ज्योतां जगदियां ज्वालामुखी...... अठारह महाशक्ति पीठों में से एक कांगड़ा का ''ज्वालामुखी मन्दिर''

ज्योतां जगदियां ज्वालामुखी…… अठारह महाशक्ति पीठों में से एक कांगड़ा का ”ज्वालामुखी मन्दिर”

मंदिर में अग्नि की अलग-अलग नौ ज्योतें हैं, जो भिन्न-भिन्न देवियों को हैं समर्पित

मंदिर में अग्नि की अलग-अलग नौ ज्योतें हैं, जो भिन्न-भिन्न देवियों को हैं समर्पित

मंदिर में अग्नि की अलग-अलग नौ ज्योतें हैं, जो भिन्न-भिन्न देवियों को हैं समर्पित

ज्वालामुखी मंदिर को ज्वालाजी के रूप में भी जाना जाता है, जो कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी. की दूरी पर स्थित है। ये मंदिर हिन्दू देवी ज्वालामुखी को समर्पित है। जिनके मुख से अग्नि का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अग्नि की अलग अलग नौ ज्योतें हैं जो अलग-अलग देवियों को समर्पित हैं जैसे महाकाली अन्नपूरना, चंडी, हिंगलाज, बिंध्यवासनी , महालक्ष्मी सरस्वती, अम्बिका और अंजनादेवी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये मंदिर सती के कारण बना था। बताया जाता है कि देवी सती की जीभ यहां गिरी थी।

 

हिन्दू धर्म में देवी सती का महत्वपूर्ण स्थान ‘ज्वालामुखी मंदिर’

हिन्दू धर्म में देवी सती का एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस मंदिर में अग्नि की ज्योतें एक पर्वत से निकलती हैं। साथ ही ये भी माना जाता है कि देवी आज भी इस मंदिर में विराजती हैं। ये भी बताया जाता है कि पराक्रमी राजा अशोक को देवी में गहरी आस्था थी और वो यहां अक्सर देवी के दर्शन के लिए आते थे। सम्राट अशोक यहां से निकलने वाली अग्नि की लपटों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। यह भी कहा जाता है कि देवी के प्रति अपनी अटूट भक्ति के तहत सम्राट अशोक ने देवी को एक सोने की छत्री दी थी जो आज भी यहां पर है और पानी से ज्वाला की रक्षा करती है।

अठारह महाशक्ति पीठों में से एक कांगड़ा का ‘ज्वालामुखी मन्दिर’

अठारह महाशक्ति पीठों में से एक कांगड़ा का ‘ज्वालामुखी मन्दिर’

  • अठारह महाशक्ति पीठों में से एक कांगड़ा का ‘ज्वालामुखी मन्दिर’

भारत की महाशक्ति पीठों में से हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित ज्वालामुखी मन्दिर है जहां देश के कोने–कोने से भक्तजन मन्नते मांगने शारदीय नवरात्रों में भी आते हैं। वैसे तो भक्तों का आना-जाना समस्त वर्ष ही यहां लगा रहता है लेकिन नवरात्रों में माता के दर्शनों का जो पुण्य प्राप्त करता है उस पर माता विशेष कृपा करती है।

राजा भूमि चंद ने करवाया था मन्दिर का निर्माण

महाराजा रंजीत सिंह ने बनवाया मन्दिर का जीर्णोद्धार

यह नवरात्र आश्विन मास की शुक्ल-पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर 9 दिन तक चलते हैं। इस मन्दिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था और महाराजा रंजीतसिंह ने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं।

देवी पुराण में है 51 शक्तिपीठों का वर्णन

देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं। वर्तमान में भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्ति पीठ है।

माता जगदम्बिका ने सती के रूप में लिया था जन्म

आदिशंकराचार्य के द्वारा वर्णित 18 महाशक्ति पीठो में भी ज्वालामुखी मन्दिर का उल्लेख है। माता के इन 51 शक्तिपीठों के बनने की कथा के अनुसार राजा प्रजापति

मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए अकबर ने बनवायी थी नहर

मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए अकबर ने बनवायी थी नहर

दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए।

भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देखकर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी’ नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए।

नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई।

यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमान जनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये।

तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भू-मण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस

महाशक्ति पीठों में से एक कांगड़ा का ‘ज्वालामुखी मन्दिर’

महाशक्ति पीठों में से एक कांगड़ा का ‘ज्वालामुखी मन्दिर’

स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहां महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते।

‘तंत्र-चूड़ामणि’ के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। इस तरह पृथ्वी पर जहां-जहां भी सती के शरीर के अंग गिरे वहीं अनेक रूपों में शक्तियां प्रकट हुई और इस तरह 51 शक्तिपीठ स्थापित हो गए।

कांगड़ाघाटी के ज्वालामुखी नामक स्थान पर गिरी थी सती की जिव्हा, जो कहलाई “ज्वालाजी”

यह माना जाता है कि हिमाचल प्रदेश में सती की जिव्हा कांगड़ाघाटी के ज्वालामुखी नामक स्थान पर गिरी थी जहां स्वत: अगिन अर्थात ज्वाला रूप में मां ने जन्म लिया और ज्वालाजी कहलाई। इसी तरह कांगड़ाघाटी के कांगड़ा नामक स्थान में देवी के वक्ष स्थल का एक भाग गिरा और मां बज्रेश्वरी के रूप में प्रकट हुई। ऊना जिले के चिंतपूर्णी में सती के चरण और बिलासपुर में नैनाधार नामक स्थान पर आंखें गिरी, जहां क्रमश: चिंतपूर्णी और नैनादेवी जैसे प्रसिद्ध शक्तिपीठ बने।

51 शाक्तिपीठों में श्री ज्वालाजी का महत्व कालांतर से सर्वाधिक

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