बंजर भूमि पारिस्थितिक पुनःस्थापनःअन्य सेवाओं के कार्मिकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

बंजर भूमि पारिस्थितिक पुनःस्थापनःअन्य सेवाओं के कार्मिकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

शिमला: दिनांक 24 मार्च 2016 के दौरान बंजर भूमि की पुनः स्थापनः विषय पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सौजन्य से अन्य सेवाओं के कार्मिकों के लिए एक तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसका शुभारम्भ, डा. वी. पी. तिवारी, निदेशक, हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विभागों जैसे कृषि, पशुपालन, बागवानी, आर्युवेद, ईको टास्कः फोर्स, अनुसंधान संस्थानों तथा शिक्षा विभाग से सम्बन्धित लगभग 30 कार्मिकों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए डा. तिवारी, ने सर्वप्रथम संस्थान की ओर से सभी प्रतिभागियों का हार्दिक अभिनन्दन व्यक्त किया तथा इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के संबंधित मन्तवय को स्पष्ट किया।

उन्होनें आगे कहा कि वास्तव में देश के लगभग 23 प्रतिशत भाग पर आच्छादित वन सम्पदा अपने अन्दर कई मूल्यों को समाहित किए हुए हैं। उन्होनें कहा कि वन सम्पदा के मुख्य अन्दर आजीविका चलाने व गरीबी उन्मूलन की अदभूत क्षमता विद्यामान है। इसके अलावा चारागाह भूमि तथा बंजर भूमि जैसे अन्य स्रोत भी वन सम्पदा में ही निहित है। संस्थान के प्रयासों की सराहना करते हुए मुख्य अतिथि ने कहा कि इस प्रशिक्षण के दौरान अन्य सेवाओं के कर्मियों द्वारा अर्जित ज्ञान का लाभ अंततोगत्व वानिकी क्षेत्र से जुडे मुख्य हितधारकों तक पहुंचेगा।

डा. तिवारी ने कहा कि हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, वानिकी अनुसंधान के कार्यों के साथ.साथ समय-समय पर विभिन्न हितधारकों के लिए कई प्रकार के प्रशिक्षण भी प्रदान करता है। उन्होने आगे कहा कि विकासात्मक गतिविधियो के साथ-साथ पर्यावरण सुरक्षा एवं सरक्षण के लिए ध्यान देना अति आवश्यक है उन्होने जोर देकर कहा कि संस्थान की विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधान परियोजनाए हितधारकों की अनुशंसाओं पर आधारित होती है तथा इसका मुख्य उद्देशय हितधारकों को लाभ पंहुचाना होता है।

आगे के कार्यक्रम में इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के पाठयक्रम निदेशक डा. आर.के. वर्मा ने बताया कि संस्थान द्वारा यह तीन दिवसीय कार्यक्रम पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से किया जा रहा है। उन्होने आगे कहा कि उपलब्ध भूमि संसाधनों पर लगातार बढृती जनसंख्या के कारण अत्याधिक दबाव है तथा भोजनर्, इंधन, चारे व रेशों की मांग भी बढृ रही है। इस परिदृश्य में किसी भी प्रकार की बेकार या बंजर भूमि पर हरित आवरण स्थापित करना समय की मांग है। उन्होने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों को सरल प्रस्तुतिकरणों के माध्यम से विविध प्रकार की वैज्ञानिक जानकारी दी जाएगी तथा साथ ही दाडलाघाट में स्थित अंबुजा सीमेंट उद्याोग द्वारा जनित खनन क्षेत्र में, संस्थान द्वारा कराई गई वनस्पति पुनःस्थापनः गतिविधियों को दिखाने के लिए एक दिन का क्षेत्रीय भ्रमण भी करवाया जाएगा।

इसके पश्चात सबसे पहले संस्थान के समूह समन्वयक ‘अनुसंधान- व वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. के.एस. कपूर ने एक सारगर्भिवत प्रस्तुतीकरण द्वारा प्रतिभागियों को संस्थान की विविध एवं विस्तृत गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान की गई। तत्पश्चात इस अवसर पर विशेष रूप से आमन्त्रित वन अनुसंधान संस्थान देहरादून से आए वैज्ञानिक डा. एच. बी. वशिष्ठ, डा. अशोक कुमार, डा. वी.पी. पंवर, डा. के. पी. सिंह उद्यान एवं वानिकी विश्वविघालय, सोलन से आए डा. सतीश भारद्वाज, डा. डी. आर. भारद्वाज शुष्क वन अनुसंधान संस्थान से आए वैज्ञानिक डॉ. रंजना आर्य हिमाचल वन विभाग से आए अतिरिक्त प्रधान मुख्य अरण्यपाल डा. वी.आर.आर. सिंह ने पारिस्थितिकी पुनः स्थापनः के विविध पहलुओं को चिन्हित करते हुए एक विस्तृत एवं प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण दिया।

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