प्रश्न : महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान खुद की किस प्रकार से देखभाल करनी चाहिए?
उत्तर : गर्भावस्था को तीन भागों में बांटा गया है- पहली तिमाही- पहले से तीसरे माह तक : इसमें शिशु पूर्ण रूप से बन जाता है। उसके हाथ, पैर व शरीर के अंगों को देखा जा सकता है। प्रथम 12 सप्ताह तक यह गर्भ अत्यंत संवेदनशील रहता है और उसको दवाइयों, जर्मन मीज़ल्स, रेडिएशन, तंबाकू, रासायनिक एवं ज़हरीले पदार्थों के संपर्क में आने से हानि हो सकती है।
इन प्रथम 12 हफ्तों में गर्भवती में कई परिवर्तन आते हैं- स्तन ग्रंथि विकसित होती है जिससे छाती में सूजन आती है और स्तनपान कराने की तैयारी करते हुए स्तन मुलायम होते हैं। गर्भाशय का भार मूत्राशय पर आता है जिससे उसे बार-बार पेशाब लगती है। गर्भवती का मूड़ बदलता रहता है, जो मासिक धर्म के पहले के परिवर्तन जैसा है। गर्भावस्था के लिए बढ़े हुए हारमोन्स के स्तर से सुबह सुस्ती होती है व अरुचि और कई बार उल्टी करने की इच्छा भी होती है। कब्ज़ भी हो सकती है, क्योंकि बढ़ता हुआ गर्भाशय आंतड़ियों पर दबाव डालता है।
दूसरी तिमाही : चौथे से छठे माह का समय- इसके अंत तक बच्चे का वज़न लगभग 1 किलोग्राम होता है और उसकी हलचल महसूस होती है। अधिकतर महिलाओं के लिए दूसरी तिमाही शारीरिक रूप से अधिक आनंददायक होती है। सुबह की सुस्ती कम हो जाती है, ज़्यादा थकान महसूस नहीं होती और स्तनों में कोमलता भी कम होने लगती है। इस दौरान भूख अधिक लगना जैसी शिकायत हो जाती है।
लगभग 20 सप्ताह के बाद गर्भस्थ शिशु की हलचल महसूस होने लगती है। गर्भाशय की वृद्धि से मूत्राशय पर दबाव घट जाता है जिससे बार-बार पेशाब आने की समस्या कम होती है। ल्युकोरिया यानी सफेद रंग का डिस्चार्ज हो सकता है लेकिन रंगीन या रक्तयुक्त डिस्चार्ज होने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें, यह समस्यासूचक है।
तीसरी तिमाही : 7वें से 9वें माह तक शिशु का विकास पूर्ण रूप से हो जाता है। यह बढ़कर मां की पसलियों तक आ जाता है और तब उसका हिलना-डुलना कम हो जाता है। शिशु को पोषक तत्वों की आपूर्ति मां के रक्त से होती है। प्रसव की तिथि नज़दीक आने के साथ तकलीफ बढ़ सकती है। पैरों, हाथों और चेहरे पर सूजन आ सकती है। नियमित अंतराल में झूठा प्रसव दर्द (फॉल्स पेन) हो सकता है। यह शिशु के जन्म की पूर्व तैयारी है। पेट में, छाती में, जांघों में और नितम्ब में खिंचाव की वजह से प्रसव के बाद स्ट्रेच मार्क्स दिखने लगते हैं। जैसे-जैसे त्वचा में वृद्धि और खिंचाव आता है वह शुष्क हो जाती है। चेहरे की त्वचा पर गहरे धब्बे आ सकते हैं।
प्रश्न : गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में किस तरह के परिवर्तन होते हैं?
उत्तर : प्रोजेस्टरोन का स्तर अधिक होने की वजह से आंतड़ियों में स्नायुओं का खिंचाव धीमा हो जाता है जिससे एसिडिटी, अपच, कब्ज़ और गैस होती है। गर्भावस्था की शारीरिक एवं मानसिक मांग की वजह से महिला थकान महसूस करती है।
प्रश्न : गर्भावस्था के दौरान क्या-क्या कदम उठाने चाहिए?
उत्तर : अपने चिकित्सक के पास नियमित रूप से जाएं तथा परामर्श को पूरी तरह सुनें और उसको पूरा करें। प्रथम 6 महीने में प्रतिमाह, सातवें व आठवें महीने में हर 15 दिन तथा नौवें माह में हर सप्ताह चिकित्सक के पास जाएं। टिटेनस के टीके या अन्य दवाओं का निर्देशानुसार उपयोग करें। संतुलित व नियमित आहार लें जिसमें उचित मात्रा में प्रोटीन तथा विटामिन का समावेश हो। विशेषतः अपने दैनिक आहार में अंकुरित अनाज, दालें, हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, ताज़े फल, दूध, अंडा, मछली आदि का प्रयोग करें।
प्रश्न : आप गर्भवती महिला को किस तरह के व्यायाम करने की सलाह देना चाहेंगे?
उत्तर : डॉक्टर की सलाह से नियमित व समुचित व्यायाम करें। सुबह और रात को भोजन के बाद घूमना फायदेमंद है। प्रतिदिन स्नान करें, ढीले और सूती कपड़े पहनें। दोपहर में कम से कम 2 घंटे आराम करें व रात में 8 घंटे की नींद लें। मुंह की सफाई पर ध्यान दें, दो बार ब्रश करें। छठे माह से बाईं ओर करवट करके सोएं। संतुलित आहार बार-बार व थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेते रहें। भरपूर पानी पिएं, खाली पेट न रहें। रक्तस्राव, पैरों में सूजन, पेट में दर्द, सिरदर्द, उल्टियां, योनि मार्ग से पानी का जाना, बच्चे का हिलना कम या नहीं महसूस होने पर तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
प्रश्न : इस दौरान गर्भवती महिला को किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
उत्तर : गर्भवती महिला चिकित्सक की बताई दवाओं के अलावा अन्य किसी दवा का उपयोग न करें। कोई भी तकलीफ होने पर चिकित्सक को बताएं। धूम्रपान, तंबाकू, नशीले पदार्थ, मदिरा आदि का सेवन न करें। गर्भावस्था के प्रारंभ व अंत में लंबी दूरी की यात्राओं से बचें। गर्भवती को मानसिक तनाव से दूर रहना चाहिए। खाली पेट रहने या उपवास से परहेज करें। भारी वस्तुएं न उठाएं व थकाने वाले कामों से दूर रहें। आरामदायक फुटवेयर इस्तेमाल करें। ऊंची एड़ी नहीं पहनें। कोई वस्तु उठाते समय आगे न झुकें। अपनी पीठ सीधी रखें और घुटने मोड़कर चीज़ उठाएं। शिशु स्वस्थ है या नहीं यह सुनिश्चित करने के लिए उसका रूटीन हेल्थ चेकअप ज़रूरी होता है। कोई समस्या होने पर तुरंत अपने गाईनिकॉलोजिस्ट से संपर्क करें।
आवश्यक: गर्भवती महिला को चहिये कि वो पहले माह से अपनी गाईनिकॉलोजिस्ट से हर माह रूटीन हेल्थ चेकअप अवश्य कराएं।