक्त मुख्य सचिव तरूण श्रीधर, जो आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के सदस्य सचिव भी हैं, ने कहा कि प्रदेश की मौसमी परिस्थितियों, तथा विभिन्न प्रकार की आपदाओं के लिये अत्यधिक संवदेनशीलता को ध्यान में रखते हुए राज्य ने अपनी आपदा प्रबन्धन योजना तैयार की है।

श्रमायुक्त तथा ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज के निदेशक अभिषेक जैन ने भी इस अवसर पर अपने विचार प्रकट किये। इससे पूर्व, फिक्की के डिप्टी सैके्रट्री जनरल विनय शंकर माथुर ने मुख्यमंत्री तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। पैट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के सदस्य के.के.झा, भारतीय नियामक बोर्ड के सदस्य लै. जनरल (डा.) जे.आर. भारद्वाज, सीआईडीएम के अध्यक्ष तथा एनडीएमए के पूर्व सदस्य ने भी सम्मेलन में अपने विचार प्रकट किये।

समारोह से पूर्व उत्तराखण्ड में राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने चुटकी लेते हुए कहा कि वह किसी भी प्रकार की आपदा का सामना करने के लिये सक्षम हैं, चाहे ये आपदा प्राकृतिक हो, मानवनिर्मित अथवा राजनीतिक हो। उन्होंने कहा कि वह खुश है कि अन्त में उत्तराखण्ड में लोकतन्त्र की जीत हुई। उन्होंने कहा कि यह उनके लिये सबक हैं जो लोकतान्त्रिक व्यवस्था की हत्या करने तथा विभिन्न राज्यों में कांग्रेस नेतृत्व की सरकारों को गिराने की कोशिश कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि एनडीएमए की सहायता से राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण का और अधिक विस्तार किया जाएगा। सुन्नी के समीप चेवड़ी में बादल फटने की घटना पर मुख्यमंत्री ने कहा कि गुमशुदा व्यक्तियों जो बाढ़ में बह गए हैं का पता लगाने के लिये आपदा प्रतिक्रिया बल की टीम को बुलाया गया है जो आज यहां पहुंच रही है।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *