भविष्यवक्ता ने की थी पिता को भविष्यवाणी : मधुबाला बड़ी होकर पाएगी बहुत शोहरत..

  • वर्ष 1960 में जब मुगल-ए-आजम प्रदर्शित हुई तो फिल्म में मधुबाला के अभिनय से दर्शक मुग्ध हो गए

वर्ष 1960 में जब मुगल-ए-आजम प्रदर्शित हुई तो फिल्म में मधुबाला के अभिनय से दर्शक मुग्ध हो गए, हालांकि बदकिस्मती से इस फिल्म के लिए मधुबाला को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार नहीं मिला। लेकिन सिने दर्शक आज भी ऐसा मानते हैं कि

मधुबाला

मधुबाला

मधुबाला उस वर्ष फिल्म फेयर पुरस्कार की हकदार थीं। 60के दशक में मधुबाला ने फिल्मों में काम करना काफी कम कर दिया था। चलती का नाम गाड़ी और झुमरू के निर्माण के दौरान ही मधुबाला किशोर कुमार के काफी करीब आ गई थीं। मधुबाला के पिता ने किशोर कुमार को सूचित किया कि मधुबाला इलाज के लिए लंदन जा रही हैं और वहां से लौटने के बाद ही उनसे शादी कर पाएंगी। लेकिन मधुबाला को अहसास हुआ कि शायद लंदन में ऑपरेशन होने के बाद वे जिंदा नहीं रह पाए और यह बात उन्होंने किशोर कुमार को बताई। इसके बाद मधुबाला की इच्छा पूरी करने के लिए किशोर कुमार ने मधुबाला से शादी कर ली।

शादी के बाद मधुबाला की तबीयत और ज्यादा खराब रहने लगी। हालांकि इस बीच उनकी पासपोर्ट, झुमरू, बॉयफ्रेंड, हॉफ टिकटऔर शराबी जैसी कुछ फिल्में प्रदर्शित हुईं। वर्ष 1964 में एक बार फिर से मधुबाला ने फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख किया, लेकिन फिल्म चालाक के पहले दिन की शूटिंग में मधुबाला बेहोश हो गई और बाद में यह फिल्म बंद कर देनी पड़ी।

मधुबाला के ना सिर्फ दिल में छेद था, बल्कि फेफड़ों में भी परेशानी थी। इसके अलावा उन्हें एक और गंभीर बीमारी थी, जिसमें उनके शरीर में आवश्यक मात्रा से ज्यादा खून बनने लगता था और ये खून उनकी नाक और मुंह से बाहर आता था। ये खून तब तक निकलता रहता जब तक कि उसे शरीर से ना निकाल दिया जाए। एक वक्त ऐसा भी आया जब मधुबाला का सांस लेना दूभर हो गया और हर चार घंटे में उन्हें ऑक्सीजन देनी पड़ती थी।

इलाज के लिए मधुबाला जब लंदन पहुंचीं, तो डॉक्टरों ने ये कहकर सर्जरी करने से इन्कार कर दिया कि उनके जीवन का मात्र एक वर्ष शेष है, लेकिन मज़बूत इरादों वाली ये अदाकारा 9 और वर्षों तक हिन्दी सिनेमा के दर्शकों का मनोरंजन करती रहीं।

मधुबाला अपने आखिरी दिनों में सिर्फ हड्डियों का ढांचा भर रह गई थीं

एक वक्त पर जिस मधुबाला के करोड़ों दीवाने थे और जिसकी खूबसूरती के चर्चे विदेशों में भी थे, वही मधुबाला अपने आखिरी दिनों में सिर्फ हड्डियों का ढांचा भर रह गई थीं। निर्देशक केदार शर्मा का कहना था, कि शुरुआती समय से ही वो बेहद प्रोफेशनल थीं। वो एक मशीन की तरह बड़ी तत्परता से काम में लगी रहती थीं। भले ही उन्हें खाना छोड़ना पड़े या तीसरी श्रेणी में सफ़र करना पड़े, मधुबाला हमेशा समय पर पहुंचती थीं। इलाज के लिए जब वो लंदन पहुंचीं, तो डॉक्टरों ने ये कहकर सर्जरी करने से इन्कार कर दिया कि उनके जीवन का मात्र एक वर्ष शेष है, लेकिन मज़बूत इरादों वाली ये अदाकारा 9 और वर्षों तक हिन्दी सिनेमा के दर्शकों का मनोरंजन करती रही थी।

मधुबाला की आखिरी फिल्म ‘चालाक’ अभिनेता राज कपूर के साथ अधूरी ही रह गई थी, मधुबाला की बढ़ती बीमारी के कारण फिल्म को बीच में ही रोक देना पड़ा

मधुबाला की आखिरी फिल्म ‘चालाक’ अभिनेता राज कपूर के साथ अधूरी ही रह गई थी। मधुबाला की बढ़ती बीमारी के कारण फिल्म को बीच में ही रोक देना पड़ा, लेकिन उनकी हालत में कभी सुधार ही नहीं आया। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही इस अद्वितीय सुंदरी ने सिनेमा के लिए आखिरी बार श्रृंगार किया था। गंभीर रूप से बीमार रहने के बावजूद उन्होंने ‘फ़र्ज़ और इश्क’ नामक फ़िल्म का निर्देशन करने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन दुर्भाग्यवश ये फ़िल्म कभी सिनेमा-घरों तक नहीं पहुंच सकी और मधुबाला 36 वर्ष की छोटी उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गईं।

  • ..और इसीलिए मधुबाला-दिलीप कुमार नहीं बंध पाए शादी के बंधन में
दिलीप कुमार-मधुबाला

दिलीप कुमार-मधुबाला

दिलीप कुमार और मधुबाला का रिश्ता शादी की गांठ से बंधा होता अगर मधुबाला के पिता इस बंधन के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने के बारे में नहीं सोचते। ऐसा करना अभिनेता दिलीप कुमार के लिए न तो अच्छा होता और न ही उन्हें ये गंवारा था कि कोई और उनके उभरते करियर की दिशा को निर्धारित करे। हाल ही में जारी अपनी आत्मकथा ‘दिलीप कुमार : द सबस्टेंस एंड द शैडो’ में 91 वर्षीय दिलीप ने अपने और मधुबाला के रिश्ते के बारे में ये बातें साझा की हैं जो आज भी सिनेमा के प्रशंसकों को रोमांचित करती हैं।

1951 में मधुबाला के साथ ‘तराना’ में काम करने वाले भारतीय चित्रपट के मुख्य स्तंभों में से एक दिलीप उनके बारे में यादें बांटते हुए उन्हें एक अच्छा कलाकार होने के साथ ही एक ‘बेहद जिंदादिल और जीवटता से भरपूर’ इंसान बताते हैं। हे हाउस द्वारा प्रकाशित अपनी किताब में उन्होंने लिखा, ‘मैं यह स्वीकार करता हूं कि मैं मधुबाला के साथी कलाकार और अच्छे इंसान दोनों रूपों के प्रति आकर्षण में बंधा था। उसमें वे सभी गुण मौजूद थे जिसकी एक औरत में मैं उस समय होने की आशा रखता था। जैसा कि मैंने पहले कहा कि वो बहुत जिंदादिल और जीवंत थी जिसने मेरे शर्मीलेपन और संकोच को बिना किसी प्रयास के दूर किया।’

के. आसिफ की ‘मुगल ए आजम’ में उनकी जोड़ी ने खूब सुखिर्यां बटोरी थी क्योंकि उनके भावनात्मक लगाव की अफवाहें जोरों पर थीं। इससे निर्देशक आसिफ बहुत खुश थे। मधुबाला ने आसिफ के सामने दिलीप के प्रति अपने लगाव के रहस्य को भी जाहिर किया था और आसिफ उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित करते थे। लेकिन लंबे चले फिल्म निर्माण के दौरान दोनों के रिश्ते में खटास आ गई। कुमार ने याद करते हुए लिखा, ‘मैंने महसूस किया कि जब हमारे रिश्ते में खटास आनी शुरू हुई तब आसिफ काफी गंभीरता से हमारे संबंधों को सुधारने के लिए प्रयास कर रहे थे और वे उसके (मधुबाला) पक्ष में परिस्थितियों का निर्माण कर रहे थे लेकिन भला हो मधुबाला के पिता का जो हमारी होने वाली शादी को एक व्यापारिक गठजोड़ बनाना चाहते थे।’

मधुबाला

मधुबाला

फिल्म की शूटिंग के दौरान उनका रिश्ता बहुत खराब स्थिति में पहुंच गया था। दिलीप जाहिर करते हैं कि जिस समय मुगल-ए-आजम का पंख वाला मशहूर दृश्य फिल्माया जा रहा था जिसे हिंदी चित्रपट के सबसे रूमानी दृश्यों में शामिल किया जाता है, उस समय तक उन दोनों में बातचीत भी बंद हो चुकी थी। दिलीप लिखते हैं, ‘रिश्ते में खटास के नतीजतन मुगल-ए-आजम के लगभग आधे निर्माण के बाद से हम आपस में बात भी नहीं कर रहे थे। पंख वाले कालजयी दृश्य की शूटिंग के दौरान जिसमें हम दोनों के होठों के बीच सिर्फ वह पंख ही होता है, हमारे बीच बातचीत बंद थी। यहां तक कि हम एक दूसरे से दुआ सलाम भी नहीं करते थे।’

दिलीप कहते हैं कि वह दृश्य वास्तव में दो ‘कलाकारों के पेशेवर अंदाज और कला के प्रति समर्पण’ का प्रतीक है जिसमें दोनों ने अपने निजी विरोधों को दूर रखते हुए फिल्म के निर्देशक के स्वप्न को साकार किया। मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान की अपनी फिल्म निर्माण कंपनी थी और वे इकलौते ऐसे इंसान थे जिन्हें दोनों फिल्मी सितारों को एक ही छत के नीचे देखने पर सबसे ज्यादा खुशी होती ।

मधुबाला को लगता था कि एक बार शादी होने के बाद परिस्थितियां सुधर जाएंगी और अंतर्विरोध दूर हो जाएंगे लेकिन दिलीप अपने भविष्य को किसी ऐसे दूसरे व्यक्ति के हाथ में नहीं सौंपना चाहते थे जो उनके करियर से जुड़े फैसले ले और उनके लिए रणनीति बनाए। दिलीप कुमार को महसूस हो रहा था कि वे एक ऐसे रिश्ते में बंधते जा रहे हैं जो कि उनके लिए हितकारी नहीं होगा। इसलिए उन्होंने शादी का विचार त्याग दिया और दोनों को दुबारा सोचने का अवसर देने का मन बनाया। दिलीप कुमार कहते हैं कि उन्होंने मधु और उनके पिता से इस विषय में कई मर्तबा साफ दिली से बात की लेकिन वास्तव में वे उनकी दुविधा को समझने के लिए तैयार ही नहीं थे जिससे संभावनाएं बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होती जा रही थीं और अंतत: उनके रिश्ते का एक दुखद अंत हुआ।

 

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