कुल्लू के दशहरे का अपना इतिहास, पृष्ठभूमि व सांस्कृतिक परम्परा कुल्लू में दशहरे का शुभारंभ 17वीं शताब्दी में हुआ देश भर में मनाया जाने वाला दशहरा पर्व जहां आसुरी शक्तियों पर दैवी शक्तियों की...
श्री रघुनाथ मन्दिर मंदिर की विशेषता, भगवान रघुनाथ जी के विषय में जानकारी आज भी जगतसिंह के वंशज का बड़ा सुपुत्र श्री रघुनाथ जी का छड़ीदार हिमाचल देवभूमि है। यहां पर अनेकों देवी-देवताओं का वास...
जनपदों का आविर्भाव वैदिकयुग के अंत में हुआ प्रतीत होता है। जन अपने को किसी विशेष ऋषि की संतान मानते थे, वहीं गोत्र कहलाता था। प्रत्येक जन में अनेक कुटुंब होते थे और विभिन्न कुटुंबों के समुदाय...
आधुनिकता भरे माहौल में आज भी परंपरागत गहनों को सजीव रखे … किन्नौरी महिलाओं का श्रृंगार सिर से पांव तक गहनों से लदी किन्नौरी महिलाओं का श्रृंगार इनकी संस्कृति की सजीवता का प्रतीक हिमाचल के...
त्रिर्गत के तीन शक्तिपीठों में ज्वालाजी, वज्रेश्वरी और चिंतपूर्णी उल्लेखनीय शक्तिपीठ पहला स्थान माता वैष्णों देवी को दिया जाता है, जो जम्मू-कश्मीर में पड़ता है स्वर्ण कलशों से सजा...
देश की बात हो या प्रदेश की उसकी जीवन शैली की पहचान वहां के रहने वाले लोगों, वेशभूषा, खानपान व आभूषणों से होती है। हांलाकि काफी समय से हमारे कई पारम्परिक परिधान और आभूषण लुप्त होते जा रहे हैं।...
हिमाचल प्रदेश की प्राचीन कलाएं, मंदिरों के वास्तुशिल्प, लकड़ी पर खुदाई, पत्थरों और धातुओं की मूर्तियां तथा चम्बा रूमालों आदि के रूप में आज भी सुरक्षित है। हिमाचल अपनी सांस्कृतिक विरासत तथा...
