राज्यपाल का प्राकृतिक कृषि पर बल

शिमला: राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने आज कांगड़ा जिला के पालमपुर स्थित चैधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय में ‘शून्य लागत प्राकृतिक कृषि’ पर चार दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन की परिचर्चा में भाग लिया। राज्यपाल ने किसानों से अपने खेतों में उत्पादन बढ़ाने के लिए शून्य लागत प्राकृतिक खेती को अपनाने और मृदा की उत्पादकता क्षमता को बनाए रखने का आहवान् किया। उन्होंने कहा कि किसानों को विदेशों से आयात की गई हाई ब्रिड गायों के स्थान पर देशी गाय पालने को प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जानी वाली गायें कई मायनों में उनसे बेहतर होती हैं

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती स्वास्थ्यवर्द्धक व पर्यावरण मित्र है। उन्होंने कहा कि रसायनिक खेती के स्थान पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, क्योंकि रसायनिक खेती से मृदा की उत्पादन क्षमता घटती है और कृषि फसलों में कीटनाशकों व रसायनों के उपयोग से अनेक स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ी हैं, जो चिंता का विषय है। उन्होंने विश्वास जताया कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं पदमश्री डाॅ. सुभाष पालेकर के सुझावों से किसान लाभान्वित होंगे। उन्होंने कहो कि वैज्ञानिकों को अच्छे परिणामों के लिए कृषि क्षेत्र में और अधिक समर्पण भावना से कार्य करना चाहिए।

आचार्य देवव्रत ने विश्वविद्यालय के युवा वैज्ञानिकों से कार्यशालाओं में सक्रियता से भाग लेने का आग्रह किया और कहा कि उन्हें डाॅ. पालेकर के शून्य लागत प्राकृतिक खेती की क्षेत्र में किए गए अनुसंधान व अवधारणा से लाभ उठाना चाहिए। इससे पूर्व, राज्यपाल ने चैधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय के टी हसंवेंड्री और टेक्नोलोजी विभाग का दौरा किया और विभाग की प्रापण इकाई की गतिविधियों बारे जानकारी हासिल की। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषित उद्यमियों के लिए एक्सपेरिमेंट लर्निंग परियोजना के अन्तर्गत इंटरट्रक्शनल मीडिया प्रोडक्शन स्टूडियो का भी दौरा किया। उन्होंने फूड साईंस, न्यूट्रेशन एण्ड टेक्नोलोजी एण्ड फैमिली रिसोर्स मनेजमेंट विभाग के वैज्ञानिकों व कर्मचारियों के साथ भी वार्तालाप किया और वहां प्रदर्शित किए गए उत्पादों की सराहना की।

कार्यशाला के दूसरे दिन प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. सुभाष पालेकर और रिसोर्स पर्सन ने जीरो लागत प्राकृतिक खेती के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि देश में केवल 35 करोड़ एकड़ भूमि ही कृषि के लिए उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि 33 प्रतिशत वन क्षेत्र पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक है, जबकि 10 प्रतिशत से भी कम हरित छत्र हमारे पास उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि सीमित क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की प्रक्रिया को अपनाकर कृषि उपज को दोगुना या अधिक उत्पादन किया जाना चाहिए। उन्होंने ‘जीवामित्रा’ को तैयार करने की तकनीक के बारे में भी बताया। चैधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति डॉ. के.के. कटोच व प्रध्यापक वर्ग और किसानों ने कार्यशाला में भाग लिया।

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