अल्पसंख्यक युवाओं को बेहतर रोजगार के काबिल बनाएगी “नई मंजिल योजना”

  • आपस में बेहतर ढंग से जुड़े प्रयासों को लागू करने पर ध्यान देने से सबका साथ सबका विकास होगा सुनिश्चत : डॉ. नजमा हेपतुल्ला
  • जयपुर में आयोजित क्षेत्रीय संपादकों के अखिल भारतीय सम्मेलन में डॉ. नजमा हेपतुल्ला का संबोधन

 

नई दिल्ली: केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने आज अखिल भारतीय क्षेत्रीय संपादकों के सम्मेलन को संबोधित किया। अपने शुरुआती संबोधन में उन्होंने कहा कि सरकार बेहतर ढंग से व्यवस्थित और तालमेल के जरिये सबका साथ और सबके विकास प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है और इस पर उसका पूरा ध्यान है। डॉ. नजमा ने कहा कि देश की प्राथमिकताओं को देखते हुए उनके मंत्रालय ने कौशल विकास और शिक्षा के जरिये अल्पसंख्यकों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने की दिशा में कई प्रयास किए हैं।

पिछले 20 महीनों के दौरान शुरू किए गए अपने मंत्रालय के प्रयासों की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा उनके मंत्रालय ने 8 अगस्त 2015 को नई मंजिल योजना शुरू की थी। उन्होंने कहा कि यह योजना उन अल्पसंख्यक युवाओं के फायदे के लिए है, जिनके पास औपचारिक स्कूली शिक्षा का कोई सर्टिफिकेट नहीं है। इन युवाओं में वे लोग शामिल हैं जिनकी स्कूली शिक्षा छूट गई है या फिर उन्होंने सामुदायिक शिक्षा संस्थानों जैसे मदरसों में शिक्षा पाई है। नई मंजिल कार्यक्रम से उन्हें औपचारिक सेक्टर में बेहतर रोजगार मिल सकेगा और वह बेहतर जिंदगी जी सकेंगे। इस स्कीम के तहत पांच साल में 650 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। विश्व बैंक ने इसके लिए पांच करोड़ डॉलर की सहायता मंजूर की है और भारत की तरह की विकास की चुनौतियां झेल रहे अफ्रीकी देशों के लिए भी इसकी सिफारिश की है।

डॉ. नजमा हेपतुल्ला ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदायों की ओर से जिन कौशल और हस्तकलाओं का इस्तेमाल किया जाता है उनमें से अब कई रोजगार की दृष्टि से उतने लाभदायक नहीं रह गए हैं। इसलिए इन कारीगरों को अब जीविका के दूसरे साधनों को ओर देखना पड़ रहा है। इन कारीगरों के लिए उस्ताद ( यूएसटीटीएडी- अपग्रेडिंग द स्किल्स एंड ट्रेनिंग इन ट्रेडिशनल आर्ट्स फॉर डेवलपमेंट) योजना 14 मई, 2015 को शुरू की गई थी। वाराणसी में इसकी औपचारिक घोषणा हुई थी। इस योजना का लक्ष्य उस्ताद कारीगरों और हस्तकला कारीगरों की क्षमता निर्माण में बढ़ोतरी और कौशल विकास है। प्रशिक्षण लेने वाले उस्ताद कारीगर और कलाकार अल्पसंख्यक युवाओं को कला और हस्तकला कारीगरी के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षित करेंगे।

इस प्रयास में हस्तकला कलाकार और कारीगरों को समर्थन देने के लिए मंत्रालय ने ई-कॉमर्स पोर्टल शॉपक्लूज.कॉम के साथ समझौता किया है। ताकि कारीगरों की बाजार तक पहुंच बन सके।

मंत्रालय ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (एऩआईएफटी), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (एनआईडी) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पैकेजिंग को विभिन्न कलस्टरों में डिजाइन विकसित करने के लिए अपने साथ जोड़ा है। ये इंस्टीट्यूट प्रोडक्ट रेंज के विकास, पैकेजिंग, प्रदर्शन, फैशन शो और प्रचार के लिए काम करेंगे। ई-मार्केटिंग पोर्टलों से गठजोड़, बिक्री में बढ़ोतरी और ब्रांड निर्माण का भी ये काम करेंगे। इसके लिए 2015-16 में 17.01 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था और अब तक इसमें से 15.29 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।

डॉ. हेपतुल्ला ने कहा कि अल्पसंख्यकों के कौशल विकास के लिए शुरू किया गया कार्यक्रम सीखो और कमाओ में मजबूती आई है और इसका विस्तार हुआ है। इसके लिए बजट में लगभग तीन गुना बढ़ोतरी हुई है और यह बढ़ कर 192.45 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। वर्ष 2015-16 के दौरान इसके तहत 1,13,000 लोगों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा गया है। मंत्री महोदया ने अल्पसंख्यक मामलों के जिन अन्य प्रयासों का जिक्र किया उनमें मौलाना आजाद नेशनल एकेडमी फॉर स्किल्स (एमएएनएएस) की स्थापना शामिल है। साथ ही वर्ष 2014-15 के दौरान अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की ओर से दिए गए 86 लाख स्कॉलरशिप का भी जिक्र किया।

उन्होंने बताया कि पढ़ो परदेस स्कीम के तहत विदेश में पढ़ने वाले अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं की ओर से लिए गए ऋण के ब्याज पर सब्सिडी दी जा रही है। हमारी धरोहर स्कीम के तहत अल्पसंख्यक की समृद्ध संस्कृति और विरासत को बचाने की योजना शुरू की गई है। नई रोशनी स्कीम के तहत अल्पसंख्यक महिलाओं को ज्ञान, उपकरण और तकनीकी सहायता देकर उनकी नेतृत्व करने की क्षमता का विकास किया जा रहा है।

वर्ष 204-15 के दौरान मंत्रालय ने 3711 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया था। वर्ष 2015-16 के दौरान इसे बढ़ा कर 3712.78 करोड़ रुपये कर दिया गया। अल्पसंख्यक मंत्रालय की स्थापना 29 जनवरी, 2006 को हुई थी। इसमें छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों जैसे- मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन के कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए नीतियां बनाई जाती हैं। भारत की आबादी में इन अल्पसंख्यक आबादी की हिस्सेदारी 19 प्रतिशत की है।

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