पांडवों को जाता है ज्वालामुखी मंदिर खोजने का श्रेय
दीपशिखा शर्मा
पांडवों को जाता है ज्वालामुखी मंदिर खोजने का श्रेय
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर स्थित है ज्वालामुखी देवी। ज्वालामुखी मंदिर को ज्योतां वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। मान्यता है यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग-अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है। इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजनादेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने 1835 ई. में इस मंदिर का पूर्ण निर्माण कराया।
ज्वालामुखी मंदिर में 57 वर्षों से माँ की सेवा कर रहे “पंडित उदय कुमार” हमें मदिर के बारे और यहां की प्रसिद्धी के बारे में जानकारी दी थी तो उन्होंने बताया था ….
अकबर और ध्यानु भगत की कथा :
पंडित उदय कुमार ने हमें जानकारी देते हुए बताया था कि इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुड़ी है। जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, उन्हीं दिनों की यह घटना है। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक ध्यानु भगत एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भगत को पेश किया।
बादशाह ने पूछा, तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानु ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं और यात्रा पर जा रहे हैं।
अकबर ने सुनकर कहा, यह ज्वालामाई कौन है? और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानु भगत ने उत्तर दिया, महाराज ज्वालामाई संसार का पालन करने वाली माता है। वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्रार्थनाएं स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन को जाते हैं। अकबर ने कहा, अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते हैं, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई।
ध्यानु भगत ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानु भगत की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।
बादशाह से विदा होकर ध्यानु भगत अपने साथियों सहित माता के दरबार में जा उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़कर ध्यानू ने विनती की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। कहते हैं कि अपने भक्त की लाज रखते हुए माँ ने घोड़े को फिर से ज़िंदा कर दिया।
बादशाह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में
मंदिर में प्रज्जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए अकबर ने बनवायी थी नहर
ज्वाला देवी
यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया। उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। वहां पहुंचकर फिर उसके मन में शंका हुई। उसने अपनी सेना से पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं। तब जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने सवा मन्न (पचास किलो) सोने का छतर चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिरकर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। था। तबसे माता रानी ने यह निर्देश दिया था कि यहां नारियल ही चढ़ेगा। आप आज भी वह बादशाह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं।
पास ही गोरख डिब्बी का चमत्कारिक स्थान
इस मन्दिर में कुछ सीढियां चढ़कर बाबा गोरखनाथ का मन्दिर है जिसे गोरख डिब्बी भी कहते हैं। यहां खौलता हुआ पानी है जो हाथ लगाने पर बिलकुल ठंडा होता है। इसके दर्शन लपटों के रूप में पुजारी करवाते हैं। यहां चढ़ावे के रूप नारियल में चढाया जाता है। मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बांये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। थोड़ा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि यहां गुरु गोरखनाथ जी पधारे थे और कई चमत्कार दिखाए थे। यहां पर आज भी एक पानी का कुण्ड है जो देखने में खौलता हुआ लगता है पर वास्तव में पानी ठंडा है। ज्वालाजी के पास ही 4.5 कि.मी. की दूरी पर नागिनी माता का मंदिर है। इस मंदिर में जुलाई और अगस्त के माह में मेले का आयोजन किया जाता है। 5 कि.मी. की दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा कराया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढ़ी हुई है।
मंदिर में अग्नि की अलग-अलग नौ ज्योतें हैं, जो भिन्न-भिन्न देवियों को हैं समर्पित
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