शिमला तथा हमीरपुर को सौर ऊर्जा नगर बनाने की योजना एमएनआरई द्वारा स्वीकृत

  • मुख्यमंत्री का अक्षय ऊर्जा स्रोतों के समुचित उपयोग पर बल
  • ऊर्जा संकट से निपटने के लिए जैव ईंधन, सौर, पवन व भूतापीय ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए
  • हिमाचल प्रदेश में सौर विकिरण के स्तर में वृद्धि
  • प्रदेश सरकार ने राज्य में सौर ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करने की प्रक्रिया को किया सरल
  • लघु जल विद्युत क्षेत्र सस्ती दरों पर ऊर्जा उत्पादन में निभा रहा हैमहत्वपूर्ण भूमिका

 

    मुख्यमंत्री का अक्षय ऊर्जा स्रोतों के समुचित उपयोग पर बल

  • मुख्यमंत्री का अक्षय ऊर्जा स्रोतों के समुचित उपयोग पर बल

शिमला: मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता व पर्यावरण की चिंता मानवता के लिए एक चुनौती है, इसके लिए ऊर्जा के परम्परागत व अन्य विकल्पों का दोहन किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री हिम ऊर्जा और भारत सरकार के नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा आज यहां होली डे होम में सोलर सिटी कार्यक्रम के तहत हिमाचल प्रदेश में सौर ऊर्जा तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए आयोजित कार्यशाला के उद्घाटन के उपरांत बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि ऊर्जा संकट से निपटने के लिए जैव ईंधन, सौर, पवन व भूतापीय ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा देश ऊर्जा की भारी कमी से गुजर रहा है, जिससे औद्योगिक विकास व आर्थिक उन्नति में बाधा आ रही है। उन्होंने कहा कि नए ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना अनिवार्य रूप से अत्यधिक अस्थिर जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भर रहती है। उन्होंने कहा कि सतत ऊर्जा की बढ़ती मांग के लिए सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी स्वच्छ अक्षय ऊर्जा स्रोत है, जिसमें ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में सौर ऊर्जा प्रणाली के क्षेत्र में हुए विकास से यह औद्योगिक व घरेलू उपयोग के लिए आसानी से उपलब्ध है।

उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने माना था कि सौर ऊर्जा से ग्रामीण भारत में बदलाव आएगा और इसके लिए उन्होंने वर्ष 2010 में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन आरम्भ किया था।

वीरभद्र सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश राज्य में उपलब्ध विद्युत क्षमता के दोहान के लिए स्वच्छ व पर्यावरण मित्र प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय नीति का समर्थन करता है। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि प्रदूषण वाले जीवाश्म ईंधन के स्थान पर अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार अक्षय ऊर्जा संसाधनों के विकास के लिए कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमने राज्य में अक्षय ऊर्जा तकनीकों को बढ़ावा देकर पर्यावरण में गिरावट व वनों के कटान को कम करने के लिए योजना बनाई है।

उन्होंने कहा कि शिमला और हमीरपुर को सौर ऊर्जा शहर के रूप में विकसित करने की अंतिम योजना को भारत सरकार के नवीनकरण एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है। मंत्रालय ने पंचायत भवन शिमला में 15 केडब्ल्यूपी सौर ऊर्जा संयंत्र तथा रिज शिमला व पुराने बस अड्डे में 20 केडब्लयूपी सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्वीकृति बारे सूचित किया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सौर विकिरण के स्तर में वृद्धि हुई है, जिससे प्रदेश सौर ऊर्जा क्षेत्र में आदर्श राज्य बनने की क्षमता रखता है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार सौर ऊर्जा कार्यक्रम को बढ़ावा दे रही है और जनवरी, 2016 में संशोधित सौर ऊर्जा नीति को अधिसूचित किया गया है, जो मार्च, 2022 तक वैध है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने राज्य में सौर ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करने की प्रक्रिया को सरल किया है।

उन्होंने कहा कि लघु जल विद्युत क्षेत्र सस्ती दरों पर ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। प्रदेश में 900 किलोवाट क्षमता की पांच परियोजनाएं जुथेड़, कोठी, लिंगटी, सुराल और पुर्थी में हिमऊर्जा द्वारा निष्पादित की जा रही है। इसके अतिरिक्त, 1470 किलोवाट क्षमता की चार परियोजनाएं राज्य क्षेत्र निधि के तहत सराहन, घरोला, साच, बिलिंग, बड़ा भंगाल में निष्पादित की जा रही है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा लोगों को घर की छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिसके नियामन के लिए प्रदेश सरकार द्वारा ‘नेट मीट्रिंग’ नीति अधिसूचित की गई है। जनजातीय व दूरदराज क्षेत्रों में निर्बाध विद्युत आपूर्ति उपलब्ध करवाने के लिए स्पीति घाटी में केडब्ल्यूपी का सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया गया है। उन्होंने कहा कि शिमला नगर को पायलट सोलर सिटी के रूप में विकसित किया जा रहा है और इसके अन्तर्गत परियोजना का कार्य अंतिम स्तर पर है। उन्होंने कहा कि वह शिमला को आदर्श सोलर सिटी के रूप में देखना चाहते हैं और विभाग को अन्य परियोजनाओं पर भी कार्य करना चाहिए ताकि प्रदेश के अन्य भागों को भी सौर शहरों के रूप में विकसित किया जा सके।

भारत सरकार के नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय में सुयंक्त सचिव तरूण कपूर ने अक्षय ऊर्जा संसाधनों पर विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि फरवरी, 2016 तक 5547 मैगावाट के सौर ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित की गई हैं और देश में वर्ष 2022 तक 1,00,000 मैगावाट सौर ऊर्जा प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में भारत सौर ऊर्जा उत्पादन में आठवें स्थान पर है। उन्होंने कहा कि स्पीति व लद्दाख क्षेत्र में सौर विकिरण की प्रचुर मात्रा में है, परन्तु इसके हस्तातंरण क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि एक समय था, जब सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट लागत 17 से 18 रुपये थी, जो अब घटकर 4 से 5 रुपये हो गयी है। जल विद्युत के स्थान पर अब सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा प्रचलन बढ़ा है। उन्होंने कहा कि आज भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जर्मनी और जापान के बाद पवन ऊर्जा क्षेत्र में पाचवें स्थान पर है।

इससे पूर्व, हिमऊर्जा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कवंर भानु प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री का स्वागत किया और विभाग की विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी। ऊर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया व भारत सरकार के एमएनआरई, मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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