कहीं फसलों के सही न मिलते दाम, तो कहीं जंगली जानवरों का कहर...कहीं आसमान से गिरती आपदा, तो कहीं सूखे की मार...क्या करे किसान

कहीं फसलों के सही न मिलते दाम, तो कहीं जंगली जानवरों का कहर…कहीं आसमान से गिरती आपदा, तो कहीं सूखे की मार…क्या करे “किसान”

  • किसानों की आत्महत्या की वजह प्राकृतिक भी है और कृत्रिम भी

  • कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2012-13 में कृषि विकास दर 1.2 प्रतिशत

यह तो हम जानते ही हैं और बचपन से पढ़ते और सुनते भी आये हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग कृषि पर ही आश्रित हैं। लेकिन कहीं न कहीं अब हमारी कृषि को कृषि प्रधान बनाने वाले किसान कृषि से विमुख होते नजर आ रहे हैं। कहीं आसमान से गिरती आपदा, तो कहीं धरती पर सूखे की मार से प्रकृति किसानों के जीवन से खिलवाड़ करती साफ दिख रही है।

बाकि इस बीच कुछ बचा है तो खेतों में जानवरों का कहर। घाटे का सौदा होने की वजह से हजारों किसान खेती छोडऩे के लिए मजबूर हैं। कर्ज में डूबता किसान बदहाली का जीवन जीता और कहीं-कहीं तो अपनी जीवन लीला को समाप्त करने के लिए मजबूर। पिछले दो दशकों में भारी संख्या में किसान आत्महत्या कर चुके हैं। किसान जो अपनी खेती-बाड़ी से पूरे देश के लोगों के लिए अन्न पैदा करता है वही किसान अब खेती छोड़ मजदूरी करने के लिए मजबूर होता जा रहा है। गांव से किसान शहरों की और रूख करने लगे हैं।

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2012-13 में कृषि विकास दर 1.2 प्रतिशत

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2012-13 में कृषि विकास दर 1.2 प्रतिशत

देश में कहीं सूखे की मार तो कभी बेमौसम बरसात व ओलावृष्टि की वजह से फसलें तबाह होने से किसानों की दशा सचमुच बहुत खराब होती जा रही है। किसानों के लिए यह एक गहरे संकट की घड़ी है। पूरी दुनिया में अनाज’ के भाव जहां कम हुए हैं वहीं ऐसे में उत्पादन घटने के बावजूद भारत में फसल के दाम बढऩे की उम्मीद नहीं है। अगर उत्पादन घटेगा तो किसानों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा और यह किसानों की समस्याओं को और बढ़ा सकता है।

आर्थिक तंगी के चलते किसान आत्महत्या करने को मजबूर

दुःख की बात है कि किसान आर्थिक तंगी के चलते आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं। कर्ज़ के बोझ तले किसान आत्महत्या करता है दुःख की बात है लेकिन, देश के जिन राज्यों में यह समस्या सबसे गंभीर है उनमें महाराष्ट्र तो पहले नंबर पर है ही, उसके बाद पंजाब, गुजारत, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु का स्थान है। इन राज्यों में साल-दर-साल आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। किसानों की समस्याएं और उनके आत्महत्या के मामले कुछ दिनों के लिए सुर्खियों में रहते हैं। उसके बाद कोई नहीं पूछता। सरकारें छोटा-मोटा मुआवजा देकर या राहत पैकेज का एलान कर अपने दायित्व से मुक्त हो जाती हैं। नतीजतन समस्या जस की तस रहती है और आत्महत्या का यह चक्र जारी रहता है।

ज्यादातर किसान अब भी फसलों की बुवाई और सिंचाई के मामले में बारिश पर ही निर्भर हैं। लेकिन बीते कोई डेढ़ दशक से मौसम के लगातार बदलते मिजाज और बेमौसमी बरसात ने उनकी तबाही के रास्ते खोल दिए हैं। कहीं जरूरत से ज्यादा बारिश उनकी तबाही की वजह बन जाती है तो कहीं बेमौसम बारिश फसलों की काल बन जाती है। सूखा और बाढ़ की समस्या तो लगभग हर साल सामने आती है।

कर्ज का लगातार बढ़ता चक्र भी एक अहम वजह

देश में कहीं सूखे की मार तो कभी बेमौसम बरसात व ओलावृष्टि की वजह से फसलें तबाह होने से किसानों की दशा सचमुच बहुत खराब होती जा रही है।

देश में कहीं सूखे की मार तो कभी बेमौसम बरसात व ओलावृष्टि की वजह से फसलें तबाह होने से किसानों की दशा सचमुच बहुत खराब होती जा रही है।

इसके अलावा कर्ज का लगातार बढ़ता चक्र भी एक अहम वजह है। बैंकों से कर्ज की खास सुविधा नहीं होने की वजह से किसानों को बीज, खाद और सिंचाई के लिए पैसों की खातिर महाजनों और सूदखोरों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह लोग 24 से 50 फीसदी ब्याज दर पर उनको कर्ज देते हैं, लेकिन फसलों की उपज के बाद उसकी उचित कीमत नहीं मिलने की वजह से किसान पहले का कर्ज नहीं चुका पाता। वह दोबारा नया कर्ज लेता है और इस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी कर्ज के भंवरजाल में फंसती रहती है। आखिर में उसे इस समस्या से निजात पाने का एक ही उपाय सूझता है और वह है खुद को मौत के गले लगाना।

  • राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, वर्ष 1995 से 2013 के बीच तीन लाख से ज्यादा किसानों ने की आत्महत्या

  • एनसीआरबी की इस रिपोर्ट को देखें तो साल 2014 में 12,360 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने खुदकुशी कर ली, ये संख्या 2015 में बढ़ कर 12,602 हो गई

  • 2014 के मुकाबले 2015 में किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों के आत्महत्या में 2 फीसदी बढ़ोतरी हुई

  • देश में हर 30 मिनट में एक किसान करता है आत्महत्या

आंकड़ों के आईने में यह समस्या काफी गंभीर नजर आती है राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, वर्ष 1995 से 2013 के बीच तीन लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। वर्ष 2012 में 13,754 किसानों ने विभिन्न वजहों से आत्महत्या की थी और 2013 में 11,744 ने। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर 30 मिनट में एक किसान आत्महत्या करता है। यानि अन्नदाता की भूमिका निभाने वाला किसान अब अपनी जान भी बचाने में असमर्थ है। वर्ष 2014 में भी आत्महत्या की दर में तेजी आई है। इस दौरान 3,144 मामलों के साथ महाराष्ट्र लगातार 12वें वर्ष भी पहले स्थान पर बना हुआ है।

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